भारत में तैयार मॉलीक्यूल से विश्वभर में होगी टीबी की जांच

Secondary tuberculosis in lungs and close-up view of Mycobacterium tuberculosis bacteria, 3D illustration

नई दिल्ली,
आईसीएमआर (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) और डीएचआर (स्वास्थ्य शोध विभाग) द्वारा तैयार भारतीय मॉलीक्यूलर ऐस्से ट्रूनेट टीबी और एमडीआर टीबी जांच को विश्वभर में लागू किया जाएगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जांच को वैश्विक टीबी नियंत्रण कार्यक्रम में शामिल किया है। ट्रेनेट से केवल टीबी के विषाणु की सटीक जांच होगी बल्कि यह शरीर में टीबी की दवा रिंफामप्सिन की प्रतिरोधक क्षमता का भी मात्र 90 मिनट में पता लगा सकेगी।
टीबी जांच के लिए सस्ती भारतीय तकनीक तैयार करने के लिए आईसीएमआर और डीएचआर लंबे समय से प्रयासरत थे। केवल साधारण टीबी ही नहीं ट्रूनेट, बिगड़ी हुई टीबी जैसे एमडीआर और एक्ससीआर की जांच में अहम होगी, जिसे भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया गया है। बेहतर टीबी जांच किट के लिए कई अन्य संस्थाओं जैसे डीबीटी (डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्निालॉजी) केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा तकनीक प्रस्तुत की गईं थी। लेकिन विशेषज्ञों के एक समूह ने ट्रूनेट ऐस्से को ही सबसे बेहतर पाया। देश के चार प्रमुख लैबोरेटरी द्वारा ट्रूनेट को जांचा गया। कई चरणों की जांच के बाद ट्रूनेट को अंर्तराष्ट्रीय मानकों पर भी खरा पाया गया, जिसे वैश्विक स्तर पर प्रयोग करने के लिए बेहतर कहा जा सकता है। ट्रूनेट को टीबी की दवा के प्रति रोगप्रतिरोधक क्षमता का पता लगाने में भी सबसे अच्छी जांच पाया गया, दरअसल टीबी के इलाज में एक समय पर इलाज की दवा रिंफामप्सिन के प्रति शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है, इस स्थिति में टीबी की दवा का टीबी के विषाणुआें पर असर नहीं होता है। नई मॉलीक्यूल जांच इसका भी 90 मिनट में पता लगा सकेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अहम निर्णय के तहत भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई ट्रूनेट टीबी जांच को भारत, इथोपिया, पेरू और न्यूघाना में प्रारंभिक स्तर पर प्रयोग करने पर अनुमति दी गई है। टीबी जांच का सभी चार देशों के प्रारंभिक परिणामों का अध्ययन जेनेवा द्वारा किया जाएगा।
आईसीएमआर और डीएचआर के निदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने बताया कि ट्रूनेट टीबी जांच, जीनएक्सपर्ट युक्त बेहद आधुनिक और सस्ती जांच है, जिसे लैबारेटरी बिना एसी भी प्रयोग किया जा सकता है, और इसके परिणाम पर कोई असर नहीं होगा। मध्यय्म आय वर्ग के देशों के लिए ट्रूनेट टीबी नियंत्रण कार्यक्रम में यह जांच बेहद किफायती होगी, जो लैबारेटरी के अन्य खर्चों को वहन नहीं कर सकते।

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