हड्डियों की इस बीमारी में हो जाती है 21 साल पर मौत

नई दिल्ली
बचपन में बच्चे को यदि चलने में दिक्क्त हो, उठते समय वह घुटने पर हाथ रखकर खड़ा होता हो या फिर चलते वक्त अचानक गिर जाता हो तो यह एक तरह की हड्डियों की बीमारी के लक्षण हो सकते हैं। जिसे ड्यिूसेन मॉस्कलर डिस्ट्राफी कहा जाता है। इस जेनेटिक डिस्ऑर्डर की वजह से होने वाली इस बीमारी के बच्चे 21 साल या उससे भी कम उम्र तक ही जीवित रह पाते हंै। लक्षण पहचानने के बाद यदि सही समय पर स्टेम सेल्स थेरेपी द्वारा इसका इलाज किया जाएं तो इस बीमारी को काफी हद तक आगे बढ़ने से रोका जा सकता है।
आर्थोपेडिक सर्जन और स्टेम सेल्स ट्रांसप्लांस विशेषज्ञ डॉ. बीएस राजपूत ने बताया कि मांसपेशियों में एक तरह के प्रोटीन – डायस्ट्रॉफिन की कमी की वजह से बच्चे की मांसपेशियां उम्र बढ़ने के साथ साथ धीरे धीरे कमजोर होना शुरू हो जाती हैं क्योंकि यह बीमारी जब आगे बढ़ती है तो हाथ और पैर की मांसपेशियों के अलावा, वह हृदय और फेफड़े की क्षमता पर भी असर डालती है। नतीजतन ज्यादातर बच्चे 21 साल की उम्र तक आते आते दिल और फेफड़े के फेल होने से मृत्यु को शिकार हो सकती है। डायस्ट्राफिन की कमी से मांसपेशियां का विकास रूक जाता है, दस साल की उम्र होने तक बच्चे के हाथ पैर शरीर के बाकी हिस्से एवज में बेहद कमजोर दिखने लगते हैं। डैचेने मॉस्कुलर डिस्ट्राफी के 99 प्रतिशत मामलों में मरीज पूरा जीवन नहीं जी पाता।

बीमारी के मुख्य लक्षण
– दौड़ने पर लड़खड़ा कर गिर जाना
– जमीन से उठते वक्त घुटने पर हाथ रखना
– सीढ़ियां न चढ़ पाना

कैसे होती है जांच
डीएमडी की जांच दो प्रमुख तरह से की जा सकती है। खून में जेनेटिक एनॉलेसिस ऑफ डॉयस्ट्राफिन से इसकी पहचान संभव है। यदि रिपोर्ट बीमारी के लिए यह रिपोर्ट डीएमडी के लिए पॉजिटिव आती है, तो इसका काफी हद तक रिजेनरेटिव मेडिसिन या स्टेम सेल्स थेरेपी के प्रयोग से इलाज किया जा सकता है। बच्चे के खून की सीपीके जांच भी बीमारी की पहचान में कारगर होती है। इसकी मात्रा 25 से 150 के बीच है तो इसे सामान्य कहा जाता है। जबकि सीपीके की मात्रा एक हजार से पचास हजार के बीच होने पर यह बीमारी की शुरूआत हो सकती है।

कैसे संभव है इलाज
स्टेम सेल्स थेरेपी एक प्रकार की रिजेनरेटिव मेडिसन का हिस्सा है। जिसमें बोन मैरो से प्राप्त स्टेम सेल्स या फिर बच्चे की गर्भनाल से ली गई। स्टेम सेल्स का प्रयोग किया जाता है। कुछ वैज्ञानिकों ने उचित समय पर एलोजेनिक स्टेम सेल्स देकर मरीज को सही किया है। और इस प्रकार की सेल्स का प्रयोग जेनेटिक बीमारियों में काफी मदद कर रहा है। और नये आएं इलाजो में आईपीएस या इंड्यूज्ड प्लूरीपोटेंट स्टेम सेल्स का भी प्रयोग किया है, जिस पर विदेशों में शोध किया जा रहा है।

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