बच्चों में कमजोर रोग प्रतिरोधी क्षमता खतरे की घंटी

नईदिल्ली:
शिवम का जन्म कमजोर रोग प्रतिरोधी क्षमता के साथ हुआ था। यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम यानि प्रतिरोधी तंत्र या यूं कहें कि बीमारी से लड़ने की ताकत कम हो जाती है। ऐसे में अगर कोई बच्चा वायरस और बैक्टीरिया के संपर्क में आता है तो खतरनाक स्थिति बन जाती है। इस वजह 5 साल की उम्र तक शिवम को कई सारे संक्रमण हो गए थे। उसे एक ही साथ कई सारे संक्रमण, बुखार, खांसी-जुकाम व अन्य बीमारी हो गया था। जब उसे हॉस्पिटल में दिखाया गया तब डॉक्टर ने उसके बीमार होने की वजह उसका कमजोर इम्यून सिस्टम बताया। इस समस्या से सिर्फ शिवम ही पीड़ित नहीं है, भारत में वायु प्रदूषण, अस्वच्छ स्थितियों, विलासिता वाली जीवन शैली और अनुवांशिक डिसऑर्डर के कारण कमजोर रोग प्रतिरोधी क्षमता (immunodeficiency) खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है।
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार 10 में से 4 चार भारतीय बच्चों को अपनी बाल्यावस्था में पूर्ण प्रतिरोध नहीं मिल पाता है, इस कारण कमजोर रोग प्रतिरोधी क्षमता गंभीर स्थिति में पहुंच चुकी है। डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों में अस्थमा जैसे लक्षणों को नज़रअंदाज नहीं करें, उनका सुझाव है कि कमजोर प्रतिरोधी क्षमता के लक्षण समझ में आने पर तुरंत जांच करा लेनी चाहिए। अमेरिकन अकादमी ऑफ़ एलर्जी, अस्थमा और इम्मुनोलोजी के अनुसार ऐसे बच्चे जिन्हें लगातार संक्रमण हो रहे हो, चाहे कान का संक्रमण, सिनुसिट्स या निमोनिया हो, यह अमूमन कमजोर प्रतिरोधी क्षमता की वजह से ही होता है। इस खतरनाक रोग की जाँच करने के लिए यह सुझाव दिया जाता है कि भारत को सजग रहने की जरूरत है और नए बच्चों की स्क्रीनिंग पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए.
अपोलो हॉस्पिटल के नियोनोटोलोजिस्ट डॉक्टर विवेक जैन ने कहा कि ऐसे रोगी जिनकी रोग प्रतिरोधी क्षमता कम होती है उन्हें संक्रमण होता रहता है जो सामान्यता एंटीबायोटिक लिए दूर नहीं होता है और एंटीबायोटिक उपचार के एक या दो सप्ताह बाद फिर हो जाता है। ऐसे रोगियों को स्वस्थ रहने के लिए प्रति वर्ष एंटीबायोटिक के कई कोर्स करने पड़ते हैं। इम्यूनडिफीसिएंसी के कई प्रकार होते हैं और इनमें से कुछ बेहद खतरनाक और जीवन के लिए घातक होते हैं, जबकि कुछ कम हानिकारक लेकिन कई संक्रामक रोगों के कारण होते हैं जिससे लगातार रोग होते रहते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार अधिकतर शहरी बच्चों को पोषक तत्वों, विटामिन AC आयरन आरडीए पर्याप्त रूप से नहीं मिल पाते हैं। डॉक्टर विवेक जैन ने कहा कि “इम्यूनडिफीसिएंसी को पोषक तत्वों से युक्त सही आहार देकर समाप्त किया जा सकता है। खानपान की स्वस्थ आदतें और पीने के स्वच्छ पानी से इस समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है। यहां तक कि FSSAI ने भी माना है कि 65-90% दूध में मिलावट होती है ऐसे में हमें अधिक सावधानी रखने की जरूरत है। डॉक्टर अवनीत कौर ने कहा कि “ लगातार होने वाले संक्रामक रोगों से इम्यूनडिफीसिएंसी का पता चलता है. अंतर यह होता है कि ऐसे संक्रमण बार-बार होते हैं और अक्सर अधिक मुश्किल भी इसलिए वे विभिन्न जटिलताओं का कारण होते हैं।
यदि व्यक्ति को बहुत ज्यादा संक्रमण हो रहे हैं, तो विशेषज्ञों ने पहचान करने के लिए कुछ सामान्य गाइडलाइन्स बताई हैं:
1. एक वर्ष में आठ या अधिक संक्रमण. बच्चों को एक साल में चार से अधिक कोर्स की और वयस्कों को हर वर्ष दो बार से अधिक उपचार लेने की जरूरत पड़ती है
2. चार वर्ष की उम्र के बाद चार बार से ज्यादा लगातार कान का संक्रमण होता है
3. किसी भी समय दो बार निमोनिया होना
4. एक साल में तीन से अधिक बार बैक्टीरियल साइनोसाइटिस या क्रोनिक साइनोसाइटिस होना
5. बच्चे का वजन बढ़ने में विफलता या सामान्य विकास में परेशानी
6. असामान्य संक्रमण या बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण जो अधिकतर लोगों में मरीज की आयु में होने पर समस्या पैदा नहीं करता है

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