76 वर्षीय ब्रेन डेड व्यक्ति ने 30 वर्षीय पुरुष को दिया नया जीवन

सेहत संवाददाता

 

फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग के डॉक्टरों की टीम ने सड़क दुर्घटना के शिकार 76 वर्षीय पीड़ित का लिवर सफलतापूर्वक लिवर सिसारोसिस से पीड़ित 30 वर्षीय युवक को प्रत्यारोपित किया गया। इस डोनर की मृत्यु ब्रेन हैमरेज की वजह से हो गई थी। परिजनों की सहमित के बाद मृतक का लिवर शालीमार बाग फोर्टिस अस्पाताल से साकेत मैक्स अस्पताल तक पहुंचाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। जिससे 28.4 किमी की दूरी मात्र 44 मिनट में तय की गई। ऑपरेशन में दो घंटे 35 मिनट का समय लगा।

 

पीड़ित को मई के पहले हफ्ते में हुई सड़क दुर्घटना के बाद फोर्टिस शालीमार बाग लाया गया। जब उन्हें अस्पताल लाया गया तो उनके सिर में गंभीर चोटें लगी हुई थीं और मुंह से भी खून बह रहा था। भर्ती करते समय मरीज़ बेहोश नहीं थे, लेकिन आधे घंटे के भीतर दिमाग में तेज़ी से बढ़ते खून के थक्के की वजह से वह बेहोश हो गए। तुरंत ही उनके सिर का सीटी स्कैन कराया गया जिससे पता चला कि उनके दिमाग में बड़ा थक्का यानी क्लॉट (सबड्यूरल हेमाटोमा) बन गया है। क्लॉट और सूजे हुए चोटिल दिमाग के लिए खोपड़ी के दाएं हिस्से के लिए अतिरिक्त जगह बनाने वाली हड्डी को हटाने के लिए तत्काल ही दिमाग की सर्जरी की गई। सर्जरी के बाद उन्हें वेंटिलेटर पर आईसीयू में रखा गया। दिमाग की सूजन को कम करने के लिए किए गए अलग-अलग तरह के प्रयासों और दवाओँ के बावजूद, मरीज़ की अंदरूनी चोट सही नहीं हो पाई।

 

इसी बीच लिवर सिरॉसिस से पीड़ित 30 वर्षीय व्यक्ति को मृतक का लिवर देने के लिए हामी भरी। विभिन्न अंगों को सुरक्षित निकालने के लिए की गई प्रक्रिया पूरी करने में करीब 2 घंटे 35 मिनट का समय लग गया। फोर्टिस शालीमार बाग से लेकर मैक्स हॉस्पिटल, साकेत तक लिवर को ट्रांसपोर्ट करने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए, जिसमें 28.4 किमी की दूरी सिर्फ 44 मिनट में पूरी की गई।

 

फोर्टिस हॉस्पिटल शालीमार बाग डायरेक्टर एवं एचओडी न्यूरोसर्जरी डॉ. सोनल गुप्ता ने इस बारे में कहा कि काफी प्रयत्न के बावजूद मरीज़ को ब्रेन हैमरेज हो गया क्योंकि दुर्घटना के बाद उनके सिर में गंभीर चोटें लगी थीं और दिमाग में कई क्लॉट बन गए थे।  डॉ़ सोनल ने बताया कि हमारे डॉक्टरों की टीम और पुलिस के बीच के आपसी सहयोग की वजह से ही लिवर प्रत्यारोपण संभव हो पाया, हमें उम्मीद है कि यह बेहतरीन उदाहरण और भी लोगों को अंगदान करने के लिए और बदलाव लाने के लिए प्रेरित करेगा।”

 

फोर्टिस हॉस्पिटल शालीमार बाग फेसिलिटी डायरेक्टर दीपक नारंग ने कहा कि सभी आंतरिक और बाहरी मेडिकल टीमों के समर्पण ने इस कार्य को संभव बनाया है। इससे अन्य लोगों को भी प्रोत्साहन मिलना चाहिए कि वे आगे आएं और अंगदान के लिए रजिस्ट्रेन कराएं, ताकि ज़्यादा लोगों का जीवन बचाया जा सके।”

 

एनओटीटीओ (नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन) के मुताबिक, जब किसी मरीज़ को ब्रेन डेड घोषित किया जाता है, तो अस्पताल परिवार के लोगों से अंगदान के बारे में चर्चा कर सकता है। एनओटीटीओ के प्रोटोकॉल और दिशा-निर्देशों के मुताबिक, उपचार कर रहा अस्पताल सभी जानकारी उपलब्ध करा सकता है और संभावित अंगदान के लिए ज़रूरी अनुमित हासिल कर सकता है। इस मामले में मेडिको-लीगल मामले में नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लिया गया और ग्रीन कॉरिडोर बनाने का अनुरोध किया गया।

 

हर वर्ष लगभग 5 लाख भारतीयों को अंग संबंधी समस्या का सामना करना पड़ता है और सिर्फ 2-3 फीसदी लोगों को ही ट्रांसप्लांट कराने का मौका मिल पाता है। एनओटीटीओ के डेटा के मुताबिक, वर्ष 2011 में दिल्ली में 11 मृतकों के परिवारों ने अंगदान किए और इसके अंतर्गत 30 अंग सफलतापूर्वक जरूरतमंद को प्रत्यारोपित किए गए। मालूम हो कि  हर वर्ष सैकड़ों लोग अंग प्रत्यारोपण यानी ऑर्गन ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा करते हुए ही दम तोड़ देते हैं। गलत धारणाओं और जागरूकता की कमी की वजह से, अंगदाताओं की कमी है और हर बीतते वर्ष के साथ दान किए जाने वाले अंगों की संख्या और ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा कर रहे लोगों की संख्या के बीच अंतर बढ़ता ही जा रहा है। मरने के बाद समय से अंगदान करने से कई लोगों का जीवन बचाया जा सकता है और अगर लोगों को सही जानकारी दी जाए व अंगदान के लाभ बताए जाएं तो काफी लोग सामने आ सकते हैं और अपना अंगदान करने की प्रतिज्ञा ले सकते हैं।

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