नई दिल्ली.
भारत में पिछले 24 घंटे में कोरोना के दो लाख 51 हजार 209 नए मरीज सामने आए हैं वहीं 573 लोगों की मौत हुई है। जबकि इससे एक दिन पहले भी कोरोना के लगभग इतने ही मामले देखे गए थे जबकि मौतों की संख्या इससे कहीं ज्यादा थी. 26 जनवरी को आए आंकड़ों में कोरोना वायरस से 665 लोगों की कोरोना से मौत हुई है जो कि तीसरी लहर में अब तक का सर्वाधिक आंकड़ा है. ऐसे में देश में एक तरफ कोरोना के मामले लगातार घट रहे हैं लेकिन जिन मरीजों को पहले ही कई तरह की बीमारियां है उनमें मृत्युदर बढ़ रही है। विशेषज्ञों की मानें तो तीसरी लहर में संक्रमण (Infection rate )के एवज में रिकवरी दर (Recovery rate )अधिक बेहतर देखी गई। इसके साथ अधिकांश मरीज ऐसे ए सिम्पमेटिक (Asympmetic ) हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत ही नहीं पड़ी और वह घर ही ठीक हो गए।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान देवघर के निदेशक डॉ. सौरभ वाष्र्णेय कहते हैं कि कोरोना के मामलों के घटने और कोविड मौतों के बढ़ने के आंकड़ों को पहली दफा देखने भर से यह अनुमान लगाना आसान है कि जरूर यह खतरे का संकेत है या फिर कोरोना ज्यादा खतरनाक हो रहा है जिसकी वजह से मृत्युदर बढ़ रही है लेकिन गहराई में देखें तो सच्चाई यह नहीं है। कोरोना की दूसरी लहर में हुई मौतों और अब कोरोना की तीसरी लहर में हो रही मौतों में भी अंतर है. अब जो मौतें कोविड मौतों में दर्ज हो रही हैं वे कोविड की वजह से मौतें हैं, ये कहना सही नहीं है।
डॉ. वाष्र्णेय कहते हैं कि कोरोना में एक होती है संक्रमण दर जिसे इन्फेक्टिविटी रेट कहते हैं और दूसरा होता है रिकवरी रेट यानि मरीजों के ठीक होने की दर। भारत में कोरोना की तीसरी लहर में देखा जा रहा है कि संक्रमण दर के मुकाबले रिकवरी रेट काफी अधिक रहा है। भारत में कोरोना के प्रति 100 संक्रमितों में से 94-95 मरीज बिना गंभीर हुए या अस्पताल में भर्ती हुए ही ठीक हो रहे हैं 60-70 फीसदी कोविड मरीज एसिम्प्टोमैटिक हैं और उनमें कोई लक्षण ही दिखाई नहीं दे रहा है, ऐसे मरीजों को पता ही नहीं है कि वे कोरोना से संक्रमित हैं। अगर यह कहा जाएं कि तीसरी लहर में कोविड संक्रमित मरीजों की एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों कि जिन्होंने जांच ही नहीं कराई तो यह गलत नहीं होगा।
डॉ. सौरभ कहते हैं कि देखा जा रहा है कि गंभीर बीमारियों के मरीज अस्पतालों में (with comorbidies )आ रहे हैं, जैसे कोई हार्ट का मरीज है, किसी को कैंसर है, किसी को लीवर या किडनी की परेशानी, कोई ऑर्गन फेलियर है या अन्य कोई गंभीर रोग से पीड़ित हैं, इसके अलावा ट्रॉमा सेंटर में आने वाले एक्सीडेंट आदि के मामलों में भी देखा गया है कि अस्पताल में आने से पहले तक इन्हें अपना कोविड स्टेटस नहीं पता होता है लेकिन जब वे अस्पताल में भर्ती होते हैं तो जरूरी प्रक्रिया के रूप में कोरोना की जांच भी की जाती है। अब चूंकि ओमिक्रोन (Omicron ) संक्रमितों में तो लक्षण ही नहीं आ रहे, लिहाजा इनमें से कुछ लोगों में कोविड मौजूद होता है और ये कोरोना पॉजिटिवों की श्रेणी में रजिस्टर कर लिए जाते हैं। अब मान लीजिए इनकी अपनी ही गंभीर बीमारी के चलते इनमें से किसी का निधन हो जाता है तो गाइडलाइंस के अनुसार उसे कोविड पॉजिटिव मानते हुए कोविड डेथ में शामिल कर लिया जाता है। यही वजह है कि चाहे जिस किसी भी बीमारी से मरीज की मौत हो रही है लेकिन अगर वह कोरोना पॉजिटिव निकल आता है तो कोविड से मारे गए लोगों में शामिल हो जाता है और शायद इसी वजह से कोविड डेथ का आंकड़ा इस बार बढ़ रहा है। जबकि हकीकत में ये कोविड डेथ नहीं है बल्कि गंभीर बीमारी से मौत है.
दूसरी लहर और तीसरी लहर की मौतों में ये है अंतर
डॉ. वाष्र्णेय कहते हैं कि कोरोना की दूसरी लहर में जो कोविड डेथ हुई थीं, उनमें ज्यादातर में देखा गया था कि कोरोना ने फेफड़ों पर हमला किया था, जिसकी वजह से मरीज गंभीर हुए थे। फेफड़ों में परेशानी की वजह से ही लोगों की मौत हुई थी और इसीलिए इन्हें कोविड डेथ माना गया था। जबकि इस बार कोरोना ने फेफड़ों ही नहीं बल्कि किसी भी ऑर्गन को गंभीर रूप से प्रभावित नहीं किया है उल्टा इसके तो लक्षण भी सामने नहीं आ रहे हैं। लिहाजा अब जो मौतें हो रही हैं वे कोविड डेथ नहीं बल्कि बीमारी की गंभीरता से हो रही मौतें हैं। इस बार स्वस्थ्य मरीजों पर कोविड का प्रभाव अपर रेस्पेरेटरी संक्रमण तक ही सीमित रहा जिसे गले का संक्रमण कहा जाता है, इसके बाद संक्रमण का असर फेफड़े तक नहीं पहुंचा।