चिकित्सा क्षेत्र को गुड्स और सर्विस के दायरे से बाहर रखा गया है जिसे एक सराहनीय कदम माना जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र से जीएसटी को बाहर रखने का असार लोगों के इलाज पर होने वाले खर्च पर पड़ेगा। श्री बाला जी एक्कशन इंस्टीट्यूट की मेडिकल सुप्रीडेंडेंट डॉ. पिंकी यादव ने बताया कि भारत में औसतन एक परिवार अपनी कमाई का दस से बीस प्रतिशत हिस्सा चिकित्सा पर खर्च करता है, स्वास्थ्य क्षेत्र को यदि जीएसटी के दायरे में शामिल किया जाता तो निश्चित रूप से लोगों पर इलाज के खर्च का भार और बढ़ जाता। लेकिन एक्ट के दायरे से चिकित्सा क्षेत्र को न रखने से लोगों को राहत मिलेगी। डॉ. पिंकी ने कहा कि इससे पहले भी सरकार ने स्टेंड के दाम निर्धारित करने और जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने के संदर्भ में उठाए गए कदम लोगों के हित में थे। मालूम हो कि एक जुलाई से लागू होने वाले जीएसटी यानि गुड्स और सर्विंस टैक्स के दायरे से शिक्षा, चिकित्सा और धार्मिक गतिविधियों को हटाया गया है। आईएमए के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने इस बावत बताया कि जीएसटी से चिकित्सा क्षेत्र को बाहर रखना बेहतर कदम कहा जा सकता है, हालांकि मेडिकल टूरज्मि पर छूट को हटाया जाना चाहिए।