नई दिल्ली
कोलकाता में एक महिला प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ बलात्कार और बर्बर हत्या ने देशभर के मेडिकल जगत को झकझोंर कर रख दिया है। जिसकी वजह से दूसरे दिन मंगलवार को भी मेडिकल सेवाएं पूरी ठप्प रही, डॉक्टर सड़क पर उतर आए, दिल्ली में एम्स सहित सफदरजंग, आरएमएल और दिल्ली सरकार के अंर्तगत आने वाले अस्पतालों में भी आरडीए ने काम नहीं किया। डॉक्टरों पर हमले और सुरक्षा को लेकर लंबे समय से मेडिकल जगत के शीघ्र संगठन देश में सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट फॉर हेल्थ केयर वर्कर लागू करने की मांग कर रहे हैं। जिसके तहत मेडिकल क्षेत्र से जुड़े मेडिको और नॉन मेडिको के अलावा पीएमजे के तहत नियुक्त अरोग्य मित्र को भी शामिल किया गया है। आखिर क्या है सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट, जिसके लागू होने के बाद मेडिकल क्षेत्र से जुड़े तमाम लोगों की सुरक्षा अधिक पुख्ता हो सकेगी।
आठ अगस्त 2022 में इस बिल को संसद में प्रस्तुत किया गया था, जिसपर अभी स्वीकृति मिलना बाकी है। प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार मेडिकल क्षेत्र में काम करने वाले डॉक्टर्स, नर्स, लैब तकनीशियत और औषधि वितरण आदि के खिलाफ होने वाली हिंसा देश में आपदा का रूप ले चुकी है। हालांकि समय के साथ पूर्वोत्तर देशों में हिंसा पर लगाम कसी जा सकी, लेकिन भारत में तेजी से मेडिकल क्षेत्र में हिंसा के मामले बढ़ रहे। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की एक रिपोर्ट अनुसार अपने पूरे जीवन के सेवा काल में 75 प्रतिशत चिकित्सक और पैरा मेडिकल स्टाफ एक न एक बार हिंसा का शिकार अवश्य होता है। केवल शारीरिक ही नहीं हिंसा का यह रूप मौखिक भी होता है और मानसिक भी। कुछ राज्यों में चिकित्सकों पर हुए हमले इतने गंभीर हो गए कि हिंसाकारियों ने अस्पताल की बिल्डिंग को भी नुकसान पहुंचाया गया। सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट के तहत मेडिकल क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति को काम करते हुए हिंसा का शिकार बनाना, अस्पताल संपत्ति को नुकसान पहुंचाना या भी अन्य किसी भी क्षति पर सजा और पेनल्टी देने का प्रावधान किया होगा। सरकारी या निजी अस्पतालों में चिकित्सकों पर होने वाली हिंसा की एक बड़ी वजह इलाज में देरी को पाया गया, मरीज को ऐसा लगता है कि डॉक्टर उन्हें देख नहीं रहे या फिर बेवजह इंतजार कराया जा रहा है। इस लिहाज से मेडिकल क्षेत्र में भरोसे की कमी एक बड़ी वजह बनकर उभरा है। बिल में केवल सजा और पेनल्टी की ही बात नहीं कही गई बल्कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया अब ने मेडिकल छात्रों के लिए नये नैतिक पाठ्यक्रम को भी लागू करने का प्रस्ताव दिया है। जिससे समस्या का समाधान निकाला जा सके, इस मॉड्यूल में मरीजों के अधिकारों (एईटीओएम) की भी बात कही गई है। हालांकि वर्तमान में लागू क्लिनिकल एस्टेबलिश्मेंट बिल में हिंसा के खिलाफ जांच कमेटी गठित करने और परिणाम आने के बाद निर्धारित कार्रवाई की बात कही गई है, लेकिन सेंट्रल प्रोटेक्शन एक्ट में कार्रवाई का दायरा विस्तृत होगा, जिससे निश्चित रूप से मेडिकल जगह की सुरक्षा पुख्ता होगी।