लंबे समय तक पानी में काम करने या फिर हल्की सी ठंड या गर्मी के कारण हाथों की अंगुलियां लाल होती हैं तो इसे साधारण समस्या न मानें। महिलाओं और बच्चों में यह परेशानी स्केलोड्रर्मा की वजह से हो सकती है। 90 प्रतिशत मामलों में महिलाएं इस समस्या को नजरअंदाज करती हैं, जिसकी वजह से बीमारी का असर लिवर और किडनी पर भी पड़ने लगता है।
इंडियन रिहृयुमेटोलॉजी एसोसिएशन के अध्यक्ष और आर्मी रिसर्च एंड रेफरल सेंटर के रिहृयुमेटोलॉजिस्ट मेजर जनरल डॉ. वेद प्रकाश चतुर्वेदी कहते हैं कि शरीर में खून की आपूर्ति करने वाली छोटी कैपिलरी नसें में सूजन की वजह से हाथ व पैरों की खून कोलेजन का स्तर बढ़ जाता है, जिसकी वजह से सूजन के साथ ही अंगुलियां लाल हो जाती है। यही सूजन शरीर के बाहर ही नहीं भीतरी अंग जैसे किडनी, लिवर और दिल की नसों में भी होती है, जिसकी वजह से त्वचा में खिंचाव हो जाता है, जिसे स्केलोडर्मा कहा जाता है। महिलाओं में 30 से 45 की उम्र में अधिक प्रभावित करने वाली बीमारी को नजरअंदाज करने पर इसका असर अन्य अंगों के टिश्यू पर पड़ता है, जिससे कम उम्र में दिल और लिवर खराब होने का खतरा रहता है। डॉ. वेद कहते हैं कि बीमारी का इलाज महिलाएं त्वचारोग विशेषज्ञों के पास कराती हैं, जबकि ऑटो इम्यून बीमारी होने के कारण इसका इलाज रिहृयुमेटोलॉजी विभाग में किया जाता है।
खून जांच जरूरी
त्वचा व अंगुलियों की लालिमा जानने के लिए खून की जांच जरूरी है। जिसमें सैंपल ईएसआर(इरायथोसाइट सेंडिमेंटेशन रेट), एंटी न्यूक्लियर एंटी बॉडी की जांच की जाती है। अमेरिकन कॉलेज और रिहृयुमेटोलॉजी की गाइडलाइन के अनुसार स्केलोडर्मा की जांच दो चरणों में की जानी चाहिए, जिससे पहले त्वचा पर बीमारी के लक्षण का पता लगाया जाता है, जबकि दूसरे चरण शरीर के अन्य भागों में कैपिलरी नसों की रूकावट की वजह से होने वाले असर को देखा जाता है।
संभव है इलाज
-घरेलू दवाओं से बीमारी का इलाज न करें
-इरेक्टायल डायफंक्शन(नपुंसकता) के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वियाग्रा दवाओं से कैपिलरी की रूकावट को दूर कर सकते हैं।
-जांच के साथ थॉयरॉयड और ब्लडप्रेशर की जांच भी जरूरी