गर्भपात के लिए कारक बैक्टीरिया का पता एक देशी किट लगाएगी। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा किए गए दस साल के सफल लैबोरेटरी टेस्ट के बाद अब इस किट को बाजार में उतारा जाएगा। किट बनाने का जिम्मा भारतीय कंपनी को दिया गया जिससे 100 से 200 रुपए के कम शुल्क पर यह आसानी से उपलब्ध हो सकेगी।
इंस्टीट्यूट ऑफ पैथोलॉजी की शोधकर्ता डॉ. अरूणा मित्तल ने बताया कि क्लैमाइडिया ट्रेकोमेटिक्स (सीटी) बैक्टीरिया की वजह से हर साल 30 प्रतिशत महिलाएं गर्भपात की शिकार होती हैं। बैक्टीरिया की पहचान न हो पाने के कारण यह बाद में सरवाइकल कैंसर का भी कारक बन जाता है, जबकि बैक्टीरिया की सही समय पर जांच कर दवाओं से इसका इलाज किया जा सकता है। बैक्टीरिया की वजह से महिलाओं में गर्भधारण संबधी अन्य परेशानियां भी होती है। किट पर सफल शोध के बाद पेटेंट हासिल किया गया। जिसके बाद 28 जून को किट बनाने का जिम्मा निजी फार्मा कंपनी को सौंपा गया है। आईसीएमआर के निदेशक डॉ. विश्वमोहन कटोच ने बताया किट का अधिक महिलाओं को फायदा मिल सके, इसलिए इसकी कम कीमत रखी गई है।
बैक्टीरिया की वजह गर्भपात का प्रतिशत
ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं – 0.5 से 28
गाइनी ओपीडी की महिलाएं- 0.2 से 31.3
सरवाइकल संबधी परेशानी – 3.0
निसंतान और पीआईडी मरीज- 0.5 से 24.2 प्रतिशत
नोट- यौन संक्रमण में शामिल सीटी बैक्टीरिया के 20 प्रतिशत मामले पुरुष वाहक होते हैं।
गर्भपात की अन्य वजह
रूबेला और टार्च वायरस के अलावा पोलीसिस्टक ओवेरियन सिंड्रोम भी गर्भपात भी वजह हो सकता है। जबकि क्लैमाइडिया ट्रेकोमेटिक्स गर्भपात का बैक्टीरियल संक्रमण है।
कैसे होती है जांच
सीटी जांच के लिए पेप्स स्मीयर सैंपल लिया जाता है। जिसकी डीएफए (डायट फ्लोरोसेंट एस्से) के साथ जांच की जाती है। डीएफए जांच के बाद पीसीआर(पॉलीमर चेन रिएक्शन)भी किया जाता है।