नई दिल्ली, बच्चों में होने वाली टाइप वन डायबिटिज को विटामिन डी से रोका जा सकता है। इस संदर्भ में किए गए अध्ययनो से खुलासा हुआ है कि बच्चों को शुरूआत में ही यही विटामिन डी की भरपूर मात्रा दी जाएं तो टाइप वन या आईलेट ऑटोइम्यून टाइप वन डायबिटिज से बचा जा सकता है। विटामिन डी की कमी संबंधी देश के आंकड़े बताते हैं कि भारत में अस्सी प्रतिशत लोगों में विटामिन डी की कमी है। विटामिन डी शरीर के रामबाण साबित हो सकता है क्योंकि यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।
आईलेट ऑटोइम्यूनिटी उन एंटीबॉडी द्वारा पता चलती है जो प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा पैंक्रियाज में मौजूद आईलेट कोशिकाओं में हमला करने से उत्पन्न होती हैं। मालूम हो कि इंसुलिन का उत्पादन पैंक्रियाज में ही होता है और यह टाइप वन डायबिटिज की शुरूआती अवस्था मानी जाती है। इस बावत पद्मश्री डॉ. केके अग्रवाल ने बताया कि टाइप वन डायबिटिज के हालांकि अभी तक सटीक कारणों का पता नहीं चला है, बावजूद इसके अध्ययनों के अनुसार यह साबित हुआ है कि कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली की वजह से पैक्रियाज में सेल्स का बनना प्रभावित होता है। जिससे आईलेट कोशिकाएं नष्ट होन लगती है और पैंक्रियाज में बनने वाले इंसुलिन की प्रक्रिया बाधित होने से यह खून में जरूरत के हिसाब से शर्करा का संचार नहीं कर पाते हैं। इंसूलिन का एक महत्वपूर्ण काम होता है ग्लूकोज को खून के जरिए शरीर की कोशिकाओं तक पहुंचाना, जब खाना पच जाता है तो ग्लूकोज रक्त में पहुंचता है आईलेट कोशिकाओं में नष्ट होने के बाद ग्लूकोज या तो बेहद कम या न के बराबर बनने लगता है, जो कई तरह की जटिलताओं की वजह बनता है। टाइप वन डायबिटिज धीरे धीरे विकसित होती है लेकिन इसके लक्षण अचानक सामने आते हैं। पेशाब न लगना, भूख में कमी, वजन कम होना, प्यास अधिक लगना, थकान व कमजोरी बच्चों में टाइप वन डायबिटिज के शुरूआती लक्षण हो सकते हैं। हालांकि इस स्थिति को रोकना असंभव है लेकिन नियमित दिनचर्या से टाइप वन डायबिटिज को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए कुछ सामान्य उपाय अपनाये जाने चाहिए, स्वास्थ्य के लिए उपयोगी फाइबर युक्त भोजन का ही चयन करें, रोज तेज कदमों से चले, धुम्रपान के आदि हैं तो उसका सेवन करना छोड़ दे। मधुमेह के साथ ही हृदयरोग की भी नियमित जांच कराएं।