27 साल में मानसिक तनाव के मरीजों का आंकड़ा दोगुना हुआ

नई दिल्ली
देश में बढ़ रहे मानसिक तनाव को लेकर पहली बार अंर्तराष्ट्रीय स्वास्थ्य शोध पत्रिका द लांसेट साइकायट्री पर शोध पत्र प्रकाशित हुआ है। जिसमें 1990 से लेकर 2017 तक के देश के मानसिक रोग, इलाज, उम्र और इसका आर्थिक विकास पर असर आदि पहलूओं पर अध्ययन किया गया। एम्स के मानसिक रोग विभाग के प्रोफोसर डॉ. राजेश सागर की अगुवाई में शोधपत्र तैयार किया गया। अहम यह है कि मानसिक तनाव के बढ़ते आंकड़ों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी चिंता जताई है, जिसका अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है।
मानसिक तनाव और ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीस विषय पर जारी रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रत्येक सात में एक व्यस्क तनाव का शिकार है। यह डिप्रेशन, सिजोफ्रिनिया, बायोपोलर डिस्आर्डर और इडियोपैथिक, ऑटिज्म, इंटेक्लेक्युअल डिस्एबिलिटी आदि रूप में देखा जा रहा है। देश भर में 150 मिलियन लोगों को इस समय मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की जरूरत है। 45 से 45 मिलियन लोग मूड डिस्आर्डर और तनाव के शिकार हैं। 1990 से 2017 के बीच तनाव का यह आंकड़ा दोगुना हो गया है, 1990 में 2.5 प्रतिशत से 2017 में तनाव की स्थिति 4.7 हो गई है। एम्स के मानसिक रोग विभाग के प्रोफेसर और शोधकर्ता डॉ. राजेश सागर ने बताया कि मानसिक तनाव का बीमारियों के वैश्विक बोझ में खासा योगदान है, पिछले 27 साल के आंकड़े बताते हैं कि संक्रामक बीमारी से कहीं अधिक तेजी से मानसिक बीमारी का स्तर बढ़ा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के निदेशक और स्वास्थ्य शोध विभाग भारत सरकार के सचिव डॉ. बलराम भार्गव ने कहा कि राज्य स्तरीय तनाव के आंकड़े हैं कि दक्षिण के राज्यों में व्यस्क तेजी से तनाव का शिकार हो रहे हैं। जबकि उत्तर भारत में बच्चों में तनाव अधिक देखा गया। आंकड़ों के आधार पर राज्यों में मानसिक स्वास्थ्य विषय पर कार्य किए जाने पर जोर दिया जाएगा। लगभग दो दशक के गहन अध्ययन और 16000 सहकर्मी समीक्षा के बाद आंकड़ों को लांसेट के प्रकाशन के लिए भेजा गया। सभी तरह के मानसिक रोग में तनाव का प्रतिशत 33.8 प्रतिशत देखा गया। आईसीएमआर के एक औपचारिक कार्यक्रम में सोमवार को सड़क इंजूरी या मृत्यु पर भी शोधपत्र जारी किया गया

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