वर्ष 1975 में देश में जब नियमित टीकाकरण कार्यक्रम लांच किया गया था, उस समय बच्चों को लगने वाले केवल पांच टीकों को ही नियमित टीकाकरण में शामिल किया गया था। आज विभिन्न बीमारियों से बचाव के लिए बाजार में 24 से अधिक वैक्सीन उपलब्ध हंै। जिसका दायरा बच्चों से बढ़कर महिलाओं का व्यस्कों तक भी पहुंच गया है। 30 प्रतिशत वैक्सीन पर स्वास्थ्य मंत्रालय का कोई नियंत्रण नहीं। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि सरकारी योजना में शामिल वैक्सीन के अलावा अगर कोई वैक्सीन लगवाई जा रही है तो वह पूरी तरह सुरक्षित हो। हाल ही में सरवाइकल कैंसर से बचाव के लिए आंध्र प्रदेश में दी गई एचपीवी (हृयूमन पैपीलोमा वैक्सीन) वैक्सीनेशन से दस लड़कियों की मृत्यु की घटना ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को और भी सजग कर दिया है।
क्या है नियमित टीकाकरण
किसी भी बीमारी के वायरस के प्रति शरीर में रक्षा कवच बनाने के लिए इम्यूनाइजेशन किया जाता है। यूआईपी (यूनिवर्स इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम) के तहत बच्चों की 6 प्रमुख बीमारियों को वीपीडी (वैक्सीन प्रीवेंटेबल डिसीस) के तहत रखा गया है। जिसका टीकाकरण जन्म लेने के बाद 16 साल की उम्र तक किया जाता है। दिल्ली सहित कुछ राज्यों द्वारा हेपेटाइटिस बी को भी नियमित टीकाकरण योजना में शामिल किया गया है। बीसीजी, डिप्थीरिया (डीपीटी), खसरा, हेपेटाइटिस बी, ओरल पोलियो, टिटनेस टॉक्साइड के अलावा तीन चरणों में बूस्टर वैक्सीनेशन को भी स्वास्थ्य योजनाओं में शामिल किया गया है। बच्चे के जन्म से पूर्व गर्भवती महिला को भी दो महीने के गर्भ के बाद नौ महीने तक प्रत्येक महीने के अंतराल में आयरन बूस्टर व टिटनेस का इंजेक्शन भी जरूरी बताया गया है।
कब कौन सा टीकाकरण
बीसीजी – जन्म लेने के तुरंत बाद
ओरल पोलियो – जन्म लेने के बाद पांच साल की उम्र तक
डीपीटी – जन्म से 6 हफ्ते, 10 हफ्ते, 14 हफ्ते व 9 से 12 महीने के अंतराल में
हेपेटाइटिस बी – 6 हफ्ते से 14 हफ्ते के बीच में तीन चरण का टीकाकरण
खसरा – नौ महीने पर विटामिन ए की खुराक के साथ
पॉवर बूस्टर
डीपीटी व ओरल पोलियो- 16 महीने से 24 महीने के अंतराल में
डीटी – पांच साल की उम्र तक कभी भी
टिटनेस टॉक्साइड- 10 साल की उम्र से 16 साल तक प्रत्येक तीन माह में
विटामिन ए – 9, 18, 24, व 36 महीने तक जरूरी
-डीपीटी और पोलियो की प्रत्येक खुराक के बीच एक महीने का अंतर जरूरी है, दोनो टीके एक साथ नहीं दिए जा सकते हैं, जिसका असर नुकसानदेह हो सकता है।
पोलियो सर्विलांस अधिकारी, डॉ पीके सिंह
कितने तरह के वैक्सीनेशन
-डीप्थीरिया, टीटनेस, हेपेटाइटिस ए व बी, हीमोफीलिया व निमोनिया वैक्सीन को इंट्रामस्कुलरी वैक्सीन कहा जाता है। जिन्हें शरीर की मांसपेशियों में लगाया जाता है। डेल्टॉयड मसल्स को सभी आयु वर्ग के लोगों को इंजेक् शन लगाने के लिए सुरक्षित माना गया है।
