बेवजह होती हैं बीमारियों की 40 प्रतिशत जांचे

नई दिल्ली: पुलिस सेवा के बाद भारतीय चिकित्सा क्षेत्र को दूसरे नंबर का सबसे भ्रष्ट क्षेत्र माना गया है। हिमाचल प्रदेश में एक चैरिटेबल अस्पताल में 38 साल सेवाएं देने के बाद आस्ट्रेलिया के डॉ. डेविड बर्जर ने अपने अनुभवों को बीएमजे (ब्रिटिश मेडिकल जर्नल) के जून महीने के अंक में प्रकाशित किया है। बर्जन के अनुसार देश में इलाज से संबंधित 40 प्रतिशत जांचे बेवजह होती है। मरीज और डॉक्टर का रिश्ता पूरी तरह व्यवसायिक हो गया है।

बीएमजे में छपे लेख पर सरगंगाराम अस्पताल के डॉ. सिमरन नंदी ने करंट मेडिसन प्रैक्टिस इन इंडिया में शोध पर प्रकाश डालते हुए चिकित्सा क्षेत्र के भ्रष्टाचार के अन्य तथ्यों पर प्रकाश डाला है। डॉ. डेविड बर्जन के अनुसार यहां भ्रष्टाचार एमसबीबीएस स्तर से ही शुरू हो जाता है। देश में कुल पंजीकृत मेडिकल कॉलेज में 60 प्रतिशत कॉलेज नेताआें के है। इन कॉलेजों को मान्यता देते समय एमसीआई खुद नियमों को नजरअंदाज कर देती है। हिमाचल प्रदेश में चैरिटेबल अस्पताल में सेवाएं देते डॉ. डेविड कई निजी व सरकारी अस्पतालों के संपर्क में आएं, जिसके अनुसार सामान्य बीमारियों की जांच के लिए मरीजों की 40 से 50 प्रतिशत जांचें बेवजह होती है। यहीं ने 20 प्रतिशत बड़ी सर्जरी सिर्फ मरीजों की जेब ढीली करने के लिए की जाती है। डॉ. डेविट ने देश में मरीज और डॉक्टर के रिश्ते को पूरी तरह व्यवसायिक बताया है, जिसमें संवेदनाएं खत्म हो चुकी हैं। शोध पर सरगंगाराम अस्पताल के डॉ. सिमरन नंदी ने बताया कि शोध से अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब हुई है। हालांकि डेविड ने भारत के साथ ही पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, पूर्वी यूरोप और पश्चिमी यूरोप में चिकित्सा क्षेत्र में भ्रष्टाचार है, लेकिन इन सब में भारत तीसरे नंबर पर है।

क्या बातें प्रमुख
-60 फीसदी निजी मेडिकल कॉलेज राजनीतिज्ञों के
-40 प्रतिशत मामलों में होती है मरीजों की बेवजह जांच
-20 प्रतिशत बड़ी सर्जरी ऐसी होती है जिनकी जरूरत नहीं
-39 प्रतिशत मामलों में डॉक्टर मरीजों को जरूरी से अधिक दवाएं देते हैं
नोट- शोध पत्र में ट्रांसपेरेसी इंटरनेशनल के सर्वेक्षण के आंकड़ों को भी शामिल किया गया।

कुछ बताएं सुझाव भी
– ब्रिटेन की तरह नेशनल फ्रॉड आर्थोरिटी बनाई जाएं, चिकित्सा जगत पर नजर रखें
– लोगों के पास उपलब्ध स्मार्ट फोन की मदद से सभी मरीजों का इलेक्ट्रानिक डाटा रखा जाएं
– नेशनल हेज्थ सर्विस के तहत चिकित्सा जगह की स्पेशल ऑडिटिंग होनी चाहिए
– दवा कंपनियों की प्रति महीने सेल परचेज की जानकारी आर्थोरिटी के पास ऑन लाइन होनी चाहिए

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