नई दिल्ली,
बच्चों की आबादी के बीच दृष्टिदोष (खासकर मायोपिया) को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए ऑल इंडिया ऑप्थैल्मोलॉजी सोसायटी ने सन फार्मा के साथ मिलकर चाइल्ड मायोपिया से बचाव और प्रबंधन के लिए गाइडलाइंस जारी की।
यह कार्यक्रम एआईओएस (ऑल इंडिया ऑप्थैल्मोलॉजिकल सोसाइटी All India Ophthalmological Society ) के अध्यक्ष डॉ. बरुण कुमार नायक, डॉ. ललित वर्मा, डॉ. हरबंस लाल, डॉ. (प्रो.) नम्रता शर्मा और डॉ. (प्रो.) राजेश सिन्हा के अलावा कई अन्य विशेषज्ञों की मौजूदगी में पेश किया गया। इसमें बच्चों के मायोपिया (Childhood Myopia)के मामलों की शुरुआती और समयबद्ध जांच तथा इलाज के महत्व पर जोर दिया गया, साथ ही इस बात पर सहमति बनी की एआईओएस की सिफारिश के बाद शीघ्र ही साल में एक दिन चाइल्डहुड मायोपिया के रूप में घोषित किया जाएगा।
डॉ. नायक ने कहा कि बच्चों की मायोपिया के प्रबंधन को लेकर इस राष्ट्रीय और विशेषज्ञ आधारित बयान जारी करने का यह वाकई एक गौरवशाली अवसर है। पश्चिमी देशों के पीडियाट्रिक अॉप्थैल्मोलॉजिस्टों द्वारा हालांकि कई सारी गाइडलाइंस जारी की जा चुकी हैं लेकिन भारतीय नेत्र विशेषज्ञों के लिए ऐसी कोई व्यावहारिक व्यवस्था नहीं है और न ही हमारे देश के लिए कोई प्राथमिकता आधारित क्लिनिकल प्रैक्टिस निर्धारित है। इस दस्तावेज से यह कमी दूर होने की उम्मीद है और भारतीय परिस्थितियों के अनुसार सर्वश्रेष्ठ गाइडलाइंस जारी की गई है। मायोपिया यानी निकट दृष्टिदोष दुनिया के बच्चों की एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है।’
हाल ही में भारतीय नियामक संस्था सीडीएससीओ ने भी प्रोग्रेसिव मायोपिया के इलाज के लिए भारत में फार्माकोलॉजिकल ड्रग एट्रोपाइन 0.01 फीसदी को मंजूरी दे दी है, इसलिए शुरुआती चरण में जांच कराने से सही समय पर इलाज कराने और बच्चों को उज्ज्वल भविष्य संवारने में मदद मिलती है।
एम्स के राजेन्द्र प्रसाद नेत्र चिकित्सालय और एआईओएस की जनरल सेक्रेटरी डॉ नमृता शर्मा ने बताया कि मायोपिया सबसे ज्यादा फैलने वाला और बहुत सामान्य दृष्टिदोष है। अनुमान है कि इससे विश्व की 20 फीसदी आबादी प्रभावित है जिनमें लगभग 45 फीसदी वयस्क और 25 फीसदी बच्चे शामिल हैं। निकट दृष्टिदोष पर ध्यान न देना या इलाज न कराना ही दृष्टि गंवाने का सबसे मुख्य कारण बनता है जिस वजह से मोतियाबिंद, मैक्युलर डिजनरेशन, रेटिनल डिटैचमेंट या ग्लूकोमा जैसी बीमारियां हो जाती हैं। कोविड काल में और डिजिटल प्लेटफॉर्म अपनाने के मामले तेजी से बढ़ने के कारण छोटे शिशु और स्कूली बच्चे विभिन्न प्रकार के दृष्टिदोष के शिकार हुए हैं जिनमें सबसे ज्यादा मामले निकट दृष्टिदोष के ही हैं। ऐसे मामलों में तत्काल चश्मा, कॉन्टैक्ट लेंस या जरूरत पड़ने पर सर्जरी जैसे उपाय अपनाने की जरूरत है ताकि उनके बड़े होने पर आंखों संबंधी अन्य कोई परेशानी न आए।’
एम्स आरपी सेंटर के डॉ. रोहित सक्सेना का कहना है कि एआईओएस विश्व में नेत्र चिकित्सा की सबसे बड़ी संस्था है और भारत में आंखों की सेहत बनाए रखने के लिए समर्पित है क्योंकि मायोपिया या निकट दृष्टिदोष दुनियाभर के बच्चों में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। पिछले कुछ दशकों से मायोपिया (Childhood Myopia) के मामले न सिर्फ दुनिया बल्कि भारत में भी बढ़ रहे हैं। इसके अलावा कोविड महामारी के कारण फिजिकल शिक्षण या बाहरी गतिविधियों की जगह वर्चुअल प्लेटफॉर्म ने ले ली। इस वजह से बच्चों के स्क्रीन पर समय बिताने की अवधि बढ़ गई और उनमें मायोपिया के मामले भी तेजी से बढ़े। इससे बच्चों के सीखने और प्रगति करने की रफ्तार पर असर पड़ा है और यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में आंखों संबंधी दिक्कतें बढ़ सकती हैं।’
एआईओएस के अध्यक्ष ललित वर्मा ने कहा कि जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि निकट दृष्टिदोष की स्थिति में नजदीकी वस्तुओं पर फोकस करने में कोई परेशानी नहीं होती लेकिन हमारी आंखें दूर की वस्तुओं पर फोकस नहीं कर पाती हैं। बच्चों में आनुवांशिक कारणों से मायोपिया (Childhood Myopia)मामलों का खतरा तब बढ़ जाता है जब उनके मां-बाप दोनों निकट दृष्टिदोष से पीड़ित हों। इसके अलावा पर्यावरण और डिजिटल लगाव के कारण भी कोविड के बाद इसके मामले खतरनाक स्तर पर बढ़ चुके हैं।’