-केवल बीसीजी वैक्सीन को इंट्राडरमेली वैक्सीन कहा जाता है, जिन्हें त्वचा के किसी भी हिस्से में लगाया जा सकता है।
-खसरा, चिकनपॉक्स, और आईपीवी (इंजेक्टेबल पोलियो बैक्सीन) को सबक्वाटेनसली वैक्सीन कहा जाता है, जो त्वचा के ऐसे हिस्से में लगाई जाती हैं, जहां से बैक्सीन का द्रव्य आसानी से फैल जाए।
-स्वाइन फ्लू, ओरल पोलियो व रोटावायरस वैक्सीन ओरल रूप में दी जाती है।
क्या है जरूरी एहतयिात
बीमारियों से सुरक्षा के लिए बैक्सीन के फायदे भी हैं तो वैक्सीनेश के दौरान बरती गई हलकी सी लापरवाहीं उसका उल्टा असर डाल सकती है। हाल ही डब्लूएचओ द्वारा वैक्सीन एडमिनेस्ट्रशन के लिए गाइडलाइन जारी की है।
-वैक्सीन के प्रयोग से पहले उसके तरल पदार्थ को देखना जरूरी, यदि किसी भी तरह का रंग या कण निचली तली पर जम रहे हैं तो वैक्सीन नहीं लगानी चाहिए।
-वैक्सीन को इंजेक् शन में भरने से पहले पूरी तरह आश्वस्त हो जाएं कि सिरिंज में हवा नहीं होनी चाहिए।
-वैक्सीन ने पहले त्चचा पर लगाए एल्कोहल लगाने के 30 सेकेंड बाद इंजेक् शन लगाना चाहिए, इससे एल्कोहल के अंदर जाने की संभावना नहीं रहती।
-आईएम और एसी इंजेक्शन लगाने से पहले त्वचा का चयन विशेष रूप से सावधानी से करना चाहिए।
-इंजेक्शन लगाते समय नर्स या लैब तकनीशियन का हाथ 45 से 90 डिग्री के कोण के एंगल में होना चाहिए।
-डेल्टॉयड मांसपेशी में वैक्सीन देते समय ध्यान रहे कि इंजेक्शन की वाल्यूम 0.5 एमएल से अधिक व व्यस्क के लिए 1.0 एमएल से अधिक न हो।
-45 डिग्री के इंजेक्शन के लिए 16 एमएम से अधिक लंबाई की सूई नहीं होनी चाहिए।
डॉ. बीबी चाहना, महाराजा अग्रसेन अस्पताल, जनकपुरी
नियमित टीकाकरण की परेशानियां
-राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना के तहत नियमित टीकाकरण के अंर्तगत दी जाने वाली वैक्सीन सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों पर ही दी जाती है।
-टीकाकरण के संबंध में दत्पतियों का एक बड़ा तबका निजी क्लीनिक और स्वास्थ्य केन्द्रों पर दी जानी निजी फार्मा कंपनियों की वैक्सीन पर अधिक भरोसा करते हैं।
-डीप्थीरिया, टिटनेस, खसरा आदि पांच साल तक लगने वाले सभी वैक्सीन 500 से 600 रुपए में निजी क्लीनिक या नर्सिंग होम पर लगाए जाते हैं।
-बीमारियों से बचने के लिए लगाए जाने वाले अन्य वैक्सीन के मुकाबले पोलियो वैक्सीन के प्रति लोगों का विश्वास अधिक है।
-कई बार एक जगह से दूसरी स्थानातंरण होने की वजह से भी बच्चे को सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र या फिर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर टीका नहीं मिल पाता, जबकि पल्स पोलियो अभियान की ट्रांजिट टीम ऐसे बच्चों को भी टीकाकरण में शामिल करती है।
