Robotic Hand ने जगाई दिव्यांगों में नई उम्मीद

नई दिल्ली: 14 वर्षीय साहिल कोचिंग क्लास से वापस लौटते समय बारूदी विस्फोट का शिकार बन गया और नतीजन उसे अपना दाहिना हाथ खोना पड़ा। श्रीनगर के साहिल को अपना हाथ खोने के बाद अपने परिजनों के सहारे होकर किसी तरह से अपना जीवन गुजार रहा था। कोई भी सोच सकता है कि एक हाथ से जूते के फीते बांधने, बेल्ट लगाने या लिफाफे खोलने जैसे रोजमर्रे के साधारण कार्यों को करने में किस कदर परेशानी हो सकती है। साहिल को हर दिन उसे नई-नई बाधाओं का सामना करना पड़ता था जिसके कारण धीरे- धीरे वह डिप्रेशन की चपेट में चला गया। उसकी परेशानियों को महसूस करते हुए साहिल के पिता ने उसे इलाज के लिए दिल्ली ले जाने का फैसला किया। दिल्ली में, उन्होंने अपने बेटे को मायोइलेक्ट्रिक हैंड लगावाया जो मांसपेशियों की हरकतों के जरिए संचालित होता है। इसके बाद साहिल का जीवन बदल गया और अब वह सामान्य व्यक्ति की तरह रोजमर्रे के कामकाज कर सकता है। सबसे बड़ी बात यह कि कोई अनजान व्यक्ति उसे देखकर यह कतई अंदाजा नहीं लगा सकता कि उसके एक हाथ नहीं हैं और उसने मायोइलेक्ट्रिक हैंड लगाया हुआ है।

इस हैंड को लगाने के बाद साहिल को मानो उसका दाहिना हाथ वापस मिल गया। खुशी से भरपूर साहिल कहता है, ‘‘अब मैं अपनी मुट्ठियां खोल और बंद कर सकता हूं। अपने हाथ से पानी की बोतलं को पकड़ सकता हूं और पानी पी सकता हूं। अपने जूते के फीते बांध सकता हूं। यहां तक कि दोस्तों के साथ खेल भी सकता हूं जो मैं पहले नहीं कर सकता था।’’मायोइलेक्ट्रिकल हैंड के जरिए अपनी विकलांकता पर विजय पाने वालों में साहिल अकेला नहीं है बल्कि काफी लोग इसकी मदद से सामान्य और सक्रिय जीवन जीने लगे हैं। अपना हाथ खोकर दिव्यांग बने लोगों के लिए खुशखबरी यह है कि अब मायोइलेक्ट्रिक हैंड का निर्माण भारत में ही होने लगा है और इसकी कीमत बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बनाए जाने वाले मायोइलेक्ट्रिक हैंड से आधी से भी कम है।

भारत में मायोइलेक्ट्रिक हैंड का निर्माण हाई टेक कस्टमाइज्ड प्रोस्थेटिक्स निर्माता पी एंड ओ इंटरनेशनल कर रहा है। मायोइलेक्ट्रिक हैंड का स्वदेशी तौर पर निर्माण करने के लिए देश की राजधानी नई दिल्ली में एक खास केन्द्र बनाया गया है जिसकी शुरूआत हो गई है। पी एंड ओ इंटरनेशनल के निदेशक नीरज सक्सेना के अनुसार साहिल को जो मायोइलेक्ट्रिक हैंड लगाया गया उसे देश में ही विकसित किया गया। हमने जो भारत में पहली बार स्वदेशी मायोइलेक्ट्रिक हैंड का निर्माण किया है। ये हैंड मांसपेशियों के इलेक्ट्रिकल गुणों के द्वारा नियंत्रित होते है और इनके अंगूठे रोटेट करते हैं। इनकी कीमत बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तुलना में आधी से भी कम है।’’

कैसे काम करता है मायोइलेक्ट्रिक हैंड: श्री नीरज सक्सेना ने कहा कि नए कृत्रिम हाथों को इलेक्ट्रोड की एक सारणी के जरिए नियंत्रित किया जाता है। इसे हाथ में त्वचार पर गैर-इनवेैसिव तरीके से बहुत ही सरल एवं आसान तरीके से रखा जाता है। इसमें इलेक्ट्रोड का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है क्योंकि मांसपेशियों के संकुचन मायोइलेक्ट्रिक सिग्नल पैदा करते हैं और इन सिग्नल के सहारो मायोइलेक्ट्रिक हैंड काम करते हैं। ये सिग्नल मस्तिष्क से निर्देशित विद्युत आवेग होते हैं जो मांसपेशियों के तंतुओं से जुड़े होते हैं। हर व्यक्ति में किसी खास हरकत के लिए विशेष तरह के मायोइलेक्ट्रिक पैटर्न उत्पन्न होते हैं। जब वे खास मायोइलेक्ट्रिक पैटर्न दोहराए जाते हैं तो अंग में उसी तरह की हरकत दोबारा होती है। मायोइलेक्ट्रिक हैंड में लगे सेंसर साफ्टवेयर मांसपेशियों की दोहराई जाने वाली गतियों के पैटर्नों और एल्गोरिदम को समझते हैं उसके बाद मायोइलेक्ट्रिक हैंड को काम करने करने का निर्देश देते हैं। उन्होंने कहा कि कृत्रिम अंग किसी व्यक्ति के मायोइलेक्ट्रिक पैटर्न में बदलाव के साथ खुद में बदलाव करना सीखते हैं और उसके अनुकूल खुद को ढालते हैं। समय के साथ, एल्गोरिदम कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करके इन पद्धतियों को सीखते हैं और इस तरह से वह मायोइलेक्ट्रिक हैंड एक रोबोट की तरह काम करने लगता है।

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