नई दिल्ली: इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलियरी साइंसेज ने हेप्टाइटिस से बचाव और इसके इलाज के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण जागरूकता अभियान की घोषणा की है। इस अभियान के तहत मरीजोँ को मानसिक और सामाजिक सहयोग भी प्रदान किया जाएगा, जिसकी उन्हें काफी ज्यादा जरूरत होती है क्योंकि अक्सर इस संक्रमण की चपेट में आने के बाद उन्हेँ सामाजिक भेदभाव का सामना करना पडता है। ‘एम्पेथी कॉन्क्लेव 2019: एम्पॉवरिंग पीपुल अगेंस्ट हेपटाइटिस’के तहत वायरल हेपटाइटिस के खिलाफ चल रही भारत की मुहिम को और आगे बढाने के उपायोँ पर चर्चा के लिए अग्रणी योजनाकारों, स्वास्थ्य देखभाल विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को एक मंच पर लाया गया।
इस देशव्यापी जागरूकता अभियान को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के सहयोग से लागू किया गया है। इस बीमारी से प्रतिवर्ष 1.5 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है और लगभग 6 करोड़ (60 मिलियन) भारतीय प्रभावित होते हैं, ऐसे में वायरल हेपेटाइटिस एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। वायरल हेपटाइटिस से होने वाली अधिकतर मौतों के लिए हेपटाइटिस बी व सी का संक्रमण जिम्मेदार होता है, जिसे साइलेंट किलर के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इससे संक्रमित 80% से भी अधिक लोगों को यह पता ही नहीं चल पाता है वे संक्रमित हो चुके हैं। हेपटाइटिस बी व सी के संक्रमण में कई बार वर्षोँ तक कोई लक्षण सामने नहीं आता है और यह धीरे-धीरे लिवर को डैमेज करता रहता है। संक्रमण की चपेट में आ चुके लोगोँ के साथ भेदभाव और उन्हेँ अलग-थलग कर दिया जाना एक अन्य बडी समस्या है जिसका समाधान सरकार और समाज, दोनो को साथ मिलकर ढूंढना होगा।
लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला, केंद्रीय स्वास्थ्य एवम परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, विधि व न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद सहित कई जानी-मानी हस्तियों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और इस बीमारी व इसके मरीजों के सम्बंध में व्याप्त स्टिग्मा को दूर करने हेतु सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों के संबंध में जानकारी दी।
एम्पेथी अथवा “एम्पॉवरिंग पीपुल अगेंस्ट हेपटाइटिस” एक 44 वर्षीय जागरूकता अभियान है, जिसकी शुरुआत आईएलबीएस द्वारा एएआई के सहयोग से 28 जुलाई, 2018 को की गई थी। ऐसा अनुमान है कि भारत में 4 करोड लोग हेपटाइटिस बी से पीडित हैं और 0.6-1.2 करोड लोग हेपटाइटिस सी से प्रभावित हैं।
डॉ. (प्रो.) एस. के. सरीन, डॉयरेक्टर, इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलियरी साइंसेज, ने कहा कि “हेपटाइटिस से मुकाबला करना इसलिए कठिन होता है क्योंकि हेपटाइटिस बी व सी दोनों ही क्रॉनिक संक्रमण हैं और अक्सर ये मरीज के शरीर में वर्षों तक दबे रहते हैं और धीरे-धीरे उनके लिवर को डैमेज करते रहते हैं। इन क्रॉनिक संक्रमणों का सबसे आम परिणाम जो सामने आता है, वह है लिवर सिरोसिस अथवा लिवर कैंसर। समस्याएं कई स्तर पर हैं। पहला यह कि अधिकतर संक्रमित लोगों को उनकी बीमारी की स्थिति के बारे में जानकारी नहीं होती है। सिर्फ हाई रिस्क श्रेणी में आने वाले लोगों की बचाव संबंधी स्क्रीनिग से ही समय पर इलाज संभव है, जैसे कि ब्लड ट्रांसफ्युजन और डायलिसिस करवाने वाले लोगोँ के मामले में। दूसरा, इस बीमारी के सम्बंध में व्याप्त भ्रांतियां और भेदभाव पीडित लोगों को समाज में अलग-थलग कर देती हैं। बीमारी के खिलाफ हमारी लडाई इसके तमाम पहलुओं पर फोकस करने वाली होनी चाहिए सार्वभौमिक टीकाकरण के जरिए हेपटाइटिस बी से बचाव, स्क्रीनिंग के जरिए मरीजों की पहचान और उनका इलाज एवम मरीजों को साइको सोशल सहयोग उपलब्ध कराना।