आपकी सेहत का राज अब आपकी जेब में

sehatनई दिल्ली: एक कारपोरेट कंपनी में एक्जीक्यूटिव के पद पर तैनात रजत अरोड़ा को तीन महीने पहले पता चला कि उसे एंजाइना है। खून में लगातार एचडीएल की मात्रा बढ़ रही है और वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा। थोड़े व्यायाम के साथ ही आहार विशेषज्ञ ने उसे डायट चार्ट बनाकर दिया, जिससे वह अपनी रोजाना ली जाने वाली कैलोरी व वसा पर नजर रख सके, लेकिन इतना सब जानने के लिए भी उसे अपनी सेहत की मॉनिटरिंग नियमित करना जरूरी है, इसके साथ ही हफ्ते में एक बार चिकित्सक से परामर्श लेना जरूरी है। रजत की इस समस्या का समाधन एक डिवाइस ने किया, जिसकी बदौलत वह पॉकेट रखे एक उपकरण की मदद से अपनी ईसीजी की जांच कर सकता है साथ ही पेडोमीटर से वह अपनी कैलोरी को हर कदम पर गिन सकता है।

यह तो रजत की समस्या, जिसका समाधान भी उसे जल्द ही मिल गया, लेकिन सेहत और उससे जुड़े कई पहलूओं पर हम ध्यान नहीं दे पाते, या फिर ध्यान देते हैं तो तब तक बहुत देर हो जाती है।कारपोरेट कंपनियों ने अपनी कंपनियों की क्षमता को बढ़ाने के लिए आजकल प्रीवेटिंग हेल्थ चेकअप पर ध्यान देना शुरू कर दिया है । जिससे बीमारी से पहले ही उससे बचाव के उपाय अपनाएं जा सके। इसी क्रम में कुछ जरूरी तकनीकि उपकरणों ने हमारी आम दिनचर्या में जगह बना ली है। एंड्रायड फोन होने के कारण यह ठीक उसी तरह हमारे साथ रह सकते हैं, जिस तरह मोबाइल का नेटवर्क। तकनीक की मदद से सेहत पर नजर रखने वाले करीब 15 से 20 उपकरण इस समय बाजार में मौजूद हैं जिसे चिकित्सक की सलाह के बाद इस्तेमाल किया जा सकता है।

दिल की बीमारी- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2020 तक भारत में विश्व की कुल दिल की बीमारी के 50 प्रतिशत मरीज भारत में होगें। सीएचडी या फिर कोरोनरी हार्ट डिसीस का पहला चरण दिल की धमनियों में संकुचन होता है, जिसका मतलब है कि खून में एचडीएल की मात्रा अधिक हो गई है या फिर धमनियों में वसा जमने लगा है, जिसकी वजह से खून की साधारण आपूर्ति दिल के जरिए शरीर के अन्य हिस्सों में नहीं हो पा रही है। दिल की बीमारी के बढ़ते आंकड़ों को देखते हुए चिकित्सा तकनीक में जेब में फिट होने वाली दिल की जांच के उपकरण अधिक प्रचलित हैं।

ईसीजी डिवाइस- एंड्रायड फोन धारक कोई भी व्यक्ति छह इंच के इस डिवाइस को अपनी फोन की यूएसबी से जोड़ा कर तीस सेकेंड में ईसीजी की जानकारी हासिल कर सकता है, कई फैमिली फिजिशियन अपने मरीजों की व्यस्तता को देखते हुए मरीज के स्मार्ट फोन की ईसीजी अपने फोन में मंगा लेते हैं, जिससे मरीज को चिकित्सक के पास जाएं बिना ही उसकी सलाह मिल जाती है।

ईएचआर- इलेक्ट्रानिक हेल्थ रिकार्ड के जरिए मरीज की स्वास्थ्य संबंधी सभी जरूरी पैरामीटर डॉक्टर तक पहुंच जाते हैं। इसमें मरीज को दस इंच के डिवाइस को हफ्ते में एक बार प्रयोग करना पड़ता है। इसमें मशीन पर अंगूली के जरिए दिल की धड़कर व सीटी सहित अल्ट्रासाउंड की इमेज चिकित्सक को मिल जाती है। इस तकनीक में व्यक्ति की त्वचा के संवेदन को मशीन में ग्राफिक में तब्दील किया जाता है। मशीन एक बार में बीस से 50 सेकेंड में जरूरी पैरामीटर जैसे ब्रीदिंग, ब्लड और सर्कुलेशन की जानकारी देती है।

कार्डियक मॉनिटरिंग- दिल की सर्जरी या फिर पेस मेकर लगवा चुके मरीजों के लिए कार्डियक मॉनिटर घर पर लैबोरेटरी या फिर कैथलैब का काम करता है। इसे हर 30 दिन में एक बार इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें मरीज की पसलियों के बीच में दो इंच का एक वायरलेस डिवाइस लगाया जाता है, यह डिवाइस एक रिमोट से जुड़ा होता है, फैमिली फिजियशन या फिर इलाज कर रही टीम इस रिमोट को संचालित करती है, इसमें मरीज के कहीं भी जाने सा कोई भी काम करने के दौरान भी चिकित्सक की नजर उसकी धड़कन या फिर दिल पर होती है। डिवाइस को बेव पोर्टल से जोड़ दिया जाता है, जिसमें रिपोर्ट ग्राफ के रूप में आती है।

