नई दिल्ली: दिमाग की केन्द्रीय तंत्रिका प्रणाली को ऑटोइम्यून करने वाली मल्टीपल स्कलेरोसिस बीमारी का इलाज स्टेम सेल्स से संभव है। इस बावत एम्स सहित अंतराष्ट्रीय स्तर पर किए जाने वाले शोध से बेहतर और सस्ते इलाज की उम्मीद की जा सकती है। अन्य किसी भी बीमारी की अपेक्षा स्टेम सेल्स का प्रयोग मल्टीपल स्कलेरोसिस में अधिक सफल कहा जा सकता है। इसके लिए बीमारी के अति गंभीर मरीजों को केवल एक महीने के लिए अस्पताल में भर्ती करना होगा।
एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. कामेश्वर प्रसाद ने बताया कि बीमारी के इलाज के लिए स्टेम सेल्स की मदद से इलाज के लिए अब तक विश्व भर में 700 मरीजों का पंजीकरण किया जा चुका है। मरीज के शरीर की ऑटोलोगस स्टेम सेल्स को अस्थि मज्जा में प्रत्यारोपित अस्वस्थ सेल्स की जगह स्वस्थ्य सेल्स को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इसके लिए बीमारी के बेहद गंभीर मरीजों का चयन किया जाता है, जिन्हें एक महीने के इलाज के तहत ऑटोइम्यून लिफोसाइट्स की जगह स्वच्छ ऑटोलोगस से तैयार स्टेम सेल्स का प्रत्यारोपण कर दिया जाता है। मालूम हो कि बीमारी में शरीर के लिए रक्षा कवच तैयार करने वाली ही सेल्स ही बीमारी की वजह बन जाती है। इन सेल्स की जगह नई सेल्स प्रत्यारोपित कर मरीज को ठीक किया जा सकता है। शोध को प्रारंभिक चरण में सफलता मिली है। दो से तीन साल के भीतर चिकित्सक एमएस का इलाज स्टेम सेल्स से पूरी तरह करने में सफल होगें।
बीमारी की जेनेरिक दवा नहीं लिखते चिकित्सक
एम्स के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रोहित भाटिया ने बताया कि बीमारी के इलाज के लिए अब तक बाजार में एफडीए प्रमाणित महंगी दवाएं ही मौजूद हैं, जिसकी वजह से मरीज का साल का खर्च तीन से चार लाख रुपए तक आता है। इलाज में इस्तेमाल होने वाले जेनेरिक दवा (एजाथिप्राइन) को बढ़ावा देने के लिए आईसीएमआर सहित केन्द्र सरकार को पत्र लिखा गया है। एमएस की जेनेरिक दवा से साल का खर्च दस हजार रुपए तक किया जा सकता है। मालूम हो कि सस्ती दवा को मेडिसन की टेस्ट बुक में प्राथमिकता में शामिल नहीं किया गया है।