फीवर का ट्रिपल अटैक दिल्ली वालों के ऊपर हो रहा है। डेंगू, चिकनगुनिया के वायरस और मलेरिया के पारासाइट लोगों दिल्ली वालों को बीमार कर रहा है। एमसीडी के आंकड़ों में इस साल 3 सितंबर तक डेंगू की वजह से 771 लोग बीमार हुए हैं, 560 लोगों में चिकनगुनिया पॉजिटिव पाया गया है और मलेरिया के 19 मामले की पुष्टि हुई है। एमसीडी के आंकड़ों के अनुसार डेंगू से चार लोगों की और मलेरिया से एक की मौत हो चुकी है। लेकिन, जमीनी हकीकत बिल्कुल अगल है। अब दिल्ली में डंगू के एक हजार से ज्यादा मामले आ चुके हैं,
चिकनगुनिया के 1400 मामले केवल एम्स और सफदरजंग में ही पुष्टि हुई है, वहीं सैकड़ों मामले मलेरिया के हैं और अब तक मलेरिया से दो लोगों की मौत हो चुकी है।
ट्रिपल अटैक
मैक्स के डॉ. रोमेल किट्टू का कहना है कि ओपीडी में आने वाले 50 पर्सेंट मरीज चिकनगुनिया के हैं। एम्स के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के डॉक्टर ललित धर ने कहा कि दो महीने में 885 चिकनगुनिया के मामले की पुष्टि हुई है। कुछ ऐसा ही आईएमए के महासचिव डॉक्टर के के अग्रवाल का कहना है, वे कहते हैं कि रोजाना उनके पास चार से पांच मरीज चिकनगुनिया के आ रहे हैं। इस बारे में डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि रोज उनके पास मलेरिया के मरीज पहुंच रहे हैं और जांच में इसकी पुष्टि हो रही है। एमसीडी के हिंदूराव अस्पताल सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अब तक अस्पताल में 62 लोगों में मलेरिया कंफर्म हो चुका है। इन आंकड़ों से साफ हो रहा है कि
इस साल दिल्ली में आम वायरल के साथ साथ डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया का अटैक हो रहा है।
समझदारी से कराएं जांच :
डॉक्टर गोगिया का कहना है कि इन दिनों फीवर के साथ आने वाले मरीजों में सबसे ज्यादा जरूरी यह जानना है कि डेंगू है या नहीं। क्यूंकि डेंगू के मरीजों की मॉनिटिरिंग बेहतर करनी होती है, प्लेटलेट्स, ब्लड प्रेशर आदि का ख्याल रखना होता है। रोज जांच करनी होती है। इसलिए हम लोग चिकनगुनिया के मरीजों में पहले डेंगू और मलेरिया की जांच कराते हैं। यह दोनों जांच 800 रुपये में हो जाती हैं, जो चिकनगुनिया के पीसीआर टेस्ट से सस्ता है। इस जांच में अगर मलेरिया आता है तो उसकी स्पेसिफिक दवा है। अगर डेंगू आता है तो डेंगू मैनेजमेंट किया जाता है। लेकिन अगर दोनों निगेटिव आते हैं तो हम चिकनगुनिया का टेस्ट कराने के बजाए उसके लक्षण का इलाज शुरू कर देते हैं।
हर केस में जरूरी नहीं जांच :
आईएमए के महासचिव डॉक्टर के के अग्रवाल ने कहा कि चिकनगुनिया के कई मरीजों में जॉइंट पेन बहुत ज्यादा होता है, लोग वॉशरूम तक नहीं जा पाते हैं। ऐसे लोगों को डॉक्टरों की निगरानी में थोड़ा पेनकिलर दिया जा सकता है, जो डेंगू में बिल्कुल नहीं दिया जाता है।
डॉक्टर केके अग्रवाल का भी कहना है कि ज्यादातर मरीजों में जांच की जरूरत नहीं होती है क्योंकि चिकनगुनिया में मरीजों को होने वाला जॉइंट पेन इसे बाकी वायरस से अलग करता है। डेंगू और चिकनगुनिया के मरीजों में न केवल वायरस ट्रांसफर करने वाला मच्छर एक है, बल्कि लगभग लक्षण भी एक ही तरह हैं और दोनों का कोई स्पेसिफिक ट्रीटमेंट नहीं है।