1.8 किलो वजन के नवजात के दिल का छेद, बिना सर्जरी ठीक किया

1.5-Month-Old-Newborn Weighing 1.8 kgs Successfully Treated for Complex Heart Defect Using Piccolo Device at Fortis Escorts, Okhla
1.5-Month-Old-Newborn Weighing 1.8 kgs Successfully Treated for Complex Heart Defect Using Piccolo Device at Fortis Escorts, Okhla

 

New Delhi

जन्म से ही दिल में छेद के साथ पैदा हुए नवजात को डॉक्टरों ने बिना सर्जरी के ही ठीक कर दिया। नवजात का वजन मात्र 1.8 किलोग्राम था, मात्र डेढ़ महीने की उम्र के इस नवजात के दिल के छेद का इलाज विशेष तकनीक से किया गया। सफल मेडिकल प्रोसेस के छह महीने के बाद बच्चा अब पूरी तरह ठीक है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट, ओखला के डॉक्टरों ने एक दुर्लभ प्रक्रिया की मदद से 1.5 माह के नवजात का सफलतापूर्वक इलाज कर उसे जीवनदान दिया है। मात्र 1.8 किलोग्राम वजन का यह शिशु पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस यानि हृदय में छेद की समस्या से पीड़ित था। आमतौर पर, पीडीए क्लोज़र की प्रक्रिया सर्जिकल होती है, लेकिन इस मामले में, नॉन-सर्जिकल प्रक्रिया को अपनाया गया, क्योंकि इस नन्हे शिशु को पहले से ही और भी कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं थीं जिनकी वजह से उसकी हालत काफी नाजुक थी। ऐसे में ओपेन सर्जरी करना जोखिम भरा था। करीब एक घंटे तक चली नॉन-सर्जिकल प्रक्रिया के बाद नवजात को चार दिनों में स्थिर अवस्था में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

जब नवजात को उपचार के लिए अस्पताल लाया गया था, तो उसकी हालत काफी गंभीर थी और उसे सेप्सिस के लक्षणों के चलते सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। साथ ही हार्ट फेल होने के लक्षण भी थे, नवजात की हृदय गति भी बढ़ी हुई थी और उसे काफी अधिक पसीना आ रहा था। वह कुछ भी फीड लेने में असमर्थ था और उसकी लीवर भी बढ़ा हुआ था तथा वज़न नहीं बढ़ रहा था। इकोकार्डियाग्राम से पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस (पीडीए – इस कंडीशन में जन्म से पूर्व और जन्म के तुरंत बाद भी शिशुओं में एक अतिरिक्त रक्तवाहिका पायी जाती है) का पता चला। अधिकांश शिशुओं में जिनका हृदय आमतौर पर सामान्य होता है, पीडीए जन्म के कुछ दिनों के बाद अपने आप सिकुड़ने लगता है। लेकिन यदि यह ज्यादा समय तक रह जाता है तो इसकी वजह से फेफड़ों में अतिरिक्त खून का प्रवाह होता है, जिसके कारण मल्टी-ऑर्गेन डिस्फंक्शन की शिकायत होती है। एंटीबायोटिक्स और अन्य दवाओं के बावजूद, सांस लेने में कठिनाई की वजह से नवजात की हालत लगातार बिगड़ती जा रही थी। तब डॉक्टरों ने पिकोलो डिवाइस क्लोज़र प्रक्रिया को चुना, जो कि इस शिशु के कम वज़न और सेप्सिस के लक्षणों के मद्देनज़र चुनौती से भरपूर था। यह सफल रहा और अब इलाज पूरा के छह हफ्ते बाद फॉलो-अप के दौरान नवजात की हालत में सुधार देखा गया है। बच्चे का वज़न भी बढ़ रहा है और साथ ही, हृदय संबंधी अन्य सभी फंक्शन भी नॉर्मल हैं। फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट के पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी के निदेशक डॉ नीरज अवस्थी के नेतृत्व में डॉक्टरों ने टीम ने पिकोलो डिवाइस क्लोज़र की मदद से इस छेद को बंद कर नवजात का जीवन बचाया।

जन्मजात विकार का आसानी से नहीं पता नहीं लग पाता

डॉ नीरज अवस्थी ने कहा , “पेटेंट डक्टस आर्टेरियोसस बच्चों में जन्मजात दोष होता है, जिसका अक्सर डायग्नॉसिस नहीं हो पाता। शिशुओं में इस कंडीशन के चलते सर्कुलेशन रक्त का प्रवाह प्रभावित होता है जिसके कारण कई अंगों में खराबी आ सकती है। इस मामले में, नवजात शिशु की हालत काफी नाजुक थी और उसका वज़न भी कम था। इतने कम वज़न और साथ ही सिस्टेमेटिक इंफ्लेमेशन की समस्या के चलते शिशु के हृदय का छेद बंद करना आसान नहीं था। ऐसे में हमने पीडीए डिवाइस क्लोज़र का विकल्प चुना जिसकी मदद से बिना सर्जरी के छेद को बंद किया गया। इससे पहले, इस खास प्रक्रिया से कुछ गिने-चुने हाई रिस्क मामलों में ही उपचार किया गया है। यदि समय पर इस शिशु का इलाज नहीं किया जाता तो उसका जीवन बचाना मुश्किल था।

अस्पताल के फैसिलटी डायरेक्टर डॉ विक्रम अग्रवाल ने कहा , “यह मामला नवजात की उम्र और नाजुक हालत के मद्देनज़र काफी चुनौतीपूर्ण था। लेकिन तमाम कठिनाइयों और जटिलताओं के बावजूद, अस्पताल के डॉक्टरों द्वारा सटीक मेडिकल मूल्यांकन और सफल प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप मरीज का जीवन बचाया जा सका।

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