नयी दिल्ली: सरकार के मातृत्व लाभ कार्यक्रम के लिए बजट आवंटन में बढ़ोतरी करने की सामाजिक कार्यकर्ताओं और अर्थशास्त्रियों की मांग का केंद्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। एक अधिकारी ने बताया कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने वित्तमंत्री को दी गई अपनी इच्छासूची में प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के लिए कोई बढ़ोतरी की मांग नहीं की है जिसके तहत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को उनके पहले बच्चे के जन्म पर छह हजार रूपये देने का प्रावधान है।
मंत्रालय ने कार्यक्रम के लिए 2500 करोड़ रूपये मांगे हैं जो कि पिछले वर्ष जितना ही है। केंद्रीय बजट 2017 के दौरान इस योजना के लिए 2700 करोड़ रूपये की प्रारंभिक राशि घोषित की गई थी लेकिन बाद में इसे संशोधित करके 2500 करोड़ रूपये कर दिया गया था। देश के करीब 60 शीर्ष अर्थशास्त्रियों ने गत वर्ष दिसम्बर में जेटली को पत्र लिखकर इस ओर ध्यान आकृष्ट किया था। इन अर्थशास्त्रियों ने पत्र में लिखा था कि 2017-18 के बजट में इसके लिए आवंटित राशि (2,700 करोड़ रुपये) खाद्य सुरक्षा कानून के तहत आवश्यक राशि का केवल एक तिहाई है। ऐसी विश्वस्त जानकारी है कि नीति आयोग ने इसका लाभ पहले बच्चे की मां तक ही सीमित करने के कदम का विरोध किया था लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय लागत कारक के चलते अपने रूख पर कायम रहा।
योजना क्रियान्वयन के पहले वर्ष में 15 जनवरी 2018 तक मात्र 96460 महिलाओं को नकद अंतरण प्राप्त हुआ। यह उन कुल 51.6 लाख महिलाओं का दो प्रतिशत से भी कम है जिन्हें सरकार वार्षिक आधार पर लाभ पहुंचाना चाहती है। इसके परिणामस्वरूप अगले वित्त वर्ष में सरकार को दोगुनी संख्या में महिलाओं को नकद लाभ मुहैया कराना होगा जबकि गत वर्ष के बजट का पैसा खर्च नहीं कर पाने के कारण वापस हो जाएगा। राइट टू फूड कैंपेन की संयोजक दीपा सिन्हा ने कहा कि यह दिखाता है कि सरकार गंभीर नहीं है। दीपा उन लोगों में शामिल थीं जिन्होंने जेटली को पत्र लिखा था।
सोर्स: भाषा