डायबिटिज में तकनीक- दिल के बार डायबिटिज को दूसरी सबसे बड़ी बीमारी माना गया है, देखा जाएं तो डायबिटिज विशेषज्ञों का एक बड़ा वर्ग डायबिटिज को बीमारी की श्रेणी में ही नही रखता। डायबेटोलॉजिस्ट डॉ. विनोद गुजराल कहते हैं कि संयमित और नियंत्रित जीवन जीने मात्र से डायबिटिज को कंट्रोल किया जा सकता है। जिसमें हमारे खाने का एक एक निवाला हमें यह देखकर खाना होता है कि इससे शरीर में शुगर की मात्रा कितनी कम होगी या कितनी अधिक, और ऐसा न करने पर डायबिटिज हमपर हावी होने लगती है, जिसका असर किडनी और दिल की बीमारी के रूप में पड़ता है। डा. गुजराल कहते हैं कि निश्चित रूप से डायबिटिज नियंत्रण सेल्फ मॉनिटरिंग है, जिसमें कुछ जरूरी डिवाइस मरीज की काफी मदद कर सकते हैं।

पेडोमीटर- डायबिटिज मरीज सबसे अधिक पेडोमीटर का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसके जरिए वह अपनी हर गतिविधि में खर्च होने वाली कैलोरी की जांच कर सकते हैं साथ ही जरूरी कैलोरी के आधार पर व्यायाम भी कर सकते है। डिवाइस एक पेजर जैसे आकार में कमर की बेल्ट में बांधा जाता है। हालांकि कई पेडोमीटर घड़ी या फिर अंगूठी के आकार के भी होते है, जिन्हे केवल त्वचा के संपर्क मे लाने पर सेंसर के जरिए कैलोरी की मात्रा स्क्रीन पर दिखने लगती है।

ग्लूकोमीटर- कुछ समय पहले एक तकनीक ने डायबिटिज मरीजों को काफी राहत पहुंचाई वह तकनीक थी कि कमर में बंधी बेल्ट रखेगी ग्लूकोज पर नजर, अमेरिका में इजाद की गई यह तकनीक आम भारतीयों की दिनचर्या में भी शामिल हो गई है। डायबेटोलॉजिस्ट डॉ. अनूप मिश्रा कहते हैं सेहत के प्रमुख डिवाइस में ग्लूकोमीटर को काफी पसंद किया गया, डायबिटिज की शिकार युवा पीढ़ी आसान से अब अपने ब्लड ग्लूकोज का पता खुद ही लगा लेती है। इसी क्रम में पेन इंसुलिन को भी अहम माना गया हैं, जिसमें अब इंजेक्शन की जगह एक पेन के जरिए इंसुलिन को शरीर के अंदर पहुंचाया जा सकता है।

मेडिसन रिकॉलर- इसमें बेहद कम खर्च के एक दो इंच के कैप्सूल के जरिए मरीज को इस बात का ध्यान दिलाया जाता है कि उसे दवाएं कब लेनी है। कैप्सूल के जुड़े मॉनिटर को मरीज के हाथ पर लगे एक डिवाइस से सेंसर की मदद से जोड़ा जाता है, जो दवाएं लेने के समय पर अलार्म बजाता है। इसमें मरीज के दवाएं लेने का टाइम फीड करना होता है। बीमारी के साथ बिजनेस या फिर नौकरी पेशा लोग इस डिवाइस को अधिक कारगर मानते हैं।

सांस संबंधी बीमारी में- सांस से जुड़ी तकलीफ में भी आधुनिक डिवाइस का प्रयोग सफल देखा गया है। डीयू पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के फेफड़ा एवं छाती विभाग के प्रमुख डॉ. राजकुमार ने बताया कि प्रदूषण व हवा में एसपीएम कणों की मात्रा बढ़ने के कारण घर से बाहर निकलने वाले युवा सांस संबंधी तकलीफ के शिकार हो रहे हैं, जिन्हें सीधे अस्थमा के मरीज न मानकर सीओपीडी या फिर क्रानिक ऑब्सिटकल पल्मोनरी डिसीज कहा जाता है। इन मरीजों की के इंहेलर में एक डिवाइस को लगाया जाता है, जिसे एंड्रायड से जोड़ कर फेफड़े की मॉनिटरिंग ली जाती है। मरीज के डिवाइस की मॉनिटरिंक चिकित्सक भी अपने पीसी पर देख सकते हैं।

हेल्थ मॉनिटर एट होम- नर्सिंग होम सुविधा के साथ ही मेट्रो शहर में डोरमेट के जरिए सेहत पर नजर रखी जा रही है। हालांकि हेल्थ फ्रेंडली डिजाइनिंग होम का खर्च सामान्य घरों की अपेक्षा कई गुना अधिक होता है, लेकिन बुजुर्गो की सेहत का ध्यान रखने वाले युवा इसे अपना रहे हैं। इसमें एक टेबलेट जैसे डिवाइस को घर के किसी कोने में लगाया जाता है, सेंसर और एक साफ्टवेयर के जरिए इसे घर के हर उस जगह से जोड़ा जाता है जहां लोगों का आना जाता अधिक होता है जिस व्यक्ति की सेहत की मॉनिटरिंग करनी होती है, उसकी जानकारी पहले डिवाइस या टेबलेट में फीड कर दी जाती है। इसके जरिए पल्स रेट, ग्लूकोज स्तर और ईसीजी की मॉनिटरिंग टेबलेट पर हर दो घंटे में आती रहती है। यह साफ्टवेयर फैमिली फिजियन के पोर्टल से जुड़ता है जो अपने क्लीनिक में बैठकर मरीज की सेहत का जायजा लेता रहता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *