जरूरतमंद किसी भी मरीज के लिए खून का बंदोबस्त करना आसान है, लेकिल बोन मैरो प्रत्यारोपण के लिए खून ढुंढना मुश्किल है। एप्लास्टिक एनीमिया की शिकार बच्ची बेनिन का इलाज करने के लिए जर्मनी से खून मंगाया गया। इस तरह यह भारत में पहला मामला होने का दवा किया जा रहा है, जिमसे बोन मैरो प्रत्यारोपण के लिए बच्ची रक्तदाता के अनरिलेटेड खून का इस्तेमाल किया गया।
एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के बोनमैरो प्रत्यारोपण यूनिट के डॉ. प्रशांत मेहता ने बताया कि अति गंभीर एप्लास्टिक एनीमिया वह स्थिति होती है जिसमें मरीज के शरीर में खून की नई सेल्स बनना बंद हो जाता है। जिसकी वजह से मरीज को हमेशा थकान बनी रहती है। एक समय के बाद सेल्स न बनने के कारण मरीज के जीवन को भी खतरा हो सकता है। इस स्थिति में बोन मैरो प्रत्यारोपण के जरिए स्वस्थ सेल्स शरीर में प्रत्यारोपित की जाती हैं। बेनिन के मामले में उसे एलोजेनिक प्रत्यारोपण की जरूरत थी, जिसके लिए खून के एचएलए का मिलान जरूरी होता है। लेकिन परिवार के किसी भी सदस्य का खून मिलान नहीं हो पाया। देश में खून न मिलने के बाद अंतराष्ट्रीय स्तर पर तलाश की गई। चार महीने की मेहनत के बाद जर्मनी के एक युवक को एमयूडी मैच्ड अनरिलेटेड डोनर के रूप में खोजा गया। नये सेल्स को लैबोरेटरी में विकसित कर बच्ची में प्रत्यारोपित किया गया, चार हफ्ते के अंदर खून की नई सेल्स बनने लगी। छह हफ्ते बाद खून के सेल्स बढ़ने के साथ ही उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में भी बदलाव देखा गया।