नई दिल्ली: पाचन संबंधी किसी भी तरह के कैंसर के इलाज के लिए अब एक नई दवा का विकल्प मौजूद होगा। अमेरिका के फूड और ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेटिव विभाग लूथाथेरिया नामक रेडियोएक्टिव को दवा को पैंक्रियाज और गैस्ट्रोइंटेटाइनल कैंसर के लिए स्वीकृत किया है। इस श्रेणी के कैंसर को गैस्ट्रोइंट्रोपैंक्रियाटिक न्यूरोइंडोक्राइन ट्यूमर कहा जाता है। पाचन संबंधी कैंसर के लिए पहली बार किसी रेडियोएक्टिव दवा को इस्तेमाल करने की मंजूरी दी गई है।
एफडीए ऑनकोलॉजी सेंटर के एमडी डायरेक्टर रिचार्ड पैजडर ने बताया कि जीईपी एक दुर्लभ तरह का कैंसर है और इसके इलाज के लिए अभी तक बेहद कम दवाएं उपलब्ध थीं। सेंटर फार ड्रग्स इवेल्यूशन एंड रिसर्च विभाग द्वारा लंबे समय तक किए गए शोध के बाद इसको लांच किया गया है। नई दवा की मंजूरी इस बात को भी प्रमाणित करती है कि एफडीए लगातार दवाओं के शोध और मरीजों की जांचों पर नजर रखती है। नई दवा को पैंक्रियाज, अमाश्य और पाचन संबंधी किसी भी अंग के एक हिस्से में रखा जा सकता है। जो पेट में रहकर धीरे-धीरे कैंसर युक्त सेल्स को खत्म कर देती है। एक अनुमान के अनुसार अकेले अमेरिका में हर 27000 लोगों में एक जीआई कैंसर होता है।
लूथाथेरिया एक रेडियोएक्टिव दवा है जिसपर सोमाटोस्टोन नाम का रिसेप्टर चढ़ाया जाता है। यही रिसेप्टर ट्यूमर के अंदर भी होता है। रिसेप्टर चढ़ी दवा ट्यूमर तक पहुंचकर उसकी सेल्स पर असर करती हैं। लूथारा को प्रमाणित करने से पहले किए गए दो अध्ययनों को इसका आधार माना गया। पहले अध्ययय में जीएस कैंसर के 229 मरीजों को सोमाटोस्टोन नाम के रिसेप्टर चढ़ी दवा को मरीजों को दिया गया। लूथारा और कुछ अन्य दवाओं के नियमित सेवन से ट्यूमर की ग्रोथ कम हो गई। दूसरी तरफ जिन मरीजों को केवल सामान्य दवाएं दी गईं, उसके ट्यूमर में किसी तरह का खास परिवर्तन नहीं देखा गया।
दूसरे अध्ययन में 1214 मरीजों को आधार बनाया गया, जिन्हें केवल सोमाटोस्टेन रिसेप्टर युक्त दवा दी गई। नीदरडलैंड के जिन 260 मरीजों को लूथारा की सिंगल डोज दी गई, उनमे से 16 प्रतिशत मरीजों का ट्यूमर सिकुड़ गया। एक्सपेंडेड एक्सेस प्रोग्राम के लिए मरीजों को नई दवा के सेवन के लिए पंजीकृत किया गया। हालांकि दवा के सेवन में मरीजों में उल्टी, दस्त, बुखार, हाई ब्लड शुगर और खून में पोटेशियम की मात्रा कम देखी गई। लूथाथेरिया के इस्तेमाल से महिलाओं में बच्चेदानी के विकास को प्रभावित कर सकती है। लूथाथेरिया का सेवन करने वाली मरीजों को रेडिएशन सेफ्टी प्रैक्टिस को अनिवार्य रूप से मानना होता है।