जेनेरिक दवाओं में गुणवत्ता का आश्वासन नहीं

नई दिल्ली: हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल का कहना है कि केंद्र सरकार का ‘जेनेरिक-ओनली इंडिया’ का विचार भारतीय चिकित्सा क्षेत्र में एक आदर्श बदलाव लाने में तो सक्षम है लेकिन इस दिशा में कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर विचार किए जाने की जरूरत है। इनमें से एक जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता का मामला है। डॉ के.के. अग्रवाल ने एक बयान में कहा कि ‘प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना’ (पीएमबीजेपी) के तहत, सस्ती जेनेरिक दवाओं को वितरित करने के लिए बहुउद्देश्यीय स्टाल अब देश के कई प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भले ही जेनेरिक दवाओं की ओर झुकाव आशाजनक प्रतीत होता है पर तथ्य काफी विरोधाभासी हैं।
उन्होंने कहा कि सभी को सस्ती दवाएं प्रदान करने के लिए सरकार की पहल के तहत वर्ष 2017 में जन औषधि स्टोर्स से पांच प्रकार की दवाएं हटा ली गई थीं। इन दवाओं में गुणवत्ता की कमी थी। इसके अलावा 2018 के पहले चार महीनों में 6 दवाओं को वापस मंगा लिया गया। इसे देखकर आश्चर्य यह होता है कि क्या भारत जेनेरिक ओनली मॉडल के लिए तैयार है। यह कहना मुश्किल है कि कितनी दवाएं रोगियों की सुरक्षा के सन्दर्भ में गुणवत्ता परीक्षण को पास करती हैं।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि जन औषधि का मुख्य उद्देश्य देश में स्वास्थ्य देखभाल पहुंच को बढ़ावा देना है। हालांकि कीमतों में कटौती और गुणवत्ता पर थोड़ा ध्यान देने के साथ ऐसा नहीं लगता कि यह योजना अच्छी तरह से योजनाबद्ध है। अगर जेनेरिक दवाओं को सहयोग करने के लिए उन्हें बिना वैज्ञानिक डेटा के बाजार में उपलब्ध कराया जाता है तो गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य देने का भारत का वादा खतरे में पड़ सकता है। मूल्य नियंत्रण बनाम गुणवत्ता पर डॉ. अग्रवाल ने कहा कि हालांकि जेनेरिक दवाएं कभी-कभी ब्रांडेड जेनेरिक से थोड़ी सस्ती हो सकती हैं, फिर भी वे एक स्टैंडर्ड या ब्रांडेड कंपनी की तुलना में विश्वास को बनाए रखने में सफल साबित नहीं होती हैं। इनकी तुलना में कई परीक्षणों से गुजरने वाली ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं से नहीं की जा सकती जिन्होंने बाजार में एक बेहतर गुणवत्ता वाली छवि विकसित की है।
उन्होंने कहा कि रोगी-विशिष्ट स्थितियों के लिए उपयुक्त दवा बनाने में गुणवत्ता, पोटेंसी और बरसों के अनुसंधान को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इसलिए किसी एक दवा के प्रचार के लिए सिर्फ उसके मूल्य को आधार नहीं बनाना चाहिए बल्कि उसके गुणवत्ता और सुरक्षा पहलुओं पर आधारित होना चाहिए। वास्तव में अगर भारत सरकार फार्मा सेक्टर में अनुसंधान एवं विकास में अधिक निवेश की अनुमति दे रही है, तो लागत-प्रतिस्पर्धी कारक धीरे-धीरे कीमतों को कम कर सकता है। डॉ. अग्रवाल ने कहा कि अगर दवाओं की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया गया तो फार्मास्युटिकल उद्योग के कुलीन क्लब में खुद के लिए नाम बनाने की भारत की पहल को नकार दिया जाएगा।

सोर्स: आईएएनएस

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