लीवर ट्रांसप्लांट से पहले की गई वर्चअुल सर्जरी

नई दिल्ली: पिता के लिवर का एक हिस्सा मिलने के बाद डेविड को नया जन्म मिला। लेकिन डेविड की लिवर प्रत्यारोपण की सर्जरी इतनी सामान्य भी नहीं थी। नाइजीरिया से जिस समय डेविड को इलाज के लिए भारत लाया गया, माता पिता उसके बचने की उम्मीद छोड़ चुके थे। लिवर बढ़ा हुआ होने के साथ ही डेविड को हार्निया और कुपोषण की भी शिकायत थी। खून में सफेद और लाल रक्त कणिकाएं होने के कारण हीमोग्लोबिन बेहद कम हो गया और रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बेहतर नहीं थी। ऐसे में लिवर प्रत्यारोपण जैसी सर्जरी का विकल्प बेहद चुनौती भरा था।

2 अगस्त को बच्चे की सर्जरी की गई और 29 सितंबर को उसे अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई। मेदांता अस्पताल के लिवर रोग और प्रत्यारोपण विभाग की डॉ. नीलम मोहन ने बताया कि नवजात के खून में अमोनिया, एसिड, ब्लूरूबिन सहित आयरन की अधिक मात्रा थी। मां के गर्भ में रहते हुए बच्चे को फाइब्रोसिस सेल्स का हमला होने के कारण बच्चे के शरीर पर रैसेश भी उभरे हुए थे। बोन मैरो की बायोप्सी से पता चला कि बच्चे को अति गंभीर एचएलएच बीमारी भी थी जिसके सेल्स हड्डी के अंदर के बाकी सेल्स को भी खत्म कर रही थी। दवाएं और इंजेक्शन से बच्चे को बचाना मुश्किल था, पिता लिवर का एक हिस्से देना चाहते थे, लेकिन इसमें दूसरी अहम चुनौती थी कि पिता का लिवर बच्चे के छोटे लिवर की अपेक्षा 40 किलोग्राम अधिक वजन का था। जिसका केवल पांच से छह प्रतिशत हिस्सा प्रत्यारोपित किया जाना था।

कैसे हुई सर्जरी
सर्जरी की चुनौतियों को देखते हुए पहली बार वर्चुअल सर्जरी की गई। जिसमें लिवर को कहां और कैसे प्रत्यारोपित करना है, इसका सटीक अंदाजा लगाया गया। नवजात के शरीर में क्योंकि पहले से ही खून की कमी थी इसलिए सर्जरी के दौरान खून न बहना भी चुनौती थी। उम्र को देखते हुए दवाओं की डोज माइक्रोग्राम में भी गई। जबकि सर्जरी के दौरान 19 घंटे तक बच्चे को एनीस्थिसिया (बेहोश) दिया गया। लिवर प्रत्यारोपण यूनिट के डॉ. एएस सोयन ने बताया कि सर्जरी के बाद दो हफ्ते तक बच्चे को ट्रैक्टॉमी (गले के जरिए तरल देना) के जरिए फ्लूड और ऑक्सीजन दिया गया। सर्जरी के पांच हफ्ते बाद ऑक्सीजन पाइप हटा दिया गया, अब डेविड पूरी तरह स्वस्थ है।

जापान में हुई इससे पहले सर्जरी
सबसे कम वजन और कम उम्र में लिवर प्रत्यारोपण का इससे पहले एक केस जापान में एक नवजात की सर्जरी की गई। जिसमें बच्चे का वजन 2.5 किलोग्राम था, जबकि देश में इंदौर के चार किलोग्राम के एक बच्चे का लिवर बदला गया। 50 सदस्यीय लिवर प्रत्यारोपण की टीम ने सर्जरी को दुनिया के सबसे छोटे और कम वजन के लिवर प्रत्यारोपण सर्जरी के लिए सर्जरी की।

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