क्या प्रदूषण कम कर देगा आपकी जिंदगी के 12 साल?

Air pollution is cutting down your lifespan by at least 12 years, if not more, a Chicago study has found.

नई दिल्ली

प्रदूषण (Air Pollution) आपके जीवन के कम से कम नहीं तो 12 साल को कम कर रहा है, प्रदूषण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में यह शोध शिकागो के अध्ययन में सामने आया है। एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट, शिकागो विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में प्रदूषण की वजह से विशेषकर दिल्लीवालों की सेहत अध्ययन किया गया। शोधपत्र के अनुसार प्रदूषण दिल्ली में रहने वालों के जीवन के 12 साल कम कर रहा है।

पीएम 2.5 वैश्विक स्तर पर जीवनकाल या लाइफस्पैन को प्रभावित कर रहा है, जो कि स्मोकिंग और शराब के सेवन से तीन गुना अधिक घातक है। भारत में वायु प्रदूषण की वजह से पांच से साढ़े पांच साल उम्र कम हो रही है, वहीं दिल्ली की बात करें तो प्रदूषण जीवनचक्र के 11.9 साल कम कर रहा है। अध्ययन में यह भी खुलासा हुआ कि चीन में हालांकि प्रदूषण का स्तर तेजी से कम हुआ है, वर्ष 2013 से 2023 के बीच चीन में वायु प्रदूषण का स्तर 42.3 प्रतिशत कम हुआ, चीन में वार अगेंस्ट पॉल्यूशन अभियान व्यापक स्तर पर चलाया गया, जिसकी वजह से वायु की गुणवत्ता में तेजी से सुधार हुआ, बेहतर वायु गुणवत्ता से अब चीन के लोग अब 2.2 साल अधिक जी रहे हैं। एअर क्वालिटी इंडेक्स इस बात को दर्शाता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के अनुसार पीएम 2.5 से कम रहने पर विश्वभर के लोगों के जीवन काल को 2.3 साल तक बढ़ाया जा सकता है। अमेरिका के निवासी प्रदूषण को लेकर सरकार की सख्त पॉलिसी की वजह से स्वच्छ हवा का सेवन करते हैं, औद्योगिकीकरण के समय में यूनाइटेड स्टेट और यूरोप के कई शहर प्रदूषण की जद में थे। लेकिन लोगों ने बदलाव की पहल की, उदाहरण के लिए यूनाइटेड स्टेट ने क्लीन एअर एक्ट पारित किया, जिसकी वजह से प्रदूषण में तेजी से गिरावट दर्ज की गई, इस अभियान से 64.9 प्रतिशत प्रदूषण कम हुआ और अमेरिका के लोगों का जीवन चक्र 1.4 साल बढ़ गया। शिकागो के अध्ययन में दिल्ली को भारत में सबसे प्रदूषित शहर माना गया, जहां का औसत एअर पाल्यूटेंड का 126.5 पाया गा, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइन के अनुसार 25 गुना अधिक है। भारत में तेजी से बढ़ते प्रदूषण की एक वजह वाहनों की बढ़ती संख्या को भी बताया गया, वर्ष 2000 के एवज में वाहनों की संख्या यहां चार गुना बढ़ गई।  इस संदर्भ में भारत ने अपने NCAP लक्ष्य को नया रूप दिया है, जिसका लक्ष्य 2026 तक 131 गैर-प्राप्ति शहरों में कण प्रदूषण के स्तर में 40 प्रतिशत की कमी लाना है।

पीएसआरआई इंस्टीट्यूट ऑफ पल्मोनरी क्रिटिकल केयर एंड स्लीप मेडिसिन और एम्स के पूर्व विभागाध्यक्ष पल्मोनरी डॉ जीसी खिलनानी डब्लूएचओ ग्लोबल एयर पॉल्यूशन एंड हेल्थ के तकनीकि सलाहकार भी है। डॉ खिलनानी के अनुसार 1952 में लंदन में प्रदूषण की वजह से 12,000 लोगों की मौत हुई, जिसकी वजह था औद्योगिकरण (विशेष रूप से कोयला जलने से उठने वाला वायु प्रदूषण) जिसको पूरे विश्व में स्वत: संज्ञान में लिया गया। आज कम इस स्थिति में पहुंच गए हैं कि दुनिया में वायु प्रदूषण संबंधित बीमारी और मृत्युदर का एक बड़ा हिस्सा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में है। वायु प्रदूषण की राजधानी दिल्ली में पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थय संगठन के मानकों से 25 गुना अधिक है। एक पल्मोनोलॉजिस्ट के रूप में, मैं ऐसे कई रोगियों को देखता हूं जिनमें मामूली वायरल बीमारी के बाद लंबे समय तक खांसी रहती है जो सांस लेने में तकलीफ और घबराहट से जुड़ी होती है जहां दवाएं अप्रभावी होती हैं और कभी-कभी वायुमार्ग की सूजन को नियंत्रित करने के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स की आवश्यकता होती है। 30 साल पहले घर में नेबुलाइजेशन मशीन दुर्लभ थी और अब दिल्ली के घरों में नेबुलाइजेशन मशीन होना आम बात है, खासकर अगर घर में बच्चे या बुजुर्ग हैं। इस बात पर जोर देना महत्वपूर्ण है कि ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि एयर प्यूरीफायर या मास्क का उपयोग हमें प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों से बचाता है

 

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