नई दिल्ली: आधुनिक समय में उन्नत तकनीक और गहरे प्रयोगशाला अनुसंधान के साथ अब निस्संतान दंपत्ति बच्चे पैदा करने के इलाज के लिए स्टेम सेल उपचार का लाभ उठा सकते हैं। स्टेम सेल उपचार भारत में कई तरह के संकेतों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। और अब इसने लाखों दंपत्तियों की आशाएं उत्पन्न की है, जिन्हें निस्संतान होने की समस्या का सामना करना पड़ा है। अपनी पुनर्जनन क्षमता के कारण, स्टेम सेल को महिलाओं में बांझपन के इलाज में सुधार लाने के एक आशा जनक साधन के तौर पर देखा जाता है। स्टेम सेल टोटिपोटेंट कोशिकाएं हैं, जिनमें किसी भी तरह की कोशिका बनने की क्षमता है। स्त्री रोग विज्ञान में दो मुख्य संकेत होते हैं जहां स्टेम सेल उपचार का विकास किया जा रहा है, ये हैं :
वो महिलाएं जिनता एंडोमेट्रियम पतली हो:
पतली एण्डोमेट्रियम को महिलाओं के बांझपन के सबसे सामान्य कारणों में से एक माना जाता है। एण्डोमेट्रियम बच्चे दानी की अंदरूनी परत है जो अण्डे को जमाने की प्रक्रिया में सहायता देती है। इससे प्रभावित महिलाओं को माहवारी नहीं आती क्योंकि उनकी बच्चेदानी की अंदरूनी परत (एण्डोमेट्रियम) तपेदिक (tuberculosis) जैसे रोग या बार बार Dilation and curettage, (एक प्रक्रिया जिसमे असामन्य उतोकों को निकालने के लिए कुरेदा जाता है) के कारण नष्ट हो जाती है। इन महिलाओं में अंतत: बांझपन होता है। ऐसी महिलाओं में हिस्टेरोस्कोप (दूरबीन) की सहायता से, जिसमें बच्चे दानी के अंदर एक पतला टेलीस्कोप डाला जाता है और स्टेम सेल अंदर डाली जाती हैं। तब ये कोशिकाएं अंदरूनी परत को दोबारा बढ़ने में सहायता देती है और भावी गर्भावस्था होने पर शिशु को पोषण देती हैं।
वो महिलाएं जिनमे अण्डों की कम संख्या हो:
अधिक उम्र की महिलाएं, जिनमें अण्डों की संख्या कम हो जाती है या जिन महिलाओं में समय से पहले अण्डों का भण्डार समाप्त हो जाता है या रेडिएशन के कारण वे प्राकृतिक रूप से गर्भ धारण नहीं कर पाती हैं, उन्हें केवल आईवीएफ का सहारा लेना होता है। स्टेम सेल उपचार की खोज के साथ इन कोशिकाओं को लेपेरोस्कोप की सहायता से अण्डाशय के अंदर डाला जाता है। इससे अण्डाशय में नए अण्डों की वृद्धि में मदद मिलती है और इन महिलाओं में सामान्य रूप से गर्भधारण कर सकते है।
विधि :
स्टेम सेल को रोगी की अस्थि मज्जा (bone marrow) से निकाला जाता है, और उसे प्रयोगशाला में ताज़ा तैयार कर उसी समय मरीज़ में इंजेक्ट किया जाता है। चूंकि ये स्वयं रोगी की अस्थि मज्जा से निकाले जाते हैं, अत: इसमें अस्वीकार होने, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया या विषम संक्रमण होने की कोई संभावना नहीं होती है।