घर की अपेक्षा ऑफिस में बीतने वाले घंटे बढ़ रहे हैं। सुबह 10 से शाम 5 बजे तक ऑफिस के पीसी और कुर्सी पर काम करने वालों को मांसपेशियां व हड्डियों संबंधी बीमारियां देखी जा रही हैं। जिसका असर युवाओं की कार्यक्षमता पर भी पड़ रहा है। एक अंतराष्ट्रीय रिक्रूटमेंट एजेंसी द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार उठने व बैठने के गलत ढंग, काम करने की सही दिशा और दशा न होने के कारण एक साल के अंदर 30 फीसदी युवाओं की कुल कार्यक्षमता को 25 फीसदी कम कर देती है। जिसका असर कुल राष्ट्रीय आय पर भी पड़ रहा है। स्वस्थ्य और स्वास्थ्यवर्धक कार्य करने का वातावरण देने के लिए कई कारपोरेट कंपनियों ने विशेष व्यवस्था करने पर जोर डाला है। जिसमें काम करने वाले युवाओं की उम्र, कद व मोटापे के अनुसार अलग-अलग कुर्सियां बनाने की सिफारिश की गई है।
एरगॉनामिक्स का बढ़ा दायरा
मल्टीनेशनल और कारपोरेट कंपनियों में इस संदर्भ में ‘एरगॉनामिक्स ’ शब्द प्रचलित हो रहा रहा है। जिसका अर्थ ऐसी बायोटेक्लॉजी से हैं, जिसमें काम करने के वातावरण के अनुकूल बैठने की व्ययवस्था व अनुकूल परिस्थिति में काम करते हुए उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को देखा जाता है। अकेले एनसीआर में तीन दर्जन बड़ी निजी कंपनियां कामकाजी युवाओं के स्वास्थ्य के अनुकूल कुर्सियां बना रही हैं। जिसमें उनके कद को ध्यान में रखा गया है। जिसका असर कार्यक्षमता पर भी सकारात्मक देखा गया। देश में एरगॉनामिक्स की जरूरत को देखते हुए वर्ष 1983 में इंडियन सोसाइटी ऑफ एरगॉनामिक्स का गठन किया गया।
क्या है बैठने का गलत ढंग
साधारण किसी भी ऑफिस में दो से तीन घंटे के भीतर हर तीसरे व्यक्ति को गर्दन को आराम देने के लिए घुमाते हुए पैरों को सीधा करते हुए व कमर दर्द से परेशान होते हुए देखा जा सकता है। इन सभी परेशानियों को आम भाषा में थकान का रूप दिया जाता है। जिसमें केवल आराम कर लेना ही मात्र नहीं है। जबकि यदि विशेषज्ञों की मानें तो सही दशा व दिशा में किए गए काम से कुल काम से होने वाली थकान व परेशानी को 70 फीसदी कम किया जा सकता है। बैठने की एक गलत दशा एक समय में शरीर के कई अंगों की साधारण गतिविधि को प्रभावित करती है। यही दिशा यदि आदत में शामिल हो जाएं तो परेशानी होना लाजिमी है।
कैसे रखें गर्दन का ध्यान
-कंप्यूटर पर काम करने का सीधा असर आंखों के बाद गर्दन पर पड़ता है। आंखों की सुरक्षा के लिए जिस तरह की कंप्यूटर की फोटो क्रामिक स्क्रीन को प्रमुखता दी जाती है, उसी तरह गर्दन को सुरक्षित रखने के लिए कंप्यूटर की की बोर्ड का सही दिशा में होना भी जरूरी है।
-तीन से चार घंटे यदि की बोर्ड पर काम कर रहे हैं तो कंप्यूटर से की बोर्ड की दूरी एक फीट होनी चाहिए, दोनों हाथ की कोहनी लटकी हुई स्थिति में नहीं होनी चाहिए, इससे गर्दन की मांसपेशियों में तुरंत खिंचाव होता है।
-संभव हो तो काम करते हुए प्रत्येक एक घंटे में एक बार गर्दन को मूवमेंट व हल्का स्ट्रेस दें, इससे मांसपेशियां लंबे समय तक एक ही स्थिति में बने रहने के लिए मजबूर नहीं होगी, और नेक पेन से कुछ हद तक निजात मिल सकेगा।
