नई दिल्ली
राजस्थान में परिजनों द्वारा चिकित्सक के खिलाफ उत्पीड़न का एक गंभीर मामला सामने आया है। खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए दौसा लालसोट स्थित आनंद अस्पताल की महिला चिकित्सक डॉ. अर्चना शर्मा ने आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या करने से पहले अपने सुसाइड नोट में डॉ. अर्चना ने लिखा कि मैं अपने पति और बच्चों से बहुत प्यार करती हूं मेरे मरने के बाद उन्हें परेशान नहीं किया जाएं, मेरा मरना शायद मेरी बेगुनाही साबित कर दें, इसके साथ ही डॉ. अर्चना ने लिखा कि इलाज करने वाले बेगुनाह चिकित्सकों का उत्पीड़न रोका जाना चाहिए। दरअसल आनंद अस्पताल में एक दिन पहले एक 22 वर्षीय महिला आशा देवी की प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्त्राव की वजह से मौत हो गई थी। परिजनों ने शव को अस्पताल के सामने रखकर प्रदर्शन शुरू किया तो पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी थी। इसी संदर्भ में अस्पताल प्रशासन द्वारा मेडिकल बोर्ड का गठन भी कर दिया गया था।
लेकिन इस बीच महिला का इलाज करने वाले डॉ. अर्चना मिश्रा द्वारा सुसाइड नोट लिखकर आत्महत्या करने के बाद पुलिस प्रशासन पर मेडिकल व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। दिल्ली स्थित फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट्स डॉक्टर्स एसोसिएशन ने इस संदर्भ में आईएमए सहित स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र लिखकर परिजनों द्वारा डॉक्टर्स पर हिंसा को रोकने के लिए सख्त कार्रवाई की मांग की है। फोरडा अध्यक्ष डॉ. मनीष ने बताया कि प्रसव के बाद महिला की मौत पीपीएस या पोस्ट पार्टम हैमरेज की वजह से हुई थी, अस्पताल में महिला को हर संभव बेहतर इलाज दिया गया, बावजूद इसके महिला के शव को सड़क पर रखकर धरना प्रदर्शन किया गया और पुलिस पर एफआईआर दर्ज करने का दवाब बनाया गया।
फोरडा ने तत्काल प्रभाव से महिला पर लगे सभी आरोपों को खारिज करने की मांग की और चिकित्सक जगत के लिए इसे दुखद घटना बताया। फोरडा का कहना कि चिकित्सकों के खिलाफ परिजनों द्वारा की गई हिंसा को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। चिकित्सक संघ इस कृत्य की घोर निंदा करता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार राजस्थान दौसा जिला के लालसोट में 22 वर्षीय महिला को प्रसव के लिए दो दिन पहले आनंद अस्पताल लाया गया, प्रसव के बाद नवजात शिशु को दौसा के एक अन्य अस्पताल में भेज दिया गया जबकि प्रसूता का रक्तस्त्राव रोकने के लिए उसे दो यूनिट खून भी चढ़ाया गया। परिजनों ने आरोप लगाया कि यदि महिला की स्थिति अधिक खराब थी तो उसे भी तुरंत अच्छे अस्पताल रेफर किया जाना चाहिए था, परिजनों ने आरोप लगाया कि पूरे प्रकरण में घोर लापरवाही बरती गई। अस्पताल प्रशासन ने महिला की मौत के बाद उसे अपनी ही एंबुलेंस में घर तक भी छोड़कर आएं इसके साथ ही नवजात शिशु को भी घर भेज दिया, जबकि नवजात शिशु को जन्म के बाद 48 घंटे तक अस्पताल में रखना अनिवार्य है। परिजनों ने शव को सड़क पर रखकर रास्ता जाम कर विरोधप्रदर्शन शुरू किया तो पुलिस ने दवाब में आकर महिला चिकित्सक डॉ. अर्चना शर्मा सहित अस्पताल प्रशासन पर आईपीसी की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया। पुलिस प्रशासान के दवाब से डॉ. अर्चना गंभीर मानसिक तनाव में आ गई और जान देने का फैसला ले लिया। दिवंगत डॉ. अर्चना ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि शायद मेरा मरना ही मेरी बेगुनाही साबित करेगा, मेरे पति और बच्चों को इसके लिए परेशान न किया जाए। बरहाल राजस्थान में डॉ. अर्चना की मौत का मामला दिल्ली तक पहुंच गया है। फोरडा ने स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने तत्काल मामले में हस्तक्षेप कर उचित कार्रवाई करने की मांग की है।