नई दिल्ली
भारतीय चिकित्सा पद्धति में फार्माकोविजिलेंस (दवाओं की सुरक्षा की निगरानी और दवाओं से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए कार्रवाई करना) के लिए एक राष्ट्रीय पोर्टल एक महीने के भीतर शुरू किया जाएगा। ताकि आयुर्वेद के इलाज से जुड़े भ्रामक विज्ञापनों के प्रसार को रोका जा सके, इससे आयुर्वेद के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ेगा।
आयुष मंत्रालय के सलाहकार (आयुर्वेद) डॉ कौस्तुभ उपाध्याय ने कहा कि आयुर्वेद का दायरा अब वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा है, ऐसे में दवाओं की प्रमाणिकता पर अधिक ध्यान देना जरूरी है। दसवें वल्ड्र आयुर्वेद कांग्रेस के समापन अवसर पर उन्होंने कहा कि फार्माकोविजिलेंस एंड गुड मैन्यूफैक्चिरिंग प्रैक्टिस पर एक सत्र में बोलते हुए कहा कि मंत्रालय एक महीने के भीतर त्रिनेत्र पोर्टल लांच करेगा, जो आयुष (आयुर्वेद, योग, यूनानी सिद्धा और होम्योपैथी) पद्धतियों के भ्रामक विज्ञापनों पर नजर रखेगा, इस पोर्टल में ऐसे विज्ञापनों को देखने पर त्वरित रिपोर्टिंग की सुविधा होगी, जिससे संबंधित अधिकारी दावों की पड़ताल कर सकेगें। डॉ कौस्तुभ ने कहा कि हाल के वर्षो में ऐसी प्रैक्टिस को रोकने के प्रयासों के बावजूद भ्रामक विज्ञापनों की नियमित शिकायतें आ रही हैं, उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण है और किसी भी विज्ञापन का उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। फार्माकोविजिलेंस का तात्पर्य दवाओं के प्रतिकूल प्रभावों की निगरानी और रोकथाम के तरीको से है।
‘सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन सिद्ध’ के अनुसंधान अधिकारी डॉ. एम कन्नन ने पोर्टल का पूर्वावलोकन किया, जिन्होंने इसकी डेवलपर टीम का नेतृत्व किया। डॉ. कन्नन ने कहा कि पोर्टल को उपभोक्ता सुरक्षा में सुधार के उद्देश्य से डिज़ाइन किया गया है। पैनल के अन्य सदस्यों ने भी भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता पर बल दिया।। उन्होंने कहा कि वे पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की प्रतिष्ठा को धूमिल कर सकते हैं और आयुष को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के चल रहे प्रयासों को नकार सकते हैं।
उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि आयुर्वेद के जादुई इलाज और बिना किसी दुष्प्रभाव वाली दवाइयों या उपचारों की पेशकश करने वाले विज्ञापन नियमित रूप से देखे जाते हैं, जबकि प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में भी प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं की संभावना पर प्रकाश डाला गया है। स्वास्थ्य सेवा (आयुष) के उप महानिदेशक प्रोफेसर रबी नारायण आचार्य ने कहा कि भारत दुनिया का पहला देश है जो भ्रामक विज्ञापनों को फार्माकोविजिलेंस के मापदंडों के भीतर लाया है।
प्रोफेसर आचार्य, जो 2008 में भारत में इसकी स्थापना के बाद से फार्माकोविजिलेंस कार्यक्रम (पीवीपी) से जुड़े थे, ने कहा कि इसका शुरू में आयुर्वेद चिकित्सकों और उद्योग के नेताओं द्वारा कड़ा विरोध किया गया था। कई लोगों ने यह भी आशंका जताई कि इससे आयुर्वेद की “दुष्प्रभाव मुक्त” प्रतिष्ठा धूमिल हो जाएगी – एक ऐसा आधार जो प्राचीन ग्रंथों द्वारा समर्थित नहीं है।
उन्होंने कहा कि तब से पीवीपी ढांचे को राष्ट्रीय फार्माकोविजिलेंस केंद्र के साथ-साथ देश भर में 99 परिधीय केंद्रों की स्थापना के साथ मजबूत किया गया है। पैनल के सदस्यों में स्वास्थ्य सेवा (आयुष) के उप महानिदेशक डॉ. ए रघु; दिल्ली सरकार के आयुष निदेशालय में एडीसी (यूनानी) डॉ. मोहम्मद खालिद; जयपुर स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान से डॉ. गौरव शर्मा और प्रोफेसर सुदीप्त कुमार रथ; और हिमालय कंपनी से डॉ. सूर्य नारायण शामिल थे।