-कंप्यूटर के लिए बनाई गए स्पेशल मेज को यदि काम करने वाले व्यक्ति की लंबाई के अनुसार नहीं बनाया गया है तो यह भी गदर्न में दर्द का एक प्रमुख कारण हो सकता है। की बोर्ड रखने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली स्लाइड मेज की जगह विशेषज्ञ मेज पर ही निश्चित दूरी पर की बोर्ड को रखना अधिक बेहतर बताते हैं।
-गर्दन के दर्द से बचने के लिए काम करते हुए टाई के इस्तेमाल को पूरी तरह गलत बनाया गया है, जो सीधे रूप से स्पांडलाइटिस व गर्दन के दर्द का प्रमुख कारण मानी गई है। टाई की जगह लूज कार्लर के शर्ट अधिक आरामदेह माने गए हैं।
कंधों का दर्द
-गलन दशा में काम करने का दूसरा सबसे अधिक असर कंधों पर पड़ता हैं। लैपटाप का इस्तेमाल अधिक करने वाले युवाओं को अकसर कंधे की मांसपेशियों में दर्द की शिकायत होती है। जिसकी प्रमुख वजह लैपटॉप को किसी भी ढंग से इस्तेमाल करने की आदत को माना गया है।
-बिस्तर पर लेट कर या फिर गोद में रखकर लैपटाप का प्रयोग किया जा रहा है तो यह एंगल सेहत नजरिए से ठीक नहीं कहा जा सकता। सीधे लेटते हुए लैपटॉप व गर्दन के बीच कंधे पर सीधा दवाब पड़ता है। लगातार ऐसे काम करते रहने से खींचाव पैदा होना जायज है।
-लैपटॉप को यदि गोद में रखकर काम करना है तो तीन से चार इंच का मोटा तकिया नीचे रखें, संभव हो तो एक से दो घंटे के बाद इस दिशा को भी परिवर्तित करते रहें।
-इसी तरह ड्राइविंग करते हुए महिलाएं अधिकतर पोश्चर का ध्यान नहीं रखती, स्टेरिंग और सीट को एडजस्ट करने के बाद सीट बेल्ट का प्रयोग करना चाहिए, कार में सीट कवर या गद्दी को अपनी सेहत व लंबाई के अनुसार बनाया जाएं तो अधिक बेहतर कहा जा सकता है।
-फोन सुनते हुए कंधे को एक तरफ झुकाकर काम करना कंधे के दर्द को सीधे दावत देना कहा जा सकता है।
पीठ व पैर का दर्द-
-आपके बैठने की कुर्सी यदि बैठते हुए मेरूदंड को सपोर्ट नहीं दे रही है तो इसका मतलब आज नहीं तो कल आप पीठ के दर्द के शिकार हो सकते हैं। कुर्सी का बैकसपोर्टिव होना बेहतर जरूरी है।
-पीठ व पैर सपोर्ट देने के लिए फूट रेस्ट जरूरी है। जिसका मतलब है, पैरों के नीचे लंबाई के अनुसार 20 से 25 इंच का पायदान होना चाहिए, जिससे शरीर के जरिए पैरों तक पहुंचने वाला खिंचाव फुट रेस्ट के जरिए रोका जा सके। इस संदर्भ में विशेषज्ञ पुराने जमाने में इस्तेमाल किए जाने वाले सिंघासन को बेहतर चेयर मानते हैं।
-मेरूदंड को खिंचाव मुक्त रखने के लिए कंप्यूटर से कुर्सी का कोण 90 ड्रिगी व न होकर 180 डिग्री पर सही माना गया है। इसके साथ ही तनाव मुक्त रखने के लिए वर्किंग टेबिल पर अतिरिक्त फाइल के बिखराव को सही नहीं कहा जा सकता।
-ऑफिस के अलावा यदि घर पर टेबिल या कुर्सी का प्रयोग करना है तो लकड़ी की तार से बुनी हुई कुर्सियों का इस्तेमाल करें, इससे हवायुक्त व अधिक आरामदेह माना गया है। इन कुर्सियों पर फोम का इस्तेमाल न करें, फोम को जूट की गद्दियां अधिक प्रभावकारी होगी।
-सख्त व मोटे तले की जगह पीटी शूज पैरो को अधिक आराम देते हैं। ऐसे जूतों का चयन करें, जिसकी सोल पूरी तरह मुड़ जाएं।
-क्रास लेग करके कम ही बैठें, जबकि दाहिने पैर के पंजे को बांए पैर के ऊपर रखकर, हाथों को सीधा रखकर बैठना, बैठने की सही दशा कही जा सकती है।