मिर्गी के बाद एम्स के बाल तंत्रिका रोग विभाग ने ऑटिज्म के शिकार बच्चों के लिए एप लांच किया है। जिसकी मदद से माता पिता बच्चों के व्यवहार संबंधी असामान्य गतिविधियों का पता लगा सकता है। अप्रैल महीने के ऑटिज्म जागरुकता माह बनाने के क्रम ने अप्रैल महीने में बीमारी से संबंधी कई कार्यक्रम आयोजित किए। दरअसल ऑटिज्म की पहचान किसी एक तरह की जांच से नहीं होती, एएसडी (ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर) के संदर्भ में लोगों की जानकारी कम होने के कारण शुरूआत में लक्षण के नजरअंदाज किया जाता है।
एम्स के बाल तंत्रिका रोग विभाग की डॉ. शेफाली गुलाटी ने बताया जन्म के बाद 23 हफ्ते तक नवजात की गतिविधि पर नजर रखनी चाहिए, यह जानने के लिए कि बच्चे के मस्तिष्क का सामान्य विकास हो रहा है या नहीं, यदि बच्चा सामान्य रो नहीं रहा है या फिर किसी चीज को देखने पर उसका रेस्पांस शांत या सुस्त है तब भी सतर्क हो जाना चाहिए। शुरूआत में नजरअंदाज की गई कुछ बातें तीन साल की उम्र आने तक बच्चे में ऑटिज्म का कारण बन सकती है। मदद के लिए लांच किए गए एप में ऐसी सभी जानकारियां समेटने की कोशिश की गई है। जिसे एम्स के ही साफ्टवेयर डेवलेपर ने तैयार किया है। लक्षण की पहचान होने पर बच्चे के व्यवहार पर ध्यान देकर इसे सही भी किया जा सकता है। डॉ. गुलाटी ने बताया कि कामकाजी माता पिता नवजात को अधिक समय नहीं दे पाते, जिससे जन्म के बाद उनकी सीखने की प्रक्रिया कम हो जाती है। मेड या केयर टेकर के संरक्षण में बढ़ने वाले पांच प्रतिशत बच्चे ऑटिज्म के शिकार पाए गए हैं।
क्या है ऑटिज्म
न्यूरोबिहेव्यिर डिस्ऑर्डर बच्चों के सामान्य विकास संबंधी जुड़ी बीमारी है। जिसे कुछ विशेष तरह के प्रशिक्षण से ठीक किया जा सकता है। दरअसल हर बच्चा जन्म से सीखने के कुछ गुण लेकर पैदा होता है। लेकिन कई बार सही परवरिश न मिलने से मस्तिष्क के सेंसर व न्यूरोंस विकसित नहीं हो पाते है और बच्चें में व्यवहार संबंधी परेशानियां शुरू हो जाती है। जैसे कुछ बोलने पर जवाब न देना, एक ही बात पर बार-बार कहना, अन्य बच्चों से अलग रहना, खिलौनों की जगह अन्य चीजों से खेलना आदि।
क्या है बीमारी का आंकड़ा
यूएस द्वारा अप्रैल वर्ष 2012 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक 88 बच्चों में एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार है। जबकि 12-24 लाख बच्चे ऑटिज्म के शिकार हैं। जबकि अकेले इस समय एम्स में बीमारी के 500 बच्चों का इलाज किया जा रहा है। हर साल ऑटिज्म के 170 नये बच्चे देखे जा रहे हैं। जबकि वर्ष 2002 तक यह आंकड़ा 50 तक सीमित था।
मदद के लिए ईमेल
एम्स के चाइल्ड न्यूरोलॉजी विभाग ने ऑटिज्म बच्चों की मदद के लिए एम्स से संपर्क किया जा सकता है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शेफाली गुलाटी ने बताया कि बच्चों के साथ ही माता पिता को प्रशिक्षण की जरूरत होती है। बीमारी के प्रबंधन के लिए प्रयास नामक कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसमें कई चरणों में बच्चों के मानसिक विकास पर निगरानी रखने सिखाया जाता है।
एक घंटे से भी कम समय
एसौचैम द्वारा किए गए एक अध्ययन में देखा गया कि कामकाजी माता पिता बच्चों के साथ दिनभर में एक घंटे भी नहीं बिताते हैं। दिल्ली एनसीआर के 100 स्कूलों के दस हजार बच्चे व अभिभावकों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि 65 प्रतिशत बच्चे माता पिता की जगह इंटरनेट और विडियो गे में समय बिताना पसंद करते हैं। जबकि 56 प्रतिशत अभिभावक बच्चों को चाहकर भी समय नहीं दे पाते।