नई दिल्ली
पीढ़ी दर पीढ़ी कर्म का अर्थ है गर्भ काल से पहले, गर्भकाल के दौरान और गर्भधारण करने के बाद मां की सेहत जिसका तुरंत और लंबे समय में बच्चे की सेहत पर गहरा प्रभाव पड़ता है।यह तो हम सभी जानते हैं कि गर्भ अवस्था में शराब का सेवन और धुम्रपान बच्चे के विकास पर गंभीर असर डालता है, इसके अलावा अनेक कम जाने जाते तथ्य भी मौजूद हैं।
गर्भ काल में डायब्टीज़ और एनीमिया पीढ़ी दर पीढ़ी कर्म के दो प्रमुख तत्व हैं। मां को एनीमिया या डायबिटीज होना बच्चे की सेहत पर बुरा असर डाल सकते हैं। मां को एनीमिया होता है तो बच्चे का जन्म के समय 6.5 प्रतिशत मामलों में वजन कम होने और 11.5 प्रतिशत मामलों में समय से पहले प्रसव की समस्याएं हो सकती हैं। गर्भकाल की डायबिटीज की वजह से बच्चे को 4.9 प्रतिशत मामलों में एर्नआइसीयू में भर्ती होने और 32.3 प्रतिशत मामलों में सांस प्रणाली की समस्याएं होने का खतरा रहता है। इन समस्याओं वाले गर्भ काल के बच्चों में मोटापे, दिल के विकार और टाइप 2 डायबिटीज होने का ख़तरा उम्र भर रहता है।
गर्भ काल का हाइपरटेंशन जो कि 20वें सप्ताह में होता है पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इससे गर्भनाल की रक्त धमनियां सख़्त हो जाती हैं जिससे भ्रूण को ऑक्सीजन और पोषक तत्व उचित मात्रा में नहीं पहुंच पाते। इस वजह से गर्भाशय में वृद्धि में रोक, जन्म के समय बच्चे का कम वज़न, ब्लड शुगर में कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
कुछ मामलों में किशोरावस्था में बच्चे में हाइपरटेंशन की समस्या हो सकती है। मां को मोटापे होने पर गर्भ काल में डायबिटीज होने की संभावना होती है जिस वजह से समय से पहले प्रसव और बच्चे में डायबिटीज और और मोटापे होने का खतरा रहता है। यह भी पता चला है कि मां के पोषण में मामूली असमान्यता का असर बच्चे पर पड़ सकता है जैसे कि गर्भावस्था में विटामिन डी की कमी से आगे चल कर जच्चा और बच्चा दोनों की सेहत में समस्याएं पैदा हो सकती है।
डॉक्टर संजय कालरा का कहना है कि पीढ़ी दर पीढ़ी कर्म का संकल्प र्माइक्रो और मैक्रो माहौल के बच्चे की सेहत पर प्रभाव के विज्ञान से जुड़ा है। रूबरी कर्म मां के हीमोग्लोबीन का का बच्चे की संपूर्ण सेहत पर पड़ने वाले असर के बारे में बताता है। पाचतंत्र कर्म बताता है कि मां का बेहतर पाचनतंत्र नियंत्रण लंबे समय में फायदेमंद रहता है जिससे गर्भकाल की डायबिटीज या पहले से मौजूद डायबिटीज और गर्भकाल का हाइपरटेंशन से बचाव रहता है जिसका असर नवजात और बाद में भी उसके जीवन पर पड़ता है। यह कर्म उन भारतीय लोगों पर लागू होते हैं जिन्हें पहले से डायबिटीज और एनीमिया है।
डॉक्टर कालरा ने कहा कि अगर मां को गर्भ काल की डायबिटीज हाइपरटेंशन हो जाए तो बच्चे की सेहत का ख़ास तौर पर शुरूआती दिनों में गहन ध्यान रखना चाहिए। विकास के चार्ट और तरीके को करीबी से नियमित तौर पर देखते रहना चाहिए और बचावकारी जीवनशैली अपनानी चाहिए। ख़ुराक आयरन, फोलेट और विटामिन बी12 की कमी की वजह से गर्भवति महिलाओं में एनीमिया होने की संभावना काफी ज़्यादा होती है। गर्भावस्था में आयरन की अत्यधिक आवश्यकता की वजह से यह समस्या और भी बढ़ जाती है। एनिमिया की वजह से गर्भ नाल से भ्रूण तक ऑक्सीजन जाने में कमी, इसके विकास की दर में कमी हो सकती है और एंडोक्राइन ग्रंथी की कार्यप्रणाली पर असर हो सकता है। इस साधारण सावधानी से रूबरी कर्म अगली पीढ़ी का अच्छा भविष्य बना सकता है।
पाचनतंत्र कर्म कहता है कि मां और बच्चे की सेहत पर गर्भकाल की डायबिटीज और हाइपरटेंशन के प्रभाव से आगे चल कर भी बचने के लिए बचावकारी जीवनशैली अपनानी चाहिए।