COVID19 वैक्सीन के लिए तेलंगाना के जंगलों में ढूंढे वैज्ञानिकों ने बंदर

नई दिल्ली
जनवरी 2020 में जब भारत में कोविड का पहला मामला देखा गया, उस दिन से लेकर 16 जनवरी 2021, जबकि देशभर में कोविड टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया, एक साल के इस समय में वैज्ञानिकों, डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने कई तरह की चुनौतियों का सामना किया। आईसीएमआर (ICMR)के निदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने अपनी किताब गोइंग (Going viral)वायरल में कोविड की वैक्सीन कोवैक्सिन के शोध और निर्माण से लेकर कई अन्य पहलूओं को किताब में पिरोया है। किताब हर उस पहलू पर प्रकाश डालती है जबकि वैज्ञानिकों ने विाम परिस्थितियों के बीच भी अपनी हौंसले को डिगने नहीं दिया। एक समय आया जबकि सरकार की उच्च स्तरीय बैठक में दो लाइन में वैज्ञानिकों द्वारा सुझाव लिखा जाना था और लिखा गया लॉकडाउन के अलावा कोई विकल्प नहीं, सभी फ्लाइट्स को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए, इस पूरे दौर में कई अहम निर्णय रहें जिसकी वजह से भारत कोविड के खिलाफ इस जंग में रणनीति तैयार की जा सकी।
किताब के अहम बिंदुओं पर चर्चा करते हुए डॉ. बलराम भार्गव ने बताया कि सबसे पहले अपने देसी जांच किट पर काम करना था वायरस की पहचान क्योंकि चीन में हुई थी इसलिए केवल चीन के पास ही जांच की किट भी उपलब्ध थी, हमने निर्णय लिया कि देश में ही किट बनाई जाएगी। शुरूआत में जो मरीज कोविड पॉजिटिव (COVID19POSITIVE)देखे गए उनमें वायरल लोड अधिक नहीं था, हमें जांच के लिए अधिक वायरल लोड वाले मरीज ही चाहिए थे। इसके बाद कुछ छात्रों को बाहर देश से देश में लाया गया उनकी जांच में वायरल लोड की अधिकता देखी गई, इसके बाद स्वदेसी किट बनाने पर काम शुरू किया। इसके लिए एनआईवी (National Institute of Virology) की प्रमुख डॉ. प्रिया एब्राहिम की अहम भूमिका रहीं, जिन्होंने सुबह के दो बजे देश के पहले कोविड मरीज की सूचना दी। इसके बाद शुरू हुआ वैक्सीन बनाने का क्रम, डॉ. बलराम भार्गव ने बताया कि देश में क्योंकि वर्ष 2018 में एनवनएनवन (H1N1 Flue) फ्लू का प्रकोप देखा था और लैबोरेटरी जांच में पाया गया कि कोविड का कारक वायरस भी उसी समूह का है, इससे हमें थोड़ी राहत मिली। स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein )के वायरस के बायोलॉजिकल स्ट्रक्चर (Biological Structure )की बात प्रमाणित होने के लिए वैक्सीन बनाने पर काम शुरू किया गया। इसके लि बंदरों को खोजा जाना था, अब क्योंकि देशभर में लॉकडाउन लगाया जा चुका था, इसलिए वैज्ञानिकों की टीम को तेलंगाना और तमिलनाडू के जंगलों में बंदरों की खोज में भेजा गया ऐसे 20 बंदरों का चयन किया गया जो बायोलॉजिकली वैक्सीन शोध के लिए फिट पाए गए। वायरस को बंदरों में इजेक्ट किया गया, जिसे ब्रायनकोस्कोपी (Bronchoscope) कहते हैं, इसके विशेषज्ञ हमारे देश में नहीं थी, उसी समय तेहरान डॉ. क्षितिज अग्रवाल को लाया गया, इसे पूरी प्रक्रिया में आईसीएमआर के वैज्ञानिक डॉ. प्रज्ञा यादव और डॉ. निवेदिता गुप्ता की भी अहम भूमिका रही। डॉ. क्षितिज अग्रवाल द्वारा की गई ब्रायनकोस्कोपी (bronchoscope)के एक हफ्ते के परिणाम अच्छे रहे, बंदरों में वायरस की ग्रोथ या कल्चर रिपोर्ट (Culture Reports) संतोषजनक थी। इसके बाद भारत बायोटेक से सलाह कर वैक्सीन निर्माण पर काम करने की रणनीति तैयार की गई। भारत बायोटेक के डॉ. कृष्णा इल्ला ने बताया कि कई महीनों तक हमने टीवी, मीडिया या संचार के माध्यम को देखा तक नहीं, केवल एक लक्ष्य था कि स्वदेसी वैक्सीन का निर्माण करना है। आज इस बात की खुशी है कि देश में टीकाकरण का सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया गया है।

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