बढ़ गया वैक्सीन का दायरा-बीमारियों का असर बढ़ा तो वैक्सीनेशन का दायरा भी बढ़ाया गया। हालांकि सरकारी योजनाओं में अब भी केवल बच्चों के नियमित टीकाकरण को ही रूटीन इम्यूनाजेशन माना जाता है। बावजूद इसके स्वाइन फ्लू, हीमोफीलिया, टाइफाइड, रूबेला, रोटावायरस, ह्ययूमन पैपीलोमा वायरस, कालरा, जैपनीज इंसेफलाइटिस, वैक्सीग्रिप, चिकनपॉक्स आदि एक दर्जन से अधिक बीमारियों के वैक्सीन विभिन्न फार्मा कंपनियों ने लांच किए हैं। जिन्हें किसी भी आयु वर्ग का व्यक्ति किसी भी उम्र में नियमित डोज के साथ लगवा सकता है।
स्वाइन फ्लू- एएच1एन1 वायरस के खिलाफ शरीर मं रोगप्रतिरोधक क्षमता बनाने के लिए इसी साल ही बाजार में स्वाइन फ्लू वैक्सीन लांच की गई है। ओरल रूप में उपलब्ध यह वैक्सीन सूअर से मनुष्य मं हस्तांतरित होने वाले वायरस ए एच1ए1वन के खिलाफ रक्षा कवच बनाने में कारगर मानी गई है। हालांकि वायरस के बदलते स्वरूप को देखते हुए सभी चिकित्सक वैक्सीन के सफल प्रयोग से सहमत नहीं हैं। वैक्सीन किसी भी आयुवर्ग के लोग लगवा सकते हैं।
सरवाइकल कैंसर- महिलाओं के सरवाइकल कैंसर के कारक हृयूमन पैपीलोमा वायरस के प्रभाव को रोकने के लिए एचपीवी वैक्सीन का सफल प्रयोग किया गया। जिसे 14 साल से 40 साल की उम्र की किसी भी लड़की या महिला को लगाया जा सकता है। कुछ राज्यों में वैक्सीन के प्रयोग के लिए ट्रायल किया जा रहा है। सरकारी योजना में फिलहाल एचपीवी को अभी शामिल नहीं किया गया है।
हीमोफीलिया- जन्मजात रक्त विकृति को हीमोफीलिया कहा जाता है। जिसमें बच्चे के शरीर में जन्म से ही रक्त के फैक्टर एच की कमी होती है। फैक्टर एच रक्त को जमने में कारगर माना जाता है। इसके अनुपस्थिति बच्चें में किसी भी रक्तस्त्राव का कारण बनती है। ऐसे में फैक्टर एच चढ़ाकर बच्चे को सामान्य किया जाता है। हीमोफीलिया का टीकाकरण फिलहाल विदेशी कंपनी द्वारा ही किया जा रहा है।
रूबेला-महिलाओं में बार-बार गर्भपात के कारण माने जाने वाले रूबेला वायरस से बचने के लिए रूबेला वैक्सीन को लांच किया गया। गर्भपात से बचने के लिए रूबेला वैक्सीन 28 से 30 साल की उम्र से पहले लगना अधिक कारगर माना गया है। वैक्सीन के बेहतर प्रभाव के लिए इसे -20 डिग्री सेंटीग्रेट के तापमान में संरक्षित होना चाहिए, हालांकि वैक्सीन जमे न यह भी जरूरी है।
फ्लू वैक्सीन- हर साल सर्दियों से पहले बाजार में वैक्सीग्रिप नाम से जाने जाने वाली फ्लू वैक्सीन की मांग बढ़ जाती है। जो बदलते मौसम में वायरस के प्रभाव से शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता को बनाती है। हर साल फ्लू वायरस बदलता है, इसलिए वैक्सीग्रिप को हर साल वायरस के स्टेन के आधार पर तैयार किया जाता है।
निमोनिया- 50 साल की उम्र के बाद निमोनिया वैक्सीन को दिल को सुरक्षित रखने के लिए विशेष रूप से अपनाया जाता है। निमोनिया वेक्सीन को किसी भी अन्य वैक्सीन के साथ समान्य रूप से लगाया जा सकता है। वैक्सीन बाजार में 300 रुपए से 500 रुपए की कीमत में उपलब्ध है।
आईएमए दिल्ली के डॉ. अनिल बंसल द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार