200 तरह की होती है आर्थराइटिस, सही जांच होना जरूरी

नई दिल्ली,
विश्व आर्थराइटिस दिवस पर जोड़ों को मजबूत रखने, खानपान और नियमित व्यायाम के बारे में अकसर सभी के द्वारा सलाह दी जाती है। लेकिन जोड़ों के दर्द की आपकी समस्या हड्डी रोग से जुड़ी है या फिर ऑटो इम्यून डिजनरेटव बीमारी है, इसकी सही समय पर जांच होना बेहद जरूरी है। दरअसल सामान्य उम्र के साथ हड्डियों में कैल्शियम कम होने की वजह से ऑस्थियोपोरोसिस या आर्थराइटिस की समस्या होती है, वहीं यही जोड़ो में सूजन या दर्द ऑटो इम्यून है तो इसका आपको हड्डी रोग विशेषज्ञ नहीं बल्कि इम्यूनोलॉजिस्ट से संपर्क करना होगा। अधिकांश लोग रिह्यूमेटॉयड या ऐसी ही अन्य डिजेनेरेटिव आर्थराइटिस में शुरूआत में आर्थोपेडिक्स से इलाज कराते हैं, जबकि डिजेनरेटिव बीमारियों को इलाज अलग तरह से होता है।
हैदराबाद स्थित कामिनी अस्पताल के आर्थोस्कोपिक सर्जन डॉ. सी कामराज ने बताया कि आर्थराइटिस के क्रम में हम 200 बीमारियों को शामिल कर सकते हैं, इन सबकी वजह अलग अलग होती है। हेरेडिटरी, अस्वास्थ्यकर दिनचर्या, मोटापा, संक्रमण, उम्र से संबंधित वजहें या फिर डिजेनरेटिव आर्थराइटिस जोड़ों को प्रभावित कर सकती है। ऑस्टियो और रिह्यूमेटायड आर्थराइटिस घुटनों और कूल्हे के जोड़ को प्रभावित करती है। इसमें मरीज को जोड़ों में तीव्र दर्द और सूजन होती है। डिजेनरेटिया या आटोइम्यून आर्थराइटिस को इसके लक्षण के आधार पर पहचाना जा सकता है। हड्डियों में कैल्शियम कम होने की वजह से उम्र के साथ चलते हुए जोड़ों में घर्षण होता है, जो इस बात का सूचक है कि जोड़ों में चिकनाहट या फिर कार्टिलेज कम हो गया है, ऐसे अवस्था में घुटना बदलना या फिर कोर्टिलेज इंजेक्शन उपचार का बेहतर विकल्प हो सकते हैं। जबकि ऑटो इम्यून या डिजेनरेटिव आर्थराइटिस में इलाज की अगल प्रक्रिया होती है, इसमें जोड़ों और अंगूलियों में डिफारमिंग या विकलांगता बढ़ने लगती हैं, इससे पहले यदि मरीज में इस बात की पहचान हो जाएं कि आर्थराइटिस की वजह क्या है तो जोड़ों की विकलांगता को रोका जा सकता है, इसके लिए कुछ व्यायाम और फिजियोथेरपी के साथ ही विशेष तरह की सर्जरी की सलाह दी जाती है। डॉ. कामराज कहते हैं कि आर्थोस्कोपी और हाईटाइबल आस्टियोटॉमी जोड़ों के दर्द से राहत पहुंचा सकते हैं, इसके साथ ही आजकल आधुनिक कार्टिलेज डिजनरेशन दवाएं भी उपलब्ध हैं, जिसपर परिक्षण किए जा रहे हैं।
खाने में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन, कैल्शियम और मिनिरल आदि शामिल कर हड्डियों को मजबूत रखा जा सकता है। सिगरेट का सेवन फेफड़ों के साथ ही बोन हेल्थ के लिए भी नुकसान दायक है, इसके सेवन से बचे। हरी सब्जियां, फल, अंकुरित चने, सीड्स और कैल्शियम इंटेक हड्डियों को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है।

बच्चों में भी आर्थराइटिस की समस्या
इन्हें जूवेनाइल आर्थराइटिस भी कहा जाता है। स्पांडलाइटोसिआर्थिपेडिक्स- यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है, जो बच्चों के जोड़ों को प्रभावित कर सकती है।
सिस्मेटिक लूपस एरायथोमेटोरिस- यह भी ऑटो इम्यून या डिजेनरेटिव बीमारी है जो शरीर के कई अंगों के साथ ही जोड़ों को भी प्रभावित करती है।
गाउटे- यह भी जोड़ों को प्रभावित करने वाली बीमारी है, इसमें जोड़ों में यूरेक क्रिस्ट्राल का जमाव होने लगता है।
सोराइटिक आर्थराइटिस- एक तिहाई से अधिक जनसंख्या को सोरायसिस आर्थराइटिस होती है या भी एक तरह की ऑटो इम्यून आर्थराइटिस कही जा सकती है।

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