नई दिल्ली
भारत में माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों में तनाव दूर करने के लिए समस्याओं के समाधान आधारित व्यवहारिक काउंसलिंग किफायती और कारगर उपाय हो सकती है। यह दावा एक अध्ययन में किया गया है।
‘लांसेट चाइल्ड एंड एडोलेसेंट हेल्थ’ पत्रिका में प्रकाशित ‘प्राइड’ परियोजना के परिणामों के अनुसार किसी स्कूल में तीन सप्ताह का ऐसा कार्यक्रम देश के युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी प्रभावी प्रारंभिक पहल साबित हो सकता है। अध्ययन में 12 से 20 साल तक के छात्रों को शामिल किया गया। उनका चयन स्कूल में, सहपाठियोंके बीच तथा परिवार में सामने आने वाली विभिन्न प्रकार की मनोवैज्ञानिक समस्याओं से जुड़े मानसिक स्वास्थ्य के लक्षणों के आधार पर किया गया। इन सत्रों को स्कूल के उन काउंसलर ने संबोधित किया जिन्होंने पहले कोई मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था। गोवा के मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान संगठन ‘संगत’ ने अमेरिका के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल तथा ब्रिटेन के लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन ऐंड ट्रॉपिकल मेडिसिन तथा यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स के साथ मिलकर यह अध्ययन किया। दल ने पाया कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भारत के युवाओं के लिए सेहत संबंधी बड़ी चिंता है। यह 15 से 24 वर्ष आयु वर्ग के लोगों के बीच आत्महत्या की भी एक बड़ी वजह है। उन्होंने कहा कि अब तक इस तरह के सभी प्रयास अधिक आय और अधिक संसाधन संपन्न वर्गों के बीच किये जाते रहे हैं। अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि इस कार्यक्रम में केवल किसी एक तरह की मानसिक स्वास्थ्य अवस्था पर ध्यान देने के बजाय कम आय वाले वर्ग में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों में सुधार के लिए व्यापक रूप से लागू साधारण समाधान प्रदान किए जाते हैं। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के ग्लोबल हेल्थ के प्रोफेसर एवं मुख्य अध्ययनकर्ता विक्रम पटेल ने कहा, ‘‘मैं इस बात को लेकर बहुत उत्साहित हूं कि ये परिणाम दिखाते हैं कि दिल्ली की गरीब बस्तियों में छात्रों को ऐसे काउंसलर बहुत किफायती मनोवैज्ञानिक परामर्श प्रदान कर सकते हैं जिन्होंने कोई पहले मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया है। उन्होंने एक बयान में कहा, हमें अब परामर्श के प्रभावों में सुधार की दिशा में और संपूर्ण स्कूल सेक्टर तक इसका विस्तार करने की दिशा में काम करना चाहिए।