नई दिल्ली: दिमाग की जटिल बीमारी के लिए भी अब रोबोट का इस्तेमाल किया जा सकेगा। एम्स ने रोबोटिक आर्म्स की मदद से दक्षिण एशिया में पहली बार मस्तिष्क की ऐसी जगह पर पहुंचने में सफलता हासिल की है, जहां बीमारी की पहचान के लिए जांच के उपकरण तक नहीं पहुंच पाते। रोबोट की मदद से दिमाग के आंतरिक हिस्से में पहुंच कर रोबोट ने गड़बड़ी को ठीक कर दिया, जिसमें ओपेन सर्जरी भी नहीं करनी पड़ी। दिमाग की बीमारी के ऐसे 60 मरीजों का एम्स में अब तक सफल इलाज किया जा चुका है।
एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग के डॉ. पी शरत चंद्रा ने बताया कि बीते छह महीने में जिस मरीजों का रोबोट से इलाज किया जा चुका है, उसमें 65 प्रतिशत मिर्गी के मरीज थे और 35 प्रतिशत मरीजों को ट्यूमर की शिकायत थी। दिन में सात से आठ बार मिर्गी आने के शिकार ऐसे ही एक 23 वर्षीय युवक का एम्स में सफल इलाज किया गया, मरीज को जब दौरे आते थे, उसे दवा देकर ठीक कर दिया जाता था, लेकिन दिमाग के किस हिस्से में गड़बड़ी की वजह से दौरे आ रहे हैं, इसकी पहचान नहीं हो पाती थी। रोबोटिक आर्म की मदद से मरीज की पहले मैगनेटिक सेफ्लोग्राफी की गई, जिससे मिर्गी के कारक प्वाइंट की पहचान हो पाई। इसके बार रोबोटिक आर्म को उस हिस्से तक पहुंचाया गया। सटीक जगह पर रोबोट के पहुंचने के कारण मरीज को बीमारी से पूरी तरह छुटकारा मिल गया। एम्स के
न्यूरोसर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. बीएस शर्मा ने बताया कि पूरे शरीर में दिमाग सबसे अधिक जटिल जगह होती है, जहां सर्जरी की हल्की सी चूक से दूसरी बीमारी होने का डर रहता है। इसलिए किडनी, लिवर या फिर दिल आदि बीमारियों की अपेक्षा दिमाग की बीमारी में रोबोट को इस्तेमाल करना अधिक चुनौती पूर्ण था।
दिमाग के लिए अगल रोबोट
एम्स के न्यूरोसर्जरी विभाग के पूर्व प्रमुख और न्यूरोसर्जन डॉ. एसके महापात्रा ने बताया कि अन्य बीमारियों के अपेक्षा दिमाग का रोबोट सामान्य रोबोट से अलग होता है। बाकी रोबोट में तीन आर्म होती हैं, जबकि दिमाग का रोबोट सिंगल आर्म का होता है। बावजूद इसके दिमाग के किस हिस्से में रोबोट को जाना है, इसका आदेश सर्जन को ही देना होता है, कंप्यूटर आधारित रोबोट की मैमोरी में मरीज की जांच संबंधी रिपोर्ट फीड कर दी जाती है, इसके बाद उसे जरूरी कमांड दे दिया जाता है। रोबोट में लगे टेलीस्कोप की मदद से वह उस जगह तक पहुंच जाता है, और चिकित्सक मॉनीटर पर उसकी सारी गतिविधि देख रहे होते हैं।