नई दिल्ली,
किसी नई दवा, मेडिकल उपकरण या वैक्सीन बनाने के लिए अब मरीज की अनुमति बिना क्लीनिकल ट्रायल नहीं किया जा सकेगा। अगर चिकित्सक या संस्थान मरीज पर इस तरह का प्रयोग कर रहा है उसके लिए पहले मरीज को इसकी पूरी जानकारी देनी होगी, मरीज की लिखित सहमति के बाद ही उसे क्लीनिकल ट्रायल में शामिल किया जा सकेगा। कई चरण के बदलाव के बाद सोमवार को आईसीएमआर ने बायोमेडिकल साइंस संबंधित क्लीनिकल ट्रायल के लिए एथिक गाइडलाइन जारी की।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान, आईसीएमआर द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार किसी भी तरह के ऐसे ट्रायल से पहले आईसीएमआर की एथिक्स कमेटी उस ट्रायल को मंजूरी देगी, जिसके बाद ट्रायल के बाद इसके प्रभाव और दुष्प्रभाव के मरीज और दवा कंपनी को जिम्मेदारी माना जाएगा। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी एक औपचारिक आदेश के अनुसार किसी भी प्राइवेट, निजी, स्वयं सेवी संस्थान या फार्मेसी आदि द्वारा मानव शरीर पर किए गए प्रयोगों के लिए अनुमति अनिवार्य कर दी गई है। आदेश जारी होने के 180 दिन बार यह नियम लागू किए जा सकेगें। मालूम हो कि सबसे पहले वर्ष 1980 में आईसीएमआर ने पहली बार क्लीनिकल एथिक्ट गाइडलाइन्स जारी की थीं, जिसके बाद वर्ष 2000 और 2006 में इसे संशोधित किया गया। एक बार फिर बदलते ट्रेंड को देखते हुए वर्ष 2017 में पहली राष्ट्रीय क्लीनिकल एथिकल ट्रायल गाइडलाइन जारी की गईं, जिसे डीएचआर स्वास्थ्य शोध विभाग की मदद से सोमवार को जारी किया गया। जानकारी देते हुए आईसीएमआर के निदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने बताया कि एथिक्स कमेटी की गाइडलाइन जारी होने के बाद शोधकार्यो में पारदर्शिता बरती जा सकेगी यह स्कूल और कॉलेज के शोधकार्यो पर भी लागू होगी। मालूम हो कि इस समय स्टेम सेल्स के शोध को लेकर सबसे अधिक मरीजों पर प्रयोग किया जाता है, जिसकी उनकी जानकारी भी नहीं दी जाती।