विश्व एड्स दिवस पर विशेष (World AIDS Day)
महिमा तिवारी / लखनऊ
गर्भावस्था (pregnancy) में जांच के दौरान यदि किसी महिला में एचआईवी की पुष्टि होती है तो सबसे बड़ी शंका यही होती है कि यह संक्रमण कहीं गर्भस्थ शिशु तक न पहुंच जाये। चिकित्सकों का कहना है कि कुछ सावधानी बरती जाये तो संक्रमित महिला भी स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकती है।
ऐसा ही हरदोई निवासी 27 वर्षीय सीमा के साथ हुआ। गर्भावस्था के आखिरी दिनों में जांच के बाद पता चला कि वह एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम (AIDS Acquired Immuno Deficiency Disorder) से ग्रसित है। केजीएमयू स्थित एंटी रेट्रो वायरल ट्रीटमेंट (एआरटी)+ सेंटर में चिकित्सकों ने अन्य जांचों के साथ वायरल लोड (Viral load) की जांच करायी, जिसमें वायरल लोड 1000 से अधिक निकला। चिकित्सकों ने उन्हें कुछ दवाएं दी और संस्थागत प्रसव कराया गया। प्रसव के बाद नवजात को दो दवाएं नेवरापिन और जिरुविडीन दी गयीं। छह हफ्ते के बाद बच्चे की जांच हुई, जिसमें बच्चा स्वस्थ निकला।
एआरटी सेंटर के नोडल अधिकारी डा. डी. हिमांशु का उनका कहना है कि गर्भधारण (pregnancy) के साथ ही एचआईवी संक्रमण की जांच जरूर करानी चाहिए। कई बार गर्भवती यह जांच गर्भावस्था के आखिरी महीनों में कराती है जिससे संक्रमण का पता काफी देर से चलता है और गर्भस्थ शिशु तक यह संक्रमण पहुंचने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में नवजात को बचाना काफी मुश्किल होता है। वहीं यदि गर्भधारण के शुरूआती महीनों में यदि एचआईवी संक्रमण का पता चलता है तो कुछ दवाएं देकर बच्चे तक यह संक्रमण प्रसार रोका जा सकता है। संक्रमण का पता चलने पर जितना जल्दी इलाज शुरू हो जाता है। बच्चे में संक्रमण होने की सम्भावना उतनी ही कम होती है। वहीं यदि कोई महिला पहले से ही संक्रमित है तो उसे समय-समय पर वायरल लोड जांच करानी चाहिए। ताकि यह पता चल सके कि मरीज को दी जा रही दवायें काम कर रही हैं या नहीं। एआरटी प्लस सेंटर की सीनियर चिकित्सा अधिकारी अधिकारी डा. नीतू गुप्ता बताती हैं कि यदि गर्भवती में वायरल लोड 1000 से कम निकलता है तो संक्रमण की सम्भावना नहीं है वहीं वायरल लोड 1000 से अधिक होने पर बच्चे में एड्स के संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। एआरटी सेंटर की चिकित्सा अधिकारी डा. सुमन शुक्ला बताती हैं कि यदि महिला नवें महीने में एआरटी प्लस सेंटर पर आती है तो अन्य जांचों के साथ वायरल लोड की जांच करते हुए एआरटी की दवाएं शुरू करते हैं। एड्स के इलाज में काउंसलिंग पर जोर रहता है कि महिला नियमित दवाओं का सेवन करे, हर माह वायरल लोड की जांच कराये खासकर आठवें और नवें महीने में और प्रसव संस्थागत हो।
क्या है एचआईवी एड्स
एचआईवी ( ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस ) एक ऐसा वायरस है जो शरीर की संक्रमण से लडऩे में मदद करने वाली कोशिकाओं पर हमला करता है और प्रतिरोधक क्षमता को धीरे-धीरे कम करता है। यह संक्रमण सबसे अधिक असुरक्षित यौन संबंध या इंजेक्शन दवा उपकरण साझा करने के माध्यम से फैलता है। यदि एचआईवी का उपचार न किया जाए तो यह एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम ) रोग का कारण बन सकता है।
गर्भावस्था में जरूर करायें एचआईवी टेस्ट
गर्भावस्था के दौरान एक बार एचआईवी का टेस्ट जरूर कराना चाहिए। वहीं एचआईवी पीडि़त गर्भवती को हर माह साथ ही एचआईवी और अन्य इन्फेक्शन से जुड़े टेस्ट कराते रहने चाहिए।