यूरिन निकालने के लिए यूरेटर की जगह आंत का इस्तेमाल

Anterior view of bladder, urethra, and kidney sectioned showing kidney stones
Original is Exit Writer 116663 Urethritis and 116457

नई दिल्ली: यूरिन स्टोन की सर्जरी के दौरान डैमेज यूरेटर (यूरिन पाइप) नहीं होने से 46 साल के रामनाथ के दाईं किडनी से यूरिन बाहर नहीं आ रहा था। उनकी दाईं किडनी से यूरिन को बाहर निकालने के लिए डॉक्टरों ने यूरेटर की जगह आंत का इस्तेमाल किया। डॉक्टर ने रोबोट की मदद से इस सर्जरी को अंजाम दिया। इस सर्जरी को सफल बनाने वाले डॉक्टर का दावा है कि ऐसा पहली बार हुआ है जब किडनी से यूरिन को बाहर निकालने के लिए यूरेटर की जगह आंत का इस्तेामल किया गया हो।

गंगाराम अस्पताल (Gangaram hospital) के यूरोलॉजी (Urologist) डिपार्टमेंट के डॉक्टर विपिन त्यागी ने इस रेयर सर्जरी (rare surgery) को सफल बनाया है। उन्होंने कहा कि रामनाथ को मूत्रवाहिनी (ureter ) में पथरी (stone) था, मूत्रवाहिनियां दो पतली नलियां होती है जो किडनी (kidney) को मूत्राश्य से जोड़ती हैं। पथरी के कारण रामनाथ की मूत्रवाहिनी में बाधा हो रही थीं, उन्हें पथरी निकलवाने की सलाह दी गई। लेकिन दुर्भाग्य से पथरी की सर्जरी के दौरान पूरी मूत्रवाहिनी ही बाहर आ गई, जिससे किडनी और मूत्राशय (urine bladder) के बीच यूरिन (urine) के निकलने के लिए कोई नली ही नहीं बची।

डॉक्टर ने कहा कि उनकी दायीं किडनी से मूत्र को बाहर निकालने के लिए कोई नलिका ही नहीं थी। शुरूआत में किडनी से मूत्र को बाहर निकालने के लिए अस्थायी रूप से पीछे की ओर नली लगा दी गई। चुनौती यह थी कि किडनी को कैसे बचाया जाए, क्योंकि ऐसी स्थिति में इलाज के सीमित विकल्प थे। डॉक्टर त्यागी ने बताया कि पहला विकल्प था कि मूत्राश्य से नली बना दी जाए, लेकिन किडनी और मूत्रवाहिनी के बीच दूरी बहुत अधिक थी, जो संभव नहीं दिख रहा था। दूसरा विकल्प था कि किडनी को सामान्य स्थिति से हटाकर उसे मूत्राश्य के पास स्व-प्रत्यारोपण कर दिया जाए। लेकिन इसमें दो प्रक्रियाएं होती है, पहला किडनी को निकालना और दूसरा उसे मूत्राश्य के पास स्थापित करना, जो काफी कठिन था। तीसरा विकल्प किडनी और मूत्राश्य के बीच की दूरी को आंत की कुंडली से भर दिया जाए। लेकिन इसमें पेट पर एक लंबा कट लगाने की जरूरत होती है, जिससे पेट पर एक बड़ा सा कट का निशान आ जाता है।

डॉक्टर ने कहा कि हमने आंत (intestine) की कुंडली के द्वारा मूत्रवाहिनी को बदलने का फैसला किया। मूत्रवाहिनी के इस प्रकार के घावों के इलाज के लिए परंपरागत रूप से जो कट लगाया जाता है उसमें पूरा पेट काटना पड़ता है। पारंपरिक सर्जरी की तुलना में इसमें मरीज जल्दी ठीक हो जाता है। इसमें कोई कट नहीं लगाए जाते हैं, जिससे मरीज को अस्पताल से जल्दी छुट्टी भी मिल जाती है। डॉक्टर त्यागी ने कहा कि सर्जरी के लिए रोबोटिक को चुनने के लिए मरीज और उनके परिजनों को बताया गया। उन्होंने कहा कि चूंकि इस प्रकार की बीमारी में रोबोटिक सर्जरी भारत में पहले कभी नहीं की गईं और विश्व के दूसरे भागों में भी यह बहुत ज्यादा प्रचलित नहीं हैं। हमने इस सर्जरी और इसके संभावित परिणामों के बारे में मरीज से विस्तार में बताया। परिवार से उचित सहमति मिलने के बाद मरीज को इलेयम (आंत का एक भाग) के द्वारा मूत्रवाहिनी के रोबोटिक असिस्टेट प्रत्यारोपण के लिए तैयार किया।

इसमें रोबोटिक सर्जरी (robotic surgery) के लिए छाती से लेकर सुपरा प्युबिक रीजन तक पेट में केवल छह छोटे-छोटे छेद करना पड़े। यह सर्जरी 6 घंटे 45 मिनिट चली। पारंपरिक सर्जरी की तुलना में इसमें मरीज का खून नहीं निकला। उन्होंने कहा कि ऐसी सर्जरी के लिए हमारे पास कोई इसके विभिन्न चरणों के बारे में उचित साहित्य भी नहीं था, हमें सर्जरी के सफल और प्रमुख रूप से मरीज के लिए सुरक्षित बनाने के लिए हर चरण पर काफी सतर्क रहना पड़ा। पहले चरण में मरीज पर रोबोट को फिक्स करना, इसके बाद किडनी की चीरफाड़, फिर आंत की कुंडली निकालना, इसके बाद उसे किडनी के पास स्थापित करना और फिर इसके दुर वाले सिरे को मूत्राश्य से जोड़ना। उन्हें सर्जरी के बाद 5 दिन में छुट्टी दे दी गई, जबकि ओपन सर्जरी में लगभग 7-10 दिन अस्पताल में रहना पड़ता है। अब रामनाथ ठीक हैं उनकी किडनी सामान्य रूप से कार्य कर रही है और वह बिना किसी पथरी के सामान्य जीवन जी रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *