polycystic ovarian sydrome is raising problem of indian women

प्रजनन की उम्र में 40 प्रतिशत को पीसीओएस की परेशानी
प्रजनन की उम्र में देश में 40 प्रतिशत महिलाएं पीसीओएस (पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम) की तकलीफ से परेशान है। अहम यह है कि इंसुलिन अनियंत्रित होने की वजह से होने वाली इस बीमारी का पता उस समय चलता है जब वह गर्भधारण नहीं कर पाती हैं। 14 से 16 साल की उम्र में मासिक धर्म अनियंत्रित, शरीर पर अधिक बाल उगने या मुंहासे होना भी पीसीओएस के लक्षण हो सकते हैं, लेकिन अधिकांश लड़कियां इसको गंभीरता से नहीं लेती। खून की साधारण टीएसएस जांच और अल्ट्रासाउंड से इसका पता लगाया जा सकता है।
पोलिस्सिटक ओवेरियन सिंड्रोम पर जानकारी देने के लिए एम्स में जन व्याख्यान का आयोजन किया गया। संस्थान के इंडोक्रायनोलॉजिस्ट डॉ. मोहम्मद अशरफ गैनी ने बताया कि अनियंत्रित इंसुलिन केवल शुगर ही नहीं, पीसीओएस की भी एक वजह हो सकता है। महिलाओं के साथ ही पुरुषों में भी यह परेशानी देखी जाती है, लेकिन महिलाओं को अनियंत्रित इंसुलिन प्रजनन क्षमता पर असर डालता है, इसलिए महिलाओं में इसे अधिक गंभीर माना जाता है। दरअसल बीमारी के बारे में चिकित्सकों की जानकारी भी बेहद सीमित हैं, जिसका इलाज कराने के लिए अकसर लड़कियां त्वचा या फिर महिला रोग विशेषज्ञ के पास जाती हैं। घर में यदि किसी को पहले से डायबिटिज या इंसुलिन अनियंत्रित होने की समस्या है तो पीसीओएस का खतरा दस गुना बढ़ जाता है। डायबिटिज की तरह ही बीमारी का सटीक इलाज फिलहाल उपलब्ध नहीं है, जबकि हार्मोन नियंत्रित करने वाली कुछ दवाओं से कुछ हद तक इंसुलिन को नियंत्रित किया जा सकता है। मेट्रोबॉलिक डिस्ऑर्डर विशेषज्ञ डॉ. नूतर अग्रवाल ने बताया कि मासिक धर्म शुरू होने की उम्र के दो से तीन साल के अंदर में पीसीओएस के लक्षण सामने आने लगते हैं, जिसमें कुछ मेल (पुरुष) हार्मोन को भी जिम्मेदार माना जाता है। हालांकि विशेषज्ञ इसकी पहचान बाद में गर्भधारण में मुश्किल होने पर भी बीमारी की पहचान करते हैं, जबकि कुछ दवाओं की मदद से पीसीओएस में भी सामान्य गर्भधारण किया जा सकता है।

उम्र बढ़ने के साथ कम होता है खतरा
डॉ. नूतन अग्रवाल ने बताया कि 14 साल की उम्र से बढ़ा पीसीओएस का खतरा उम्र बढ़ने के साथ कम होने लगता है, 50 साल की उम्र के बाद तकलीफ कम हो जाती है। जबकि सही उम्र में इसकी पहचान न होने पर अनियंत्रित इंसुलिन डायबिटिज, किडनी, लिवर और गर्भपात की वजह भी बन सकता है। दवाओं के जरिए इंसुलिन को नियंत्रित किया जाता है, जबकि बीमारी का स्थाई इलाज नही है। आईसीएमआर के साथ हुए एक समझौते में बीमारी पर शोध के लिए फंड दिया गया है।

शुक्रवार को ओपीडी
एम्स में हर शुक्रवार को इंडोक्रायनोलॉजी विभाग में पीसीओएस क्लीनिक या ओपीडी लगती है। क्लीनिक में फिलहाल तीन हजार मरीजों का इलाज किया जा रहा है। 20 प्रतिशत पुरुषों को भी अनियंत्रित इंसुलिन की वजह से पीसीओएस की तकलीफ हो सकती है। लक्षण के आधार पर खून की टीएसएच, कॉर्टिस्टॉल, ग्लूकोज और अंडाशय का अल्ट्रासाउंड करा लेना चाहिए।

बीमारी के कुछ लक्षण
– स्लीप एपीनिया या नींद न आना
– हाईपरटेंशन या अधिक तनाव
– दिल की बीमारी और मोटापा बढ़ना
– टाइप टू डायबिटिज व चेहरे पर बाल
– मासिक धर्म अनियंत्रित होना

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