बीमार हो रही है बच्चों की किडनी, रखें नजर
बच्चों में खराब किडनी की समस्या बढ़ रही है। गर्भधारण से पहले अधिक स्टेरॉयड युक्त गर्भनिरोधक दवाओं का सेवन, धुम्रपान और महिलाओं के एल्कोहल के समय से जन्मजात किडनी की समस्याएं पहले की अपेक्षा चार गुना अधिक देखी जा रही है। विश्व किडनी दिवस के अवसर पर बच्चों में होने वाली किडनी की बीमारियों के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए एम्स में जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। किडनी की गड़बड़ी की वजह से बच्चों में पेशाब में संक्रमण की तकलीफ भी देखी जा रही है।
एम्स के बाल गुर्दा रोग विभाग के डॉ. रमेश अग्रवाल ने बताया कि देश में हर एक लाख में से 15-75 बच्चों में जन्मजात किडनी बीमारी (सीकेडी)की समस्या देखी जा रही है। 20 से 40 प्रतिशत किडनी की बीमारी का गर्भधारण के समय ही पहचाना जा सकता है। सीएकेयूटी (जन्मजात किडनी की बीमारी और पेशाब संबंधी संक्रमण) स्क्रीनिंग इस संदर्भ में काफी मदद कर सकती है, जिसमें गर्भधारण के पांचवे से छठें हफ्ते में कुछ जरूरी जांच कर गर्भस्थ शिशु की असमान्य किडनी का पता लगाया जा सकता है। जबकि चार से 15 साल के बच्चों में किडनी खराब होने के लक्षण तेज बुखार, भूख कम लगना, वजन कम होना, पेशाब में क्रेटनाइन का स्तर बढ़ना और सूजन के रूप में सामने आता है। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि बच्चों में किडनी के इलाज और फॉलोअप के लिए अधिक बेहतर सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। दिल्ली में किडनी की बीमारी से पीड़ित 18 लाख बच्चों के लिए मात्र 18 बाल गुर्दा रोग विशेषज्ञ ही मौजूद हैं। विशेषज्ञों की कमी वजह से हर साल केवल 20 बच्चों की ही किडनी प्रत्यारोपित हो पाती है, जबकि बच्चों के अनुपात में हर साल 3000 लोगों का गुर्दा बदला जाता है। एक दिन में किडनी 400 लीटर खून को साफ करती है, पेशाब के जरिए शरीर से अपशिष्ट पद्धार्थो को बाहर निकालने में भी किडनी का अहम योगदान होता है, यही कारण है कि किडनी खराब होने से पेशाब के संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। खून की स्वस्थ सेल्स बनाने के साथ ही हड्डियों को मजबूत करने में भी किडनी अहम भूमिका निभाती है। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि जंक फूड की अपेक्षा खाने में हर रंग की सब्जी की मात्रा बढ़ाकर बच्चों में किडनी के खराब होने के खतरे को कम किया जा सकता है।