मुंबई,
14 साल के एक बच्चे का रंग इंडोक्राइन ट्यूमर की वजह से काला हो रहा था, जिसका इलाज माता पिता लंबे समय तक त्वचा रोग विशेषज्ञ से कराते रहे। धीरे धीरे बीमारी के लक्षण पेट में तेज दर्द, वजन और बीपी कम होने के रूप में नजर आने लगे। हालत गंभीर होने पर बच्चे को मुंबई के बाई जरबाई वाडिया अस्पताल में भर्ती किया गया, शुरूआती सीटी स्कैन जांच में बच्चे में पैंक्रियाटिक न्यूरोइंडोक्राइन ट्यूमर की पहचान हुई, जो एक लाख में किन्हीं छह बच्चों में पाया जाता है।
वाडिया अस्पताल के पीडियोट्रिक इंडोक्राइनोलॉजी विभाग के डॉ. राजेश जोशी ने बताया कि बच्चे को अप्रैल 2018 में हाइपरपिगमेंटशन या त्वचा का रंग अधिक काला और धब्बे पड़ने की शिकायत की वजह से भर्ती किया गया था। शुरूआती जांच में बच्चे के एड्रिनल ग्लैंडस हार्मोन की समस्या देखी गई, बच्चे का कार्टिसोल हार्मोन बहुत बढ़ा हुआ था, जिसको तनाव का भी कारक बना जाता है। हार्मोन अनियंत्रित पाए जाने पर बच्चे का सीटी स्कैन और बायोस्पी जांच की गई, जिसमें पीएनईटी (पीडियाट्रिक न्यूरोइंडोक्राइन ट्यूमर)की पुष्टि हुई। बच्चे को तीसरे चरण का गंभीर ट्यूमर था, जो तेजी से बढ़ रहा था, 60 प्रतिशत ऐसे केस में मरीज के बचने की संभावना केवल 16 प्रतिशत ही होती है।
ट्यूमर खून में एड्रनोकॉरटिकोट्रॉपिक हार्मोन्स का स्त्राव तेजी से कर रहा था, जिसे एसीटीएच हार्मोन भी कहा जाता है। हार्मोन की गड़बड़ी की वजह से कार्टिसॉल तेजी से बढ़ रहा था। बच्चे में हार्मोन की इस गड़बड़ी को दूर करने के लिए नंवबर 2018 को सर्जरी का ट्यूमर को निकाल दिया गया, लेकिन छह महीने बाद फिर से ट्यूमर बढ़ने लगा, इसके बाद बच्चे को छह महीने के सर्किल की कीमोथेरेपी दी गई। जिसके बाद अब वह पूरी तरह स्वस्थ्य है। बच्चे ने बताया कि वह खुश है क्योंकि पूरी तरह स्वस्थ है और साल महीने बाद दोबारा स्कूल जा सकेगा, इस दौरान बच्चे ने जंकफूड और मांसहार लेना बंद कर दिया है।