दिल्ली : एक 42 वर्षीय मरीज दीपक अग्रवाल को अपनी दायीं पिंडली की हड्डी में ट्यूमर हो जाने के चलते कई शल्य क्रियाओं से गुजरना पड़ा। यहां तक कि स्थानीय अस्पताल में उनसे कह दिया गया कि संक्रमण के कारण उनकी टांग काटनी पड़ेगी! लेकिन दिल्ली स्थित संत परमानंद अस्पताल के वरिष्ठ ज्वाइंट रीप्लेसमेंट सर्जन डॉ. साइमन थॉमस की अगुवाई में डॉक्टरों की एक टीम ने बेहद जटिल और पेचीदा लिम्ब सैल्वेज सर्जरी करके मरीज को नया जीवन दे दिया है।
अग्रवाल अपने परिवार के इकलौते कमाऊपूत थे और लगभग साल भर तक बिस्तर पर पड़े रहने के चलते उनके लिए काम-धाम शुरू कर पाना संभव नहीं था। इस 42 वर्षीय व्यक्ति के घुटने में कभी न खत्म होने वाला दर्द बना रहता था। बाद में उनकी पिंडली की हड्डी में 4×4 सेंटीमीटर के आकार का ट्यूमर मौजूद होने के बारे में पता चला। ट्यूमर हटाने के लिए दिल्ली के ही एक स्थानीय अस्पताल में उनकी सर्जरी की गई। लेकिन ट्यूमर पुनः पैदा हो गया! इसे फिर से हटाने के लिए उनकी मेगा प्रोस्थेसिस टोटल नी रीप्लेसमेंट सर्जरी कर दी गई। उन लोगों ने मरीज की पिंडली का ऊपरी एक तिहाई हिस्सा भी निकाल दिया। लेकिन चंद दिनों बाद मरीज को अहसास हुआ कि ऑपरेशन वाले घुटने में संक्रमण हो चुका है। कई शल्य-क्रियाओं के बावजूद संक्रमण बना रहा और यह संक्रमण इतना गंभीर था कि घुटने में चारों तरफ से मवाद बह रहा था तथा इसके चलते उनकी हड्डी क्षतिग्रस्त हो गई थी। संक्रमण को शरीर के बाकी हिस्सों में फैलने से रोकने के लिए वहां के सर्जन ने मरीज की टांग काटने की सलाह दे दी। ऐसी हालत में उन्होंने किसी और विशेषज्ञ से राय लेने की सोची और वरिष्ठ ज्वाइंट रीप्लेसमेंट सर्जन डॉ. साइमन थॉमस के पास पहुंचे।
डॉ. साइमन थॉमस बताते हैं, “मरीज की रिपोर्ट्स का अध्ययन करने के बाद हमें लगा कि आगे की कोई भी सर्जरी बेहद जटिल होने जा रही है क्योंकि हड्डी का संक्रमण दूर करने के लिए स्थानीय अस्पताल में उसकी पहले ही कई शल्य-क्रियाएं हो चुकी हैं। आखिरकार अपनी टीम से सलाह-मशविरा और मरीज के परिजनों को समझाने के बाद सर्जरी की तैयारी की गई। उद्देश्य यह था कि संक्रमण दूर किया जाए और मरीज की टांग बचाई जाए।”“संक्रमित ज्वाइंट रीप्लेसमेंट्स के उपचार की दो चरणों वाली तकनीक का इस्तेमाल करते हुए सर्जरी करने की योजना बनाई गई। पहले चरण में तमाम मृत ऊतकों एवं संक्रमित प्रत्यारोपण को हटाया जाना था। इस चरण के आखिर में घुटने को एंटीबायोटिक मिश्रित सीमेंट से भरा जाता है। पहले चरण की सफलता के बाद मरीज को संक्रमण से पूरी तरह छुटकारा मिल जाता है।”
“एक बार जब घुटना सूख जाता है और उसमें से मवाद बिलकुल नहीं निकलता, हम अगले यानी दूसरे चरण की तैयारी करते हैं। इस आखिरी चरण में मरीज के घुटने का बिल्कुल नया प्रत्यारोपण किया जाता है। दूसरा चरण सम्पन्न होने के तत्काल बाद अगले ही दिन मरीज वॉकर की मदद से स्वयं चलने-फिरने में सक्षम हो जाता है।” अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ. थॉमस जानकारी देते हैं- “नई पीढ़ी के प्रत्यारोपण घुटने की कार्यावधि बढ़ा देते हैं और प्राथमिक सर्जरी के ठीक बाद होने वाली एक रिवीजन सर्जरी के पश्चात मरीज अपनी लगभग हर दिनचर्या और गतिविधि स्वयं सम्पन्न कर लेता है।