नई दिल्ली
दिल्ली के प्रमुख बड़े अस्पतालों में इलेक्ट्रानिक मेडिकल रिकार्ड व्यवस्था से जोड़ दिया गया है। बेहतर इलाज के लिए इसकी सुविधा शहरी तथा ग्रामीण सभी क्षेत्र में होनी चाहिए। हिस या हॉस्पिटल इंफार्मेशन सिस्टम न सिर्फ मरीजों के इलाज संबंधी दस्तावेज सुरक्षित रखता है बल्कि इससे जांच और इलाज भी बेहतर हो सकता है। हिस, बिना 2017 में केन्द्र सरकार द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल है।
एसोचैम की तीसरी हेल्थ सिक्योरिटी टू ऑल, ट्रांसफार्मिंग हेल्थ केयर विषय पर बोलते हुए सफदरजंग अस्पताल के डॉ. राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि देश में अब भी बड़ी संख्या में क्लीनिक और अस्पताल मैनुअल या ओपीडी कागज पर काम कर रहे हैं, जिसकी वजह से मरीजों के इलाज संबंधी दस्तावेज सुरक्षित रखना मुश्किल होता है। दिल्ली में सफदरजंग, एम्स और राममनोहर लोहिया अस्पताल में रेफरल यूनिट के तौर पर काम कर रहे हैं, जिन अस्पतालों में हिस सुविधा काम नहीं कर रही होती है वहां से मरीज के इलाज संबंधी आंकड़े जुटाना मुश्किल होता है। डॉ. राजेन्द्र शर्मा ने कहा कि सभी अस्पतालों को इलेक्ट्रानिक मेडिकल रिकार्ड से जोड़ना जरूरी है, जिससे किसी भी संबंधित अस्पताल में इलाज कराने जाने पर मरीज की बीमारी की जानकारी एक क्लिक पर उपलब्ध हो सकेगी। इससे मरीज को बार-बार जांच की परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी और मरीज के अस्पताल पहुंचने पर ही उसके इलाज की हिस्ट्री चिकित्सक के पास होगी। एसोचैम के सेमिनार में स्वास्थ्य बीमा, बेहतर इलाज और सरकारी व निजी अस्पतालों की भागीदारी सहित कई मुद्दों पर विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी। सर्वोदय अस्पताल के हेमेटोलॉजी विभाग के डॉ. पवन कुमार सिंह ने बताया कि महंगा इलाज आज भी आम इंसान की पहुंच के बाहर है ब्लड कैंसर का इलाज निजी अस्पताल में जहां 12 से 15 लाख में होता है वहीं इसके लिए एम्स में भी मरीज को सात से दस लाख रूपए जुटाने ही पड़ते हैं, इसके लिए राष्ट्रीय अरोग्य निधि, कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं और क्राउड फंडिंग के अलावा और कोई विकल्प नहीं। एसोचैम के जरनल सेक्रेटरी डीएस रावत ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में बीते कई साल कई नई चुनौतियां आईं है तो पैलिएटिव केयर, वेलनेस, हीलिंग और कई नए पक्ष शामिल हुए हैं। कहा जा सकता है कि चिकित्सा क्षेत्र अब ईलनेस से वेलनेस की ओर बढ़ रहा है।