नई दिल्ली
नारची की 25वीं वार्षिक कांफ्रेंस में महिला एवं प्रसूति संबंधी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य सामने आएं। नेशनल एसोसिएशन फॉर रिप्रोडक्टिव एंड चाइल्ड हेल्थ दिल्ली शाखा के दो दिवसीय कार्यक्रम में देश की जानी महिला चिकित्सकों ने जननी स्वास्थ्य शिशु रक्षा पर अपना पक्ष रखा। सुरक्षित प्रसव के साथ ही नारची ने सी सेक्शन या सिजेरियन प्रसव को कम करने पर भी चर्चा की।
इस बावत सफदरजंग अस्पताल के महिला एवं प्रसूति विभाग द्वारा किए गए एक क्लीनिकल अध्ययन की जानकारी देते हुए नारची की आर्गेनाइजिंग चेयरपर्सन डा. अचला बत्रा ने बताया कि सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए आने वाली महिलाओं में खून की कमी की दर को कम नहीं किया जा सका है, उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर बताया कि अस्पताल में अपनी दस साल की सेवाओं के दौरान पहले भी 70 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थीं, जो एनीमिया की शिकार थीं और आज भी ओपीडी में आने वाली महिलाओं की प्रमुख समस्या खून की कमी ही होती है। इसके लिए महिलाओं का खुद की सेहत के लिए फिक्रमंद न होना भी बताया गया। डॉ. अचला ने बताया कि गर्भवती महिला में खून की कमी होने से प्रसव के समय अधिक रक्त स्त्राव, दूध कम आना और नवजात में कमजोरी हो सकती है। हालांकि नारची साल में 20 कैंप लगाता है, जिससे महिलाओं को पोषण और आहार की जानकारी दी जाती है। डॉ. मोनिका गुप्ता ने बताया कि नारची इस बावत बीते 25 साल से सुरक्षित प्रसव और शिशु रक्षा के लिए जागरूकता फैला रही है।
सरकारी अस्पताल में कम हैं सी सेक्शन
सफदरजंग में हर साल 37000 महिलाओं का प्रसव किया जाता है जिसमें केवल 23 प्रतिशत ही सी सेक्शन के प्रसव होते है। सफदरजंग अस्पताल की डॉ. दिव्या पांडे ने बताया कि अस्पताल में जारी एक क्लीनिकल अध्ययन के जरिए सी सेक्शन या सर्जरी के जरिए प्रसव की जगह नार्मल डिलिवरी को बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक दस प्रतिशत प्रसव को सी सेक्शन के जरिए करने की अनुमति देते हैं, इन मानकों पर सरकारी अस्पताल कुछ हद तक खरे उतरते हैं, जबकि निजी अस्पतालों में सी सेक्शन का आंकड़ा साठ से 70 प्रतिशत तक हैं। डा. दिव्या ने यह भी बताया कि जरूरी नहीं कि एक बच्चा सी सेक्शन से हो तो दूसरा भी सी सेक्शन से ही जन्म लें, दूसरे बच्चे की डिलिवरी सामान्य हो सकती हैं, ऐसे मामले देखे गए हैं।