नई दिल्ली,
ग्लोबल एएलएस/एमएनडी अवेयरनेस डे के मौके पर आज एएलएस केयर एंड सपोर्ट फाउंडेशन एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (एएलएस) समुदाय की विशेष जरूरतों पर अधिक ध्यान देने का आह्वान करता है। एक प्रगतिशील न्यूरोडिजेनरेटिव बीमारी, एएलएस का कोई इलाज या निश्चित उपचार नहीं है।
मोटर न्यूरोन डिसीस (एमएनडी) एएलएस के दुनिया भर में अनुमानित 450,000 मरीज प्रभावित हैं जिसमें औसत जीवित रहने की दर सिर्फ दो से पांच साल है। हर 90 मिनट में किसी को एएलएस का पता चलता है और हर 90 मिनट में कोई इस बीमारी से मर जाता है। अकेले भारत में अनुमान है कि लगभग 75,000 से 100,000 लोग एएसएस के साथ जी रहे हैं। इस बीमारी के कारण होने वाली दुर्बल स्थिति न केवल अत्यधिक वित्तीय बोझ पैदा करती है बल्कि प्रभावित व्यक्तियों और उनके परिवारों के शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक कल्याण पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
प्रमुख न्यूरोलॉजिस्ट और इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोरिहैबिलिटेशन के अध्यक्ष, डॉ निर्मल सूर्या ने एएलएस के बारे बताया कि ऐसे परिदृश्य की कल्पना करें जहां आपका दिमाग तेज है लेकिन आप अपनी मांसपेशियों की गति को नियंत्रित करने में असमर्थ हैं। यहां तक कि आप धीरे-धीरे चलने-फिरने और बोलने की शक्ति, निगलने या चबाने और यहां तक कि सांस लेने की क्षमता भी खो देते हैं! अंतत: मरीज को स्थायी वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत होती है। इस स्थिति को एएलएस की कहा जाता है जो एक अत्यंत दुर्लभ बीमारियों में एक है।
एएलएस के लिए अत्यधिक विशिष्ट चिकित्सा देखभाल, सहायक उपकरणों और देखभाल सेवाओं की आवश्यकता होती है।
हालांकि यह भी सच है कि एएलएस के साथ रहने वाला व्यक्ति उत्पादक जीवन जी सकता है। एएलएस केयर एंड सपोर्ट फाउंडेशन की सह-संस्थापक सतविंदर कौर कहती हैं कि शुरुआती हस्तक्षेप, व्यापक और प्रतिबद्ध देखभाल, समर्थन और अनुसंधान में प्रगति प्रभावित लोगों के जीवन की गुणवत्ता में काफी वृद्धि कर सकती है। एक प्रमुख उदाहरण स्टीफन हॉकिंग हैं, जो विश्व प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी हैं, जो कई दशकों तक एएलएस के साथ रहे।
भारत में दुर्लभ बीमारियों के लिए बनाई गई राष्ट्रीय नीति 2021 के कार्यान्वयन के माध्यम से दुर्लभ बीमारियों को पहचानने और संबोधित करने में सराहनीय कदम उठाए गए हैं। नीति का उद्देश्य एक एकीकृत और व्यापक निवारक रणनीति के आधार पर दुर्लभ बीमारियों के प्रसार को कम करना है।
सरगंगा राम अस्पताल वरिष्ठ सलाहकार और न्यूरोलॉजिस्ट डॉ गौरी देवी कहती हैं कि एएलएस को नीतिगत ढांचे में एकीकृत करके चिकित्सकों के बीच जागरूकता बढ़ा सकते हैं, जिससे शीघ्र और सटीक निदान, किफायती उपचार विकल्पों, सहायक उपकरणों तक पहुंच और सहायक उपचार से जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।
राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति में एएलएस को शामिल करने से देश में दुर्लभ न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के साथ रहने वालों के लिए समर्थन का एक मजबूत संदेश जाएगा। इसके अलावा एएलएस केयर एंड सपोर्ट फाउंडेशन ने कुछ प्रमुख कार्यों की पहचान की है जो एक बड़ा अंतर ला सकते हैं। उदाहरण के लिए नियमित जागरूकता अभियान, वित्तीय सहायता, एएलएस रोगियों की राष्ट्रीय रजिस्ट्री, भारत में अनुसंधान और परीक्षण, एएलएस क्लीनिक, बीमा कवरेज और पहुंच वैश्विक उपचार, पूरक और सहायक उपकरणों आदि के माध्यम से बीमारी से पीड़ित मरीजों के लिए एक सपोर्ट सिस्टम तैयार किया जा सकता है।
मानव व्यवहार और सम्बद्ध विज्ञान इहबास के निदोक प्रोफेसर राजिंदर के धमीजा ने कहा कि कई देश एएलएस के महत्व को पहचानते हैं और उन नीतियों को लागू करते हैं जो एएलएस रोगियों की अनूठी जरूरतों को प्राथमिकता देते हैं।