डॉ. एन के अरोड़ा
कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख सदस्य डॉ. एनके अरोड़ा ने कोविड19 वैक्सीन के संदर्भ में भारत की अभी तक की यात्रा और भविष्य से संबंधित कई विषयों पर बात की-
प्रश्न- देश ने दस महीने से भी कम समय में टीकाकरण में सौ करोड़ का एक अहम पड़ाव हासिल करने के करीब है, यह भारत में महामारी की स्थिति को किस तरह से बदलने वाला है?
उत्तर- यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। इस पड़ाव तक पहुंचने में हमारी सबसे अधिक सहायता वैक्सीन आत्मनिर्भरता ने की। हम एक बड़ी आबादी तक वैक्सीन को सिर्फ इसलिए पहुंचा पाएं क्योंकि हमनें न सिर्फ वैक्सीन को विकसित किया बल्कि देश में ही वैैक्सीन का निर्माण भी किया गया, और यह सब एक रात में प्राप्त नहीं किया गया, यह पूरे एक से डेढ़ साल की रणनीतिक सोच का परिणाम है, और निश्चित रूप से उसे साकार करने के लिए की गई कड़ी मेहनत का भी।
हमारे देश में 94 करोड़ व्यस्क लोगों की आबादी कोविड वैक्सीन के लिए पात्र है। कुछ राज्यों में व्यस्क आबादी को कोविड वैक्सीन की पहली डोज का शत प्रतिशत (सौ प्रतिशत) टीकाकरण किया जा चुका है। भारत में वैक्सीन की मौजूद आपूर्ति और उत्पादन क्षमता के अनुसार हम अगले तीन महीने में अतिरिक्त 70 से 80 करोड़ टीकाकरण कर सकते हैं।
भविष्य में देश में कोविड19 की स्थिति प्रमुख पांच बातों पर निर्भर करेगी, पहला, लोग कोविड अनुरूप व्यवहार का कितनी गंभीरता से पालन करते हैं, दूसरा वेक्सीन की उपलब्धता, तीसरा भारत में कोविड की दूसरी लहर के दौरान किनते प्रतिशत लोगों को कोविड संक्रमण हुआ, चौथा आगामी महीनों में नये वेरिएंट की संभावना और पांचवा इस बात पर निर्भर करेगा कि कोविड के मामले बढ़ने पर हमारा स्वास्थ्य तंत्र कितना तैयार है।
दूसरी लहर के दौरान देश की 70 से 85 प्रतिशत आबादी किसी न किसी तरह से संक्रमण का शिकार हुई, बावजूद इसके बीते चार महीने में किसी नये वेरिएंट का प्रभाव नहीं देखा गया है। बावजूद इसके हम आईसीयू बेड, ऑक्सीजन आपूर्ति और जीवन रक्षक उपकरणों को बढ़ाने के लिए काफी प्रयास कर रहे हैं। पब्लिक प्राइवेट पार्टनर शिप या पीपीई के तहत जांच सुविधाओं को मजबूत किया जा रहा है। अब यह देश के लोगों पर निर्भर करता है कि वह आने वाले कुछ महीनों में त्योहारों के दौरान कितनी गंभीरता से कोविड अनुरूप व्यवहार का पालन करते हैं। मैं यह पूरे दृढ विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अनुशासन बनाए रखने से न सिर्फ कोविड के मामलों में कमी की जा सकती है बल्कि हम सामान्य स्थिति में भी पहुंच सकते हैं।
प्रश्न- भारत में बच्चों की वैक्सीन का सबसे अधिक उत्पादन होता है, लेकिन देश में वैक्सीन को विकसित नहीं किया जाता था, हालांकि महामारी के दौरान हमने कई टीके विकसित किए, यह कैसे संभव हुआ?
