नई दिल्ली: राजधानी में की मंगलवार की सुबह न्यूनतम तापमान 6.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। तापमान की यह गिरावट शरीर के अंदर के तापमान पर भी असर डालती है। विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान में कितनी भी गिरावट हो, शरीर का तापमान 98 डिग्री सेल्सियस पर रखना जरूरी होता है। बाहरी ठंड से बचाव करने में असफल जिन लोगों के शरीर का तापमान 95 तक भी पहुंच रहा है, उन में हाइपोथरमिया की शिकायत देखी जा रही है। इसमें सही समय पर इलाज न होने पर हार्ट अटैक या फिर अस्थमा अटैक हो सकता है। बुजूर्गो में अकसर बढ़ती ठंड की वजह से नसों में संकुचन और हृदय धमनियां अनियंत्रित होने की शिकायत बढ़ जाती है।
मैक्स अस्पताल के कार्डियोलॉजिस्ट डिपार्टमेंट के डॉ. विवेका कुमार ने बताया कि जिन लोगों का ब्लडप्रेशर गर्मियों में सामान्य रहता है, सर्दी में उनके भी बीपी में उतार चढ़ाव देखा जाता है। यह वातावरण में ऑक्सीजन की कमी और मांसपेशियों में संकुचन के कारण होता है। दिल को रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियां में जब खून का प्रवाह बाधित होता है तो इसका असर ब्लडप्रेशर पर पड़ता है। सीने में उठा दर्द सिर और कान तक पहुंचता है, सर्दी का असर बढ़ने की वजह से अस्पताल में हर रोज तीन से चार मरीज की कार्डिएक एलाइंमेंट की शिकायत लेकर एम्स पहुंच रहे हैं।
एम्स के इंटरनल मेडिसन विभाग के डॉक्टर रणदीप गुलेरिया कहते हैं सर्दी दूर करने के लिए अपनाए जाने वाले उपकरण भी ऑक्सीजन का स्तर कम करते हैं। हीटर और अंगीठी से पैदा होने वाली कार्बन मोनाऑक्सीजन सांस लेने में दिक्कत पैदा करती है। इसलिए आज कल रेडिएशन युक्त हीटर के इस्तेमाल की सलाह दी जाती है। बच्चों और बुजुर्गो की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण भी उसमें हाइपोथरमिया की शिकायत अधिक होती है, इसमें दस से पन्द्रह मिनट के अंदर डॉक्टर को दिखाना जरूरी होता है।
अब आने लगे चिल ब्लेन के मरीज
तड़के सुबह और देर रात तक घर से बाहर रहने वाले लोगों को अब चिल ब्लेन परेशान करने लगा है। जिसकी वजह से पैरों की अंगुलियों में सूजन, लालिमा और खुजली की शिकायत होती है। लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के डॉ. नरेश कुमार ने बताया कि पैरों में खून पहुंचाने वाली छोटी नसों में खून का संचार बाधित होने से चिल ब्लेन की समस्या होती है। सर्दी के सीधे संपर्क में रहने वाले लोगों को यह तकलीफ अधिक होती है। चिल ब्लेन यदि गंभीर स्थिति में पहुंच गया है तो पैरों को सर्दी के संपर्क से बचाना चाहिए, जबकि मोजे या फिर जूते पहनने से पहले विक्स लगाना बेहतर होता है।
बरतें एहतियात
-कान में टोपी या मफरल बांधने के साथ ही मुंह और नाक को भी ढके
-इससे शुष्क हवा फेफड़े तक नहीं पहुंचेगी और संकुचन कम होगा
-हीटर या फिर अंगीठी का इस्तेमाल अधिक देर तक न करें
-बीपी कम होने से यदि आंख से पानी या कान लाल हो तो डॉक्टर को दिखाएं
-एक मोटा स्वेटर पहनने की जगह दो तीन पतले स्वेटर पहनें
-यह शरीर के तापमान को सामान्य बनाने रखने में मदद करेगा