41 साल में नवजात मृत्युदर 68 फीसदी ही घटी

नई दिल्ली, (आईएएनएस)। देश में राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजनाएं चलाए जाने का फायदा 41 साल के दौरान यह देखा गया कि नवजात मृत्युदर (आईएमआर) में महज 68 फीसदी की गिरावट आ सकी। अभी भी प्रति 1000 नवजातों में से 41 की मौत हो जाती है। दुखद बात तो यह है कि नवजात की मृत्यु रोकने के मामले में हम अपने गरीब पड़ोसी राज्यों से भी पीछे हैं। बांग्लादेश में नवजात मृत्युदर जहां प्रति 1000 में 31 है, वहीं नेपाल में यह 29 है।

देश में एकीकृत बालविकास योजना शुरू हुए 42 साल बीत चुके हैं। यह बच्चों के लिए लागू किया गया दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। इसके बावजूद बच्चों की मृत्युदर के आंकड़े हमारे देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था से मेल नहीं खाते। पिछले 41 सालों में (1975 से 2016 के बीच) अर्थव्यवस्था 21 गुना या 2100 फीसदी तक बढ़ी है। यह योजना 2 अक्टूबर, 1975 को शुरू की गई थी। इसका लक्ष्य बच्चों को प्री-स्कूली शिक्षा और अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करना, कुपोषण से बचाना, मृत्युदर घटाना और उनकी सीखने की क्षमता बढ़ाना था।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मार्च में लोकसभा को बताया कि आईसीडीएस का लाभ करीब 9.93 करोड़ बच्चों को मिला और यह कार्यक्रम देशभर के 14 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों (एडब्ल्यूसी) के माध्यम से चलाया जा रहा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के आंकड़ों से पता चलता है बाल मृत्युदर में 68 फीसदी की गिरावट आई है। 1975 में जहां यह प्रति हजार बच्चों पर 130 थी, वहीं 2015-16 में यह घटकर 41 रह गई है। जबकि बांग्लादेश (31), नेपाल (29), अफ्रीकी देश रवांडा (31) भी हमसे कहीं आगे हैं।

आईएसडीएस लागू करने के लिए शुरू किए गए आंगनबाड़ी केंद्रों में कुल पात्र बच्चों में से केवल 50 फीसदी ही नामांकित हुए, जबकि उन पंजीकृत बच्चों में भी करीब 41 फीसदी को ही कार्यक्रम का लाभ मिला। योजना आयोग की 2011 की रिपोर्ट में बताया गया, ‘आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं पर काम का अत्यधिक बोझ है, उन्हें कम वेतन मिलता है तथा उनमें से ज्यादातर अकुशल हैं, जिस कारण कार्यक्रम का क्रियान्वयन प्रभावित होता है।’’

भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (कैग) की 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 60 फीसदी एडब्ल्यूसी के पास खुद की इमारत नहीं है और करीब 25 फीसदी कच्चे मकानों या आधी खुली जगहों पर संचालित हो रहे हैं। कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि 42 फीसदी एडब्लूसी में शौचालय तक नहीं है, जबकि 32 फीसदी के पास पीने के पानी की सुविधा नहीं है, जिस कारण स्वच्छता की समस्याएं पैदा होती हैं। कैग ने पाया कि इस योजना के महत्वपूर्ण पहलुओं के लिए धन जारी नहीं किया गया, जबकि जो धन जारी किया गया, उसका बड़ा हिस्सा कर्मियों के वेतन में ही चला जाता है।
(आंकड़ा आधारित, गैरलाभकारी, लोकहित पत्रकारिता मंच इंडियास्पेंड के साथ एक व्यवस्था के तहत)

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