उत्तर- पिछले दो दशक में देश ने विज्ञान अनुसंधान के लिए बुनियादी ढांचे को विकसित करने में काफी प्रगति की है। सही मायने में परिवर्तन उस समय शुरू हुआ जबकि बीते साल नये टीकों के बुनियादी अनुसंधान और विकास को प्रेरित और प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया गया। मार्च वर्ष 2020 में इस संदर्भ में काफी मात्रा में निवेश बढ़ाया गया और वैक्सीन शोध के लिए एक अनुकूल वातावरण बनाया गया। इससे न सिर्फ वैज्ञानिकों को प्रोत्साहन मिला, बल्कि उद्यमी भी नये टीकों के विकास में सहयोग देने के लिए आगे आए। अंर्तराष्ट्रीय भागीदार, स्थानीय निर्माता, वैज्ञानिक और कई वैज्ञानिक लैबोरेटरी के साथ साक्षेदारी से नई तकनीकि विकसित और हस्तांतरित की जा सकीं। परिणाम स्वरूप महामारी शुरू होने के दस महीने से भी कम समय में भारत राष्ट्रव्यापी टीकाकरण कार्यक्रम शुरू कर पाया। आज हमारे पर कोविड वैक्सीन की एक व्यापक रेंज है जिसमें निष्क्रिय वैक्सीन, सब यूनिट वैक्सीन, वेक्टर्ड वैक्सीन, डीएनए, आरएनए वैक्सीन हैं, जो देश में बच्चों के साथ ही व्यस्कों के लिए और अन्य देशों के लिए भी उपलबध होगी।
प्रश्न- इन सभी टीकों को बहुत कम समय में विकसित किया गया है और आपातकालीन प्रयोग की अनुमति दी गई है, इसका मतलब है कि वैक्सीन के दीर्घकालीन प्रभाव को जानने से पहले इसे लोगों में प्रयोग किया गया, ऐसे में वैक्सीन की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए क्या उपाय किए गए हैं?
उत्तर- वैज्ञानिकों ने टीकों के संभावित दुष्प्रभावों और प्रभावों पर वर्ष 2020 के जून- जुलाई महीने से ही मंत्रणा करनी शुरू कर दी थी। इसी वर्ष सितंबर से अक्टूबर महीने के बीच भारत में कोविड वैक्सीन के दुष्प्रभावों का पता लगाने के लिए एक अतिरिक्त विशेषज्ञों का पैनल एईएफआई (एडवर्स इफेक्ट्स फॉलोविंग इम्यूनाइेशन) बनाया गया, जिसकी सहायता से राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर पाए एईएफआई या वेक्सीन के दुष्प्रभाव के किसी भी मामले को तुरंत पहचाना गया। इस पैनल में जनरल फिजिशियन, पल्मोनोलॉजिस्ट, कॉर्डियोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, हेपेटोलॉजिस्ट और अन्य विशेषज्ञों को शामिल किया गया। वर्ष 2020 दिसंबर के अंत तक एईएफआई के सदस्यों के लिए वैक्सीन के दुष्प्रभावों का पता लगाने के लिए देशभर जांच और आपातकालीन चिकित्सा सेवा प्रशिक्षिण शिविर आयोजित किए गए और टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने से पहले लगभग सभी को प्रशिक्षण दिया जा चुका था। इसके लिए एक राष्ट्रव्यापी सूची तैयार की गई, जिसमें वैक्सीन के बाद अभी तक एडवर्स इफेक्टके रूप में जानी जाने वाली मेडिकल स्थितियों को शामिल किया गया, लेकिन सूची में कुछ अतिरिक्त ऐसी शर्ते भी जोड़ी गईं जो सैद्धांतिक रूप से नया टीका होने की वजह से हो सकती थीं, इन्हें एईएसआई (एडवर्स इवेंट्स ऑफ स्पेशनल इंटरेस्ट) नाम से जाना गया।
पेरिफेरल और जिला अस्पतालों के टीकाकरण केन्द्र पर काम करने वाले डॉक्टर और नर्सों को वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जागरूक किया गया, और बताया गया कि किस तरह वैक्सीन की किसी भी प्रतिकूल घटना पर लेकर अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत और उसकी सूचना संबंधित अधिकारी को देना और उसका प्रबंधन आदि क्यों अति आवश्यक है।
इस संदर्भ में बच्चों के मामलों में प्रतिकूल प्रभाव से निपटने में देश के मौजूदा निगरानी अनुभवों ने काफी मदद की।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस पूरी प्रक्रिया को आसान बनाने में काफी सहायता की। डब्लूएचओ के राष्ट्रीय कार्यालय में एक वैक्सीन सुरक्षा प्रभाग है, जो तकनीकि के साथ ही संसाधन संबंधी सहायता भी देता है।
लगभग सभी टीकाकरण केन्द्रों पर वैक्सीन लगने के बाद तीस मिनट तक बैठने का बंदोबस्त किया गया। यह व्यवस्था इसलिए की गई जिससे कि टीका लगने लगने के बाद किसी भी आपाति या गंभीर स्थिति जैसे एनॉफिलिक्ट जैसे मामलों में तुरंत नजदीक के अस्पताल या स्वास्थ्य केन्द्र पर पहुचाया जा सके। इस व्यवस्था से कई लोगों की जान को बचाया जा सका। यही नहीं वैक्सीन लगने के बाद 28 दिन तक यदि किसी तरह की प्रतिकूल प्रतिक्रिया देखी जाती है तो उसे भी एईएफआई के अंर्तगत चिन्हित किया गया, और आगे की संबंधी जांच की गई जिससे यह पता लगाया जा सके कि प्रतिकूल प्रतिक्रिया वैक्सीन या टीकाकरण से संबंधित है या नहीं? टीकाकरण की नियमित निगरानी की जानकारी के लिए देशभर में 20 से 25 साइटों पर अस्पतालों और सामुदायिक जगहों पर सक्रिय निगरानी तंत्र स्थापित किया गया। इससे हमें टीकाकरण के किसी भी दीर्घकालीन प्रभाव की संभावना को जानने में मदद मिलेगी।
प्रश्न- वैक्सीन की सुरक्षा के बारे में लोगों को समझाना कितना मुश्किल था?
उत्तर- पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के लिए वैक्सीन हिचकिचाहट या वैक्सीन हेजिटेंसी के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए व्यापक अभियान किया था, कोविड टीकाकरण के बारे में गलत सूचनाओं और भ्रांतियों को दूर करने के लिए भी वैसा ही तंत्र तैयार किया गया। सरकार ने बीते साल अक्टूबर महीने में कोविड टीकाकरण कार्यक्रम शुरू होने से पहले ही सोशल मोबिलाइजेशन या सामाजिक लामबंदी शुरू कर दी थी। व्यवस्था के तहत टेलीविजन, न्यूज चैनल, प्रिंट मीडिया, वेबिनार, रेडियो कार्यक्रम आदि अन्य संचार के माध्यमों से वैज्ञानिक और प्रमाणित जानकारी के लिए 360 डिग्री का दृष्टिकोण अपनाया गया। इसके अतिरिक्त कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्व, धार्मिक गुरू, समुदायों के नेता आदि ऐसे लोगों के माध्यम से जागरूकता कार्यक्रम संचालित किए गए क्योंकि धार्मिक गुरू जनता के साथ जुड़े होते हैं।
पहली बार सोशल मीडिया पर प्रसारित की जानी वाली सूचनाओं की स्कैनिंग की गई, ताकि गलत सूचनाओं और अफवाहों को बारीकि से देखा जा सके, उनको जाना जा सके और फिर उनका मूल्यांकन किया जा सके और व्यवस्थित तरीके से उनका बचाव किया जा सके। मुझे लगता है कि वैक्सीन हिचकिचाहट भी एक तरह से संक्रामक बीमारी है, यह तेजी से एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में फैलती है यदि समय रहते इसे खत्म करने के लिए त्वरित कार्रवाई नहीं की जाती है।
प्रश्न- आपको क्या लगता है देश के लिए बाकी आबादी का टीकाकरण करना कितना मुश्किल या आसान होगा?
उत्तर- भारत में 94 करोड़ व्यस्क आबादी है और देश की आबादी का दोनों डोज का टीकाकरण कार्यक्रम पूरा करने के लिए 190 करोड़ अतिरिक्त डोज की आवश्यकता होगी। जहां तक वैक्सीन की आपूर्ति और देश के स्वास्थ्य संसाधनों की बात है हम इस बारे में काफी आश्वस्त हैं। सही मायने में अभी हम लोगों में एक तरह का वैक्सीन जोश या वैक्सीन उत्साह देख पा रहे हैं जबकि वैक्सीन हेजिटेंसी जैसी कोई बात नहीं है। लेकिन इसके आगे का रास्ता कठिन हो सकता है, क्योंकि संभव है कि हम वैक्सीन हेजिटेंसी को पूरी तरह खत्म कर दें या लोग वैक्सीन से हिचकिचाएं ही या फिर वैक्सीन हेजिटेंसी की संख्या काफी कम हो। मेरा इस संदर्भ में पूर्णत: विश्वास है कि प्रासंगिक कारकों को दूर करने के ठोस प्रयास से देश को पूर्ण टीकाकरण प्राप्त करने में मदद मिलेगी।