नई दिल्ली,
विश्व भर में यदि टीबी नियंत्रण कार्यक्रम को सही ढंग से लागू किया जाता तो अब तक इस बीमारी को जड़ से खत्म किया जा चुका होता, टीबी कार्यक्रम को शुरू हुए 137 साल हो गए है। वर्ष 1882 शुरू किया गया था। अब भारत सरकार का लक्ष्य है कि 2025 तक टीबी संक्रमण, इससे होने वाली असमायिक मृत्यु और विकलांगता को जड़ से खत्म किया जा सकेगा।
विश्व टीबी दिवस की जानकारी देते हुए टीबी रोको अभियान आईएमए के आर्गेनाइजिंग प्रमुख डॉ. नरेन्द्र सैनी ने कि दिल्ली की प्रमुख शाखा सहित रविवार को टीबी हारेगा, देश जीतेगा कार्यक्रम की शुरूआर 750 शाखाओं पर की जाएगी। इस उपलक्ष्य में टीबी नियंत्रण पर मोटिवेशनल गाना भी तैयार किया गया है। 137 साल पूरे होने के अवसर पर आईएमए परिसर से 137 गुब्बारों को आईएमए के अध्यक्ष डॉ. शांतनु सेन द्वारा उड़ाया जाएगा। आईएमए के वित्त सचिव डॉ. रमेश दत्ता ने बताया कि टीबी उन्नुमूलन में सबसे अहम समस्या इलाज के प्रति लापरवाही सामने आई है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार टीबी का पूरा कोर्स न करने की वजह से एमडीआर टीबी जैसे मामले बढ़ रहे हैं। दूसरा अहम मुद्दा महिलाओं में टीबी संक्रमण का है, महिलाएं अपनी बीमारी को लेकर सजग नहीं रहती और बीमारी की गंभीर अवस्था में वह इलाज के लिए सेंटर पहुंचती हैं। इस समय देश में अकेले 32 लाख महिलाएं टीबी संक्रमण की शिकार हैं। घनी बस्ती जहां साफ सफाई नहीं होती वहां आसानी से यह संक्रमण फैलता है। डॉ. नरेन्द्र सैनी ने कहा कि तीन हफ्ते से अधिक खांसी होने पर बल्गम की जांच करानी चाहिए जिससे चेस्ट या छाती की टीबी का पता चलता है, जबकि इसके अलावा टीबी शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है। लगातार वजन कम होना, भूख न लगना या बुखार का बने रहता अन्य टीबी के लक्षण हो सकते हैं। हालांकि 80 प्रतिशत टीबी छाती की ही पाई